दो बातें, जो 2027 की जनगणना को बनाती हैं सबसे खास; 2011 से क्या कुछ अलग होगा?
2027 की जनगणना के लिए मोदी कैबिनेट ने 11,718 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। जनगणना दो चरणों में होगी। इस बार की जनगणना दो मायनों में खास होगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
आजादी के बाद से अब तक 7 बार जनगणना हो चुकी है। अब 2027 में 8वीं बार जनगणना होगी। वैसे तो इसे 2021 में हो जाना चाहिए था लेकिन कोविड महामारी के कारण इसमें देरी हुई। शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में 2027 की जनगणना के लिए बजट को मंजूरी दे दी गई। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि जनगणना के लिए 11,718 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं।
इस बार की जनगणना में दो बातें खास होंगी, क्योंकि दोनों ही चीजें आजाद भारत के इतिहास में पहली बार होंगी। पहली यह कि यह पहली डिजिटल जनगणना होगी। और दूसरी बात यह कि इस बार जातियों की गिनती भी की जाएगी।
2021 में जो जनगणना होने वाली थी, उसके लिए मोदी कैबिनेट ने दिसंबर 2019 में 8,754.23 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। हालांकि, अब 2027 में जो जनगणना होनी है, उसके लिए 11,718.24 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। यानी, जनगणना का बजट 2,964 करोड़ रुपये का बजट बढ़ गया है।
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अब जब जनगणना के लिए आखिरी मंजूरी भी मिल गई है तो जानते हैं कि यह कैसे होगी? कब तक पूरी होगी? इस जनगणना से निकलेगा क्या? जरूरी क्यों है?
क्या होती है जनगणना?
भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। तब से हर 10 साल पर यह की जाती है। इससे पता चलता है कि देश की आबादी कितनी है। आजाद भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई थी।
अब तक भारत में 16 बार जनगणना हो चुकी है। 2027 में 17वीं बार जनगणना होगी। वहीं, आजाद भारत की यह 8वीं जनगणना होगी।
जनगणना करवाने की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती। इसमें गांव, शहर और वार्ड स्तर का डेटा मिलता है।
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कब से कब तक होगी जनगणना?
2011 में जब आखिरी बार जनगणना हुई थी, तब दो चरणों में इसे किया गया था। 2027 की जनगणना भी दो चरणों में होगी। फर्क इतना होगी कि इस बार सबकुछ डिजिटल होगा। मोबाइल ऐप के जरिए फॉर्म भरवाए जाएंगे और डिजिटल डेटा इकट्ठा किया जाएगा।
जनगणना का पहला चरण अप्रैल से सितंबर 2026 तक चलेगा, जिसमें घरों की गिनती की जाएगी। वहीं, दूसरे चरण में लोगों की गिनती होगी, जिसका काम फरवरी 2027 से शुरू होगा।
हालांकि, ठंडे और पहाड़ी इलाकों में लोगों की गिनती का काम सितंबर 2026 में ही शुरू हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सितंबर 2026 से लोगों की गिनती शुरू हो जाएगी।
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जनगणना से क्या-क्या पता चलेगा?
- किस राज्य की कितनी आबादी है? महिला और पुरुषों की आबादी कितनी है? किस उम्र की कितनी आबादी है?
- किसके पास जमीन-जायदाद की कितनी हिस्सेदारी है? समाज के किस वर्ग के सबसे ज्यादा या सबसे कम संपत्ति है?
- सरकारी नौकरियों, निजी व्यवसाय या रोजगार में समाज के किस वर्ग की कितनी हिस्सेदारी है?
- समाज के अलग-अलग वर्ग और धर्म में शिक्षा का स्तर क्या है? किस राज्य की कितनी आबादी पढ़ी-लिखी है?
- किस समाज के कितने लोग दूसरे राज्य या दूसरे देशों में रह रहे हैं? माइग्रेशन की वजह क्या है?
जातिगत जनगणना में क्या होगा?
अंग्रेजों के दौर में होने वाली जनगणना में 1881 से 1931 तक सभी जातियों की गिनती की जाती थी। हालांकि, आजादी के बाद 1951 में सरकार ने तय किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर बाकी किसी भी जाति की गिनती नहीं होगी।
1961 में केंद्र सरकार ने राज्यों को सर्वे करवाकर OBC जातियों को अपनी लिस्ट में शामिल करने का अधिकार दे दिया। अब 6 दशक से भी ज्यादा लंबा वक्त बीत जाने के बाद सरकार ने जातिगत जनगणना करवाने का फैसला लिया है।
हालांकि, 2011 में विपक्ष के दबाव में तत्कालीन यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना करवाई थी लेकिन 2016 में मोदी सरकार ने जातियों को छोड़कर बाकी सारा डेटा सार्वजनिक कर दिया था। सरकार का दावा था कि 2011 में जो सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना हुई थी, उसमें कई खामियां थीं।
अब जो जनगणना होगी, उसमें OBC जातियों की गिनती भी की जाएगी। यह इसलिए किया जा रहा है, ताकि OBC आबादी का सही-सही आंकड़ा निकल सके। अभी इसका सही आंकड़ा नहीं है। सिर्फ अनुमान ही है।
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2011 से कितनी अलग होगी 2027 की जनगणना?
2011 से 2027 की जनगणना में दो चीजें अलग होंगी। पहली तो यही कि जनगणना पूरी तरह से डिजिटल होगी, ताकि डेटा जल्दी से मिल सके। डेटा कलेक्ट करने के लिए मोबाइल ऐप का इस्तेमाल होगा। जबकि, मॉनिटरिंग के लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा।
दूसरी बात यह कि इस बार लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाएगी। अब तक सिर्फ SC और ST के लोगों की ही जाति का डेटा लिया जाता था।

कैसे होगी 2027 की जनगणना?
जनगणना के काम में करीब 30 लाख लोग लगेंगे। इनमें एन्यूमरेटर, सुपरवाइज़र, मास्टर ट्रेनर, प्रभारी अधिकारी और प्रधान या जिला जनगणना अधिकारी शामिल हैं।
अहम काम एन्यूमरेटर का ही होता है। यह आमतौर पर सरकारी शिक्षक होते हैं। केंद्र सरकार ने बताया कि जनगणना के काम में लगे सभी कर्मचारियों को अलाउंस भी दिया जाएगा, क्योंकि वे अपने रूटीन काम के अलावा इसे करेंगे।
जनगणना के पहले चरण में घरों की गिनती होगी। इसमें घर-घर जाकर उनकी लिस्टिंग की जाएगी। वहीं, लोगों की गिनती में पूरा क्वेश्चनर होगा, जिसे घर-घर जाकर लोगों से भरवाया जाएगा।
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खर्चा कितना आएगा?
2027 की जनगणना का काम 550 दिन तक चलेगा। इस बार की जनगणना में 11,718 करोड़ रुपये खर्च होंगे। 2011 की जनगणना में लगभग 2,200 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
इस सबसे क्या होगा?
जनगणना को आमतौर पर लोगों की गिनती से जोड़कर देखा जाता है। मगर ऐसा नहीं है। जनगणना इससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है।
चूंकि, जनगणना में गांव, शहर और वार्ड लेवल तक का डेटा मिल जाता है, इसलिए इससे सरकार को अपनी नीतियां बनाने में मदद मिल जाती है।
इससे पता चल जाता है कि देश के लोग किस हालात में जी रहे हैं। कितनी आबादी सक्षम है और कितनी वंचित? लोग जिन घरों में रह रहे हैं, उनकी हालत कैसी है? लोगों के पास संपत्तियां कितनी हैं? शिक्षा का स्तर कितना है?
जनगणना से जो आंकड़े निकलकर सामने आते हैं, उससे सरकारें नीतियां और योजनाएं बनाती हैं। उदाहरण के लिए, जनगणना से निकलकर आया कि बुजुर्गों की आबादी बढ़ गई है और ज्यादातर बुजुर्ग मुश्किल हालात में जी रहे हैं तो उनके लिए नीतियां और योजनाएं तैयार होती हैं।
जनगणना के आंकड़ों का कई जगहों पर इस्तेमाल होता है। गांव, शहर और वार्ड लेवल तक का डेटा इससे मिलता है। महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण वाला कानून भी जनगणना के बाद ही लागू होगा। इतना ही नहीं, लोकसभा सीटों का परिसीमन भी होना है और वो भी जनगणना के बाद ही होगा।
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इसका डेटा कब तक आएगा?
आमतौर पर जनगणना होने के बाद इसका पूरा डेटा आने में 4-5 साल का वक्त लग जाता है। 2011 में जो जनगणना हुई थी, उसका पूरा डेटा 2016 तक सामने आया था।
मोदी सरकार का कहना है कि जनगणना का डेटा जल्द से जल्द रिलीज किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि सारा डेटा 1 मार्च 2027 तक इकट्ठा कर लिया जाएगा। इसके बाद डेटा आने में 2-3 साल लग जाएंगे।
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