बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उसके पहले मंत्रिमंडल में एक बड़ा फेरबदल किया गया है। सात नए मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया गया। ये सारे के सारे मंत्री बीजेपी के कोटे से हैं। लेकिन इन सबके बीच जातिगत समीकरण का भी ख्याल रखा गया।
बीजेपी ने जिन मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया वे ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, वैश्य और अति पिछड़ी जातियों से हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के पहले इन सभी जातियों को साधने की कोशिश की जा रही है। साथ ही बीजेपी ने गुरुवार को कुछ मंत्रियों के विभागों में भी बदलाव किया है।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस तरह से विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश की है।
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जीवेश मिश्रा
जीवेश मिश्रा जाले विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और भूमिहारों के नेता माने जाते हैं। वे पहले भी मंत्री रह चुके हैं और बिहार में भूमिहारों में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। वह दरभंगा के रहने वाले हैं।
बिहार में 2023 में हुए जातिगत जनगणना के मुताबिक बिहार में राज्य की कुल जनसंख्या का 2.86 प्रतिशत हैं जो कि संख्या के हिसाब से 3,750,886 होता है।
मैथिली भाषी लोगों में उनका खासा प्रभाव है। इसकी एक बानगी यह है कि उन्होंने अपना शपथ मैथिली में लिया। उनके जरिए मैथिल क्षेत्र को बीजेपी को साधने में मदद मिलेगी।
सर्वे के मुताबिक बिहार की कुल भुमिहार जनसंख्या में 27 प्रतिशत आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं हैं। भूमिहार मंत्री बनाने से इन वोट्स को बीजेपी-जेडीयू द्वारा अपनी ओर खींचने की कोशिश है।
हालांकि, भूमिहार पारंपरिक रूप से बीजेपी के ही वोटर माने जाते हैं लेकिन पिछले कुछ चुनावों में उनका वोट आरजेडी और कांग्रेस की तरफ खिसकते हुए देखा गया था।
राजू सिंह
राजू सिंह साहेबगंज विधानसभा सीट से विधायक हैं और वे राजपूत समुदाय से आते हैं। बिहार में हुए हालिया, जातिगत सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में राजपूतों की संख्या कुल 45 लाख है। यह राज्य की कुल जनसंख्या का 3.45 प्रतिशत है जो कि वोट प्रतिशत के हिसाब से भी काफी ज्यादा है।
राजू सिंह बिहार के काफी दबंग नेताओं में से माने जाते हैं। तमाम विवादों से भी उनका नाता रहा है। वह लोजपा, जेडीयू और वीआईपी से भी चुनाव लड़ चुके हैं।
अगर राजू सिंह और जीवेश मिश्रा को देखें तो दोनों ही तथाकथित उच्च जातियों से आते हैं और इन दोनों को मिलाकर राज्य की करीब 6.5 प्रतिशत जनसंख्या हो जाती है।
विजय कुमार मंडल
5 बार विधानसभा चुनाव जीत चुके विजय कुमार मंडल राज्य में अति पिछड़ा वर्ग में से आते हैं। वह अररिया के सिटकी से विधायक हैं। राज्य में अति पिछड़ा वर्ग के लोगों की अच्छी खासी जनसंख्या है। बिहार जातिगत जनगणना के मुताबिक राज्य में 36.01 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग है। जनसंख्या के हिसाब से देखें तो यह 130,725,310 ठहरती है।
यह बिहार का सबसे बड़ा वर्ग है। जाहिर है अगर बीजेपी 36 प्रतिशत जनसंख्या को साध पाती है तो चुनाव जीतना काफी आसान होगा।
विजय कुमार मंडल बिहार सरकार में पहले भी मंत्री रह चुके हैं और वह निर्दलीय भी विधायक चुने गए हैं। विजय कुमार का दबदबा इतना ज्यादा है कि उन्होंने जिस भी पार्टी से चुनाव लड़ा उससे जीत गए।
ऐसा माना जा रहा था कि वह नीतीश कुमार सरकार से नाराज चल रहे हैं। इसलिए शायद उनको मंत्री बनाकर खुश करने की कोशिश की गई है, क्योंकि उनकी नाराजगी से एक बड़ा वोटर वर्ग बीजेपी के खाते से खिसक सकता था।
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चार ओबीसी मंत्री
इसके अलावा कृष्ण कुमार मंटू, संजय सरावगी, सुनील कुमार और मोतीलाल प्रसाद को भी मंत्री बनाया गया है। ये चारों मंत्री ओबीसी से आते हैं।
बिहार में जातिगत जनगणना के मुताबिक ओबीसी की जनसंख्या 35,463,936 है जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 27.12 प्रतिशत है।
कृष्ण कुमार मंटू
कृष्ण कुमार मंटू कुर्मी जाति से आते हैं और किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. बिहार में कुर्मी जाति की संख्या 2.87 प्रतिशत है।
संजय सरावगी
वहीं संजय सरावगी को राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री बनाया गया है। इससे पहले यह जिम्मेदारी दिलीप जायसवाल संभाल रहे थे लेकिन बिहार कैबिनेट विस्तार के पहले उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था।
संजय सरावगी वैश्य समुदाय से आते हैं और व्यापारी वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ है। उन्होंने दरभंगा सदर से चुनाव जीता है। सरावगी का दरभंगा और मिथिला क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। जीवेश मिश्रा और संजय सरावगी दोनों मिथिला क्षेत्र से हैं इसलिए कहा जा सकता है कि एनडीए का मिथिला क्षेत्र पर काफी फोकस है।
बिहार में बनिया-वैश्य कुल आबादी का 2.3 प्रतिशत है और संख्या के हिसाब से देखें तो इनकी संख्या 3026912 है।
सुनील कुमार
चार बार के विधायक सुनील कुमार बिहार शरीफ से विधायक है। डॉक्टर से राजनेता बने सुनील कुमार फिल्मी दुनिया में भी नाम कमा चुके हैं। उन्होंने तीन भोजपुरी फिल्मों का निर्माण किया है।
सुनील कुमार की छवि बिहार शरीफ समेत पूरे नालंदा में कुशवाहा नेता के रूप में है। वह पहले जेडीयू का हिस्सा थे लेकिन साल 2013 में नीतीश कुमार की पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। जमीनी स्तर पर उनकी काफी पकड़ मानी जाती है।
मोतीलाल प्रसाद
वहीं सीतामढ़ी जिले के रीगा से बीजेपी विधायक मोतीलाल प्रसाद जनसंघ के समय से ही बीजेपी से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा संघ से भी उनका जुड़ाव रहा है।
हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अमित कुमार टुन्ना के हाथों मोतीलाल को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन इस बार बीजेपी ने फिर से उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया था।
मोतीलाल बिहार में तेली समाज से आते हैं जिसकी संख्या बिहार में जिसकी संख्या बिहार में 3677491 है और प्रतिशत के हिसाब से 2.8 ठहरती है।
इस तरह से देखा जाए तो विधानसभा चुनाव के पहले बिहार में एनडीए ने करीब दो तिहाई जनसंख्या तो साधने की कोशिश की है। साथ ही जातीय समीकरण को पूरी तरह से साधने की कोशिश भी की गई है। हालांकि, अब चुनाव बाद ही पता चलेगा कि एनडीए इसमें कितनी सफल हो पाई है।
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