भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार को केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए 11 साल हो गए हैं। ऐसे में इस बात पर बहस लगातार जारी है कि आखिर बीजेपी ने इन 11 सालों में क्या किया? अपनी नीतियों को लेकर कितनी सफल रही और कितनी असफल। बीजेपी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का ही 'ब्रेन चाइल्ड' माना जाता है यानी कि बीजेपी एक तरह से आरएसएस का राजनीतिक विंग है जो कि उसके मुद्दों को सरकार के माध्यम नीतियां बनाकर लागू करती है। आरएसएस का एजेंडा मुख्यतः हिंदू राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का रहा है।

 

आरएसएस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, अर्थव्यवस्था में स्वदेशी को बढ़ावा देना और एजुकेशन सिस्टम में भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं को महत्त्व दिए जाने पक्षधर रहा है। 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनने के साथ ही इस बात पर चर्चा तेज हो गई कि अब सरकार आरएसएस के मुद्दों को लागू करेगी। इस जीत को सिर्फ सत्ता परिवर्तन के रूप में ही नहीं माना जा रहा था बल्कि इसे विचारधारा का परिवर्तन भी माना जा रहा था। अपने पहले कार्यकाल में बीजेपी ने कई बड़े और कड़े फैसले किए इसके बाद दोबारा 2019 में फिर चुनकर बीजेपी सत्ता में आई। इस कार्यकाल में भी बीजेपी ने कई बड़े फैसले लिए। तीसरी बार 2024 के चुनाव में सारा विपक्ष लगभग एकजुट हो गया, लेकिन एनडीए फिर से एक बार सत्ता में आ गई। हालांकि, बीजेपी को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ लेकिन एनडीए की सरकार बन गई।

 

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ऐसे में कयास लगाए जाने लगे थे कि इस बार बीजेपी बड़े फैसले नहीं ले पाएगी, लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिला। तीसरे कार्यकाल में भी बीजेपी ने आरएसएस के एजेंडे को लागू करने वाले फैसले में कोर-कसर नहीं छोड़ी। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

 

इस आर्टिकिल में खबरगांव आपको बताएगा कि पिछले 11 सालों के कार्यकाल में बीजेपी ने आरएसएस के एजेंडे को कितना लागू किया है और किन मामलों में वह पीछे रही है या अभी लागू नहीं कर पाई है।

1. राम मंदिर का निर्माण

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण दशकों से आरएसएस के एजेंडे में रहा है। सुप्रीम कोर्ट के 2019 के ऐतिहासिक निर्णय के बाद, मोदी सरकार ने काफी तेज गति से ट्रस्ट बनवाया और निर्माण कार्य को प्राथमिकता दी। 2024 में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ। इसे बीजेपी की वैचारिक जीत और आरएसएस के एजेंडे की पूर्ति के रूप में देखा गया। इसके अलावा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और उज्जैन में महाकाल जैसे धार्मिक स्थलों के रिकॉन्स्ट्र्क्शन को भी संघ के सांस्कृतिक एजेंडे के पूर्ति माना जा सकता है।

 

2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार ने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ की स्थापना की और 2024 में मंदिर का उद्घाटन हुआ। इसे संघ की वैचारिक जीत माना गया।

2. अनुच्छेद 370 की समाप्ति

संघ लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को अस्थायी मानता रहा है। अगस्त 2019 में मोदी सरकार ने इसे निरस्त कर दिया। संघ और बीजेपी दोनों के लिए यह ऐतिहासिक क्षण था जिसने एक भारत, श्रेष्ठ भारत की विचारधारा को बल दिया। यह RSS के ‘एक देश, एक संविधान’ के एजेंडे की पूर्ति थी।

3. नागरिकता संशोधन कानून (CAA)

CAA संघ की हिंदुओं को संरक्षण देने वाली नीति से मेल खाता है। सीएए के तहत सरकार ने स्पष्ट किया कि यह पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने की दिशा में एक कदम है, जो कि इन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों में धार्मिक आधार पर सताए गए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देकर संरक्षण देगा। हालांकि, विरोध के चलते सीएए और एनआरसी लागू करने से बीजेपी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े, लेकिन यह उस दिशा में एक बड़ा कदम था। बीजेपी ने अभी भी यह नहीं कहा है कि वह इस दिशा में काम नहीं करेगी, बस वह विरोध के चलते फिलहाल मौन हो गई है।

4. नई शिक्षा नीति (NEP) 2020

आरएसएस का एजेंडा हमेशा से इंडियन एजुकेशन सिस्टम यानी कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को 'भारतीयता' के अनुरूप ढालने का रहा है। नई शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में पढ़ाई को प्रोत्साहन, प्राचीन ज्ञान को बढ़ावा, और वैदिक गणित व योग जैसे विषयों को शामिल करने की पहल संघ की अवधारणा से मेल खाती हैं। इसके अलावा इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई को मातृभाषा में देने की कोशिश आरएसएस के उसी एजेंडे को आगे बढ़ाना है।

5. इतिहास में बदलाव की कोशिश

आरएसएस लंबे समय से मुगलों और अंग्रेजों के कालखंडों को ‘गौरवहीन’ मानता आया है। उसका मानना है कि इसके पहले का भारत का इतिहास अत्यधिक गौरवशाली रहा है और इसे हमारी नई जेनरेशन को बताया और पढ़ाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने NCERT की किताबों से कुछ 'विवादास्पद' इतिहास के हिस्सों को हटाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन 'नायकों' के बारे में चैप्टर जोड़ने की कोशिश की जिनको अभी तक तरजीह नहीं दी जाती थी। इनमें सावरकर, भगत सिंह, रानी गाइदिन्लियु जैसे नायक शामिल हैं। इसके अलावा ICHR और NCERT जैसी संस्थाओं में आरएसएस से जुड़े लोगों को नियुक्त करना भी आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने जैसा है।

6. गौरक्षा और लव जिहाद कानून

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों में गौ-हत्या विरोधी कानूनों को सख्त किया गया और 'लव जिहाद' के खिलाफ भी कई राज्यों में विधेयक लाए गए। यह संघ के सांस्कृतिक एजेंडे का ही हिस्सा रहा है। गौ आधारित कृषि और उत्पादों को बढ़ावा देने के कुछ प्रयास हुए हैं (जैसे कामधेनु आयोग की स्थापना), लेकिन उन्हें व्यापक सफलता नहीं मिली। लव जिहाद की बात करें तो इसे लेकर केंद्र के स्तर पर कोई कानून अभी पारित नहीं हुआ है लेकिन यूपी, उत्तराखंड जैसे कई बीजेपी शासित राज्यों में इसके लिए कानून बनाए गए हैं।

7. मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत

आरएसएस का स्वदेशी जागरण मंच हमेशा विदेशी पूंजी और कंज्यूमेरिज़म या उपभोक्तावाद की आलोचक रही है। हालांकि मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया', 'स्टार्टअप इंडिया' और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों के तहत घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन दिया। यह आरएसएस के एजेंडे से मेल खाता है।

8. UCC की दिशा में कदम

आरएसएस 'एक देश एक कानून' की हिमायती रही है। उसका मानना रहा है कि 'एक देश दो विधान' नहीं होना चाहिए। ऐसे में शादी-विवाह और अन्य कई मामलों में मुस्लिमों के लिए अलग कानून का विरोध आरएसएस करती रही है। बीजेपी ने भी सत्ता में आने के बाद लगातार इस मुद्दे को उठाया है। हालांकि, बीजेपी अभी तक इस दिशा में कोई कानून नहीं बना पाई है लेकिन वह मुखरता से इस बात को रखती रही है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना था कि बीजेपी अपने तीसरे कार्यकाल में यूसीसी से संबंधित कानून लेकर आ सकती है। हालांकि, तीन तलाक को खत्म करना, हज सब्सिडी को खत्म करना और वक्फ बोर्ड को लेकर कानून बनाना इस दिशा में बीजेपी का बड़ा कदम माना जा रहा है।

9. बेची बचाओ, बेटी पढ़ाओ

महिला सशक्तीकरण भी आरएसएस के एजेंडे का हिस्सा रहा है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लागू करके बीजेपी सरकार ने इस दिशा में काम किया। इसी तरह से संसद और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक लाकर भी बीजेपी ने महिला सशक्तीकरण की दिशा में कदम उठाया है।

 

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किन मुद्दों पर रही दूरी?

बीजेपी ने आरएसएस के काफी एजेंडो को लागू किया है और तमाम एजेंडों की दिशा में काम भी कर रही है लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जिनसे बीजेपी ने दूरी बनाए रखी है। जैसे- बीजेपी ने स्वदेशी और मेक इन इंडिया पर जोर दिया लेकिन विदेशी निवेश और विदेशी कंपनियों के लिए मार्केट को खोलने पर भी जोर दिया है, जो कि आरएसएस के एजेंडे से अलग है।

 

इसी तरह से बहुत ज्यादा प्राइवेटाइजेशन करने का भी आरएसएस पक्षधर नहीं रहा है, लेकिन बीजेपी सरकार का हालिया रेलवे, एयर इंडिया, बीमा, बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण किया गया, जिससे संघ की श्रमिक शाखा भारत मजदूर संघ (BMS) ने कई बार विरोध दर्ज किया। यहां सरकार संघ के 'स्वदेशी' और 'राष्ट्रीय संपत्ति' बचाने की बात से भटकती दिखी।

 

संघ जातिगत सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ रहा है क्योंकि वह हमेशा हिंदुत्व की बात करता है, लेकिन बीजेपी ने समय समय पर जातिगत राजनीति करने की कोशिश की है। राजनीतिक मंचों से जातिगत आरक्षण की बात करना या हाल ही में बीजेपी का जातिगत जनगणना कराने की बात कहना इस रास्ते से भटकाव माना जा सकता है।

 

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लागू किया पर पूरी तरह से नहीं

11 वर्षों में बीजेपी सरकार ने आरएसएस के कई वैचारिक लक्ष्यों को कानून बनाकर अमली जामा पहनाने की कोशिश की, लेकिन आर्थिक नीति, निजीकरण, चुनावी राजनीति और सामाजिक समरसता जैसे विषयों पर सरकार व्यावहारिकता को महत्त्व देते हुए कई बार संघ की अपेक्षाओं से अलग भी चली है।

 

यह कहना उचित होगा कि बीजेपी ने आरएसएस के एजेंडे को पूरी तरह नहीं, पर बड़े हिस्से में अपनाया है। संघ स्वयं भी यह स्वीकार करता रहा है कि सत्ता, राजनीति और वैचारिक आंदोलन के रास्ते अलग-अलग होते हैं।

 

आज जबकि बीजेपी का तीसरा कार्यकाल चल रहा है, यह देखना होगा कि संघ के अधूरे एजेंडे जैसे समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण नीति, हिंदी भाषा का विस्तार, और एजुकेशन में पूर्ण भारतीयकरण जैसे मुद्दे कब और कैसे पूरे होते हैं