संजय सिंह। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने के लिए पटना के गर्दनीबाग में कुछ युवकों ने धरना और भूख हड़ताल शुरू की है। विधानसभा चुनाव के पहले भी निशांत के राजनीति में आने को लेकर पटना में बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लगाए गए थे।
जेडीयू के बड़े नेता भी उन्हें राजनीति में लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन नेताओं को अच्छी तरह पता है कि निशांत के राजनीति में आए बिना पार्टी टूट सकती है। पार्टी के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो सकता है। पार्टी के भीतर भी यह सवाल उठने लगा है कि नीतीश के बाद पार्टी की विरासत कौन संभालेगा?
क्यों जरूरी है निशांत का राजनीति में आना
बिहार के राजनीतिक इतिहास को अगर देखा जाए तो, पुराने नेताओं ने अपने-अपने बेटों को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के सभी वरिष्ठ नेताओं को टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक अलग रखा गया। तेजस्वी यादव ने पूरी कमान अपने हाथ में रखी। भले ही चुनाव में वे बुरी तरह पराजित हो गए, लेकिन राजनीतिक विरासत संभालने के लिए अपने बड़े भाई तेज प्रताप को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
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यही हाल LJP-R का है। चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति पारस से उलझकर राजनीति को अपने पक्ष में मोड़ लिया। आज उनके पास विधायकों और सांसदों की अच्छी खासी संख्या है। जबकि पशुपति पारस राजनीतिक रूप से हाशिए पर चले गए हैं। 'हम' के नेता और केंदीय मंत्री जीतनराम मांझी ने भी अपनी राजनीतिक विरासत बिहार सरकार में मंत्री और अपने बेटे संतोष मांझी को सौंप दी है। वे अपने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। यही हाल उपेंद्र कुशवाहा का है। उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे को बिना विधायक और विधान परिषद बने मंत्री तक बनवा दिया। भले ही उनके दल के कुछ विधायक कुशवाहा से इस फैसले को लेकर नाराज हुए।
बीजेपी भी युवा नेतृत्व को बढ़ा रही
भारतीय जनता पार्टी भी बिहार के राजनीतिक माहौल को भांपते हुए युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने में जुट गई है। नए मंत्रिमंडल के गठन में सम्राट चौधरी को इसी कारण उपमुख्यमंत्री बनाया गया। गृह मंत्री की जिम्मेवारी भी उन्हें जान बूझकर दिलवाई गई। अपनी दी गई जिम्मेवारी का बेहतर तरीके से निर्वाहन कर वे पार्टी और अपने कामों के दम पर युवाओं के बीच अपना प्रभाव छोड़ सकें। बीजेपी ने सबसे बड़ा निर्णय यह लिया कि युवा विधायक नितिन नवीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया।
बीजेपी के इस फैसले ने पक्ष और विपक्ष को हैरान कर दिया। इसके तुरंत बाद ही दरभंगा के विधायक संजय सरावगी को प्रदेश अध्यक्ष पार्टी का बना दिया। बीजेपी अपने इन निर्णयों से मतदाताओं को यह संदेश देना चाहती है कि वे द्वितीय पंक्ति में खड़े नेताओं को आगे बढ़ा रही है। यह फैसला बीजेपी का दूरगामी कदम माना जा रहा है।
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समय के साथ आना चाहते हैं निशांत
नीतीश कुमार परिवारवादी राजनीति के सदा खिलाफ रहे हैं। वे इन्हीं मुद्दे पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी लालू यादव को घेरते रहे हैं। ऐसे में वे नहीं चाहते हैं कि उनका बेटा सीधे राजनीति में प्रवेश करे। इससे उनकी छवि प्रभावित होगी। उनके राजनीतिक आलोचकों को बैठे बिठाए मुद्दा मिल जाएगा। इस कारण निशांत को राजनीति में लाने के लिए एक माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि लोगों को लगे कि पब्लिक डिमांड पर वे राजनीति में आए हैं।
जेडीयू के नेताओं को यह भी डर सता रहा है कि अगर नीतीश के बाद दूसरा नेतृत्व तैयार नहीं किया गया तो पार्टी टूटकर बिखर जाएगी। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, राज्य सरकार के मंत्री अशोक चौधरी भी कई बार निंशात कुमार को राजनीति में लाने का प्रयास कर चुके हैं। इन नेताओं को यह बात भी अच्छी तरह पता है कि कुर्मी, अतिपिछड़ा और आधी आबादी के वोट को अगर एकजुट रखना है तो निशांत को राजनीति में लाना जरूरी है। जेडीयू के शीर्ष नेताओं का मानना है कि माहौल बन रहा है निशांत समय के साथ राजनीति में आयेंगे।
