साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो भारतीय जनता पार्टी के लिए नए युग की शुरुआत हुई। बीजेपी ने बाद के विधानसभा चुनावों में वहां भी झंडे गाड़े, जहां पार्टी की सियासी जमीन ही नहीं थी। यूपी में से लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों तक में सफलता मिली। एक राज्य ऐसा भी रहा, जहां बीजेपी जीत के लिए तरसती थी, तरसती रही। वह राज्य था, पश्चिम बंगाल। साल 2011 के बाद से किसी भी पार्टी की वहां एक न चली। 14 साल से वहां ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी को यह बात खटकती रही है।

साल 2011, 2016 और 2021 में हुए विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी के पास ही बहुमत रहा। हार बार ममता बनर्जी ही मुख्यमंत्री रहीं। पश्चिम बंगाल में न मुख्यमंत्री बदलीं, न ही विधानसभा स्पीकर बिमान बनर्जी के पद में कोई बदलाव हुआ। यह वही राज्य है, जहां संघ की दशकों से मेहनत के बाद भी बीजेपी हाशिए पर रही है।

साल 2011 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी का खाता तक नहीं खुला। साल 2016 में एक तरफ जहां देश में प्रंचड मोदी लहर थी, प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल में एड़ी-चोटी का जोर लगाया, बीजेपी के सारे केंद्रीय मंत्री उतरे लेकिन सीटें सिर्फ 3 आईं। 2021 के चुनाव में भी बीजेपी ने पूरा दमखम दिखाया लेकिन 77 से ज्यादा सीटें हासिल नहीं कर सकी। 294 सीटों वाली विधानसभा में जीत के लिए कम से कम 148 सीटें चाहिए। 

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2011 से अब तक, विधानसभाओं में BJP का हाल क्या रहा?

  • 2011 विधानसभा चुनाव: 0
  • 2016 विधानसभा चुनाव: 3
  • 2021 विधानसभा चुनाव: 77

साल 2011 तक, बीजेपी पूरे देश में हाशिए पर थी। गुजरात जैसे राज्यों में मजबूत स्थिति थी। 2014 के बाद बीजेपी केंद्र में आई, कई राज्यों में सरकारें बनीं। 2011 में पश्चिम बंगाल में शून्य सीटें, हैरान करने वाली नहीं रहीं। 2016 के विधानसभा चुनाव में भी पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस की सीधी टक्कर थी, बीजेपी सीधी लड़ाई में ही नहीं थी। 

2016 में पहली बार 3 सीटों पर कामयाबी मिली और वोट शेयर करीब 10 फीसदी हो गया। 2021 में बीजेपी का उभार अप्रत्याशित था। दावा तो यहां तक किया जा रहा था कि ममता बनर्जी की विदाई हो रही है। नंदी ग्राम से वह अपना चुनाव तक हार गईं थीं। बीजेपी ने 77 सीटों पर झंडा लहराया था। अब 2026 के विधानसभा चुनावों पर बीजेपी की नजर है।

 

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। (Photo Credit: PTI)

बीजेपी को पश्चिम बंगाल में जीत क्यों चाहिए?

भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की यह जमीन है लेकिन यहां बीजेपी कमजोर है। बीजेपी के कमजोर होने की कई वजहें हैं। बीजेपी, यहां पार्टी का दबदबा चाहती है। पश्चिम बंगाल में 292 विधानसभा सीटें और 42 लोकसभा सीटें हैं। पश्चिम बंगाल में अगर बीजेपी मजबूत होगी तो केंद्र में दावेदारी और पक्की होगी। 

बीजेपी का दावा है कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की खराब है। राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से जनसांख्यिकीय असंतुलन हो रहा है, जो देश के लिए खतरा है। बीजेपी का कहना है कि ममता बनर्जी सरकार, मुस्लिम तुष्टिकरण करती है। स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, पलाय पर निर्भर हैं। उद्योग खराब हालत में हैं, आम लोगों का शोषण हो रहा है। 

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पश्चिम बंगाल जीतने के लिए बीजेपी क्या कर रही है?

बीजेपी ने राज्य को 6 जोन में बांट दिया है। मंगल पांडेय, सुनील बंसल, भूपेंद्र यादव और त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लब देब को अहम जिम्मेदारियां दी गईं हैं। संगठन स्तर पर संघ के साथ बेहतर तालमेल और बीजेपी में ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। टीएमसी सरकार पर सत्ता विरोधी लहर को जनता तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इन कोशिशों के बाद भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए जीत की राह आसान नहीं है। 

लोकसभा में नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी। (Photo Credit: PTI)

क्यों नंबर गेम में कमजोर पड़ती है बीजेपी?

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बढ़त दर्ज की थी। बीजेपी को 18 सीटें मिली थीं, लेकिन 2024 में यह संख्या घटकर 12 रह गई। वहीं तृणमूल कांग्रेस ने 29 सीटें हासिल कीं, जबकि कांग्रेस को 1 सीट मिली। टीएमसी और मजबूत हो गई, वहीं बीजेपी और कमजोर। 

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कमजोर क्यों पड़ती है बीजेपी?

  • हिंदी इंपोजीशन: अंजन दत्ता, कोलकाता में रहते हैं। जब यह सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब दिया, 'ममता बनर्जी बंगाली हैं। उनका नारा मां, माटी मानुष है। उनसे बंगाली जुड़ाव महसूस करते हैं। बीजेपी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी हिंदी थोपने की कोशिश करती है, हिंदी संस्कृति की कवायद करती है। बंगाली इसे अपनी संस्कृति पर प्रहार समझते हैं। पश्चिम बंगाल का प्रबुद्ध वर्ग, इसी वजह से बीजेपी से दूरी बनाता है।'

  • कलह: बीजेपी में कई फिरके हैं। दिलीप घोष से लेकर समिक भट्टाचार्य तक की एक-दूसरे से अनबन है। सुवेंदु अधिकारी, टीएमसी से आए हैं, बीजेपी में उनकी स्वीकृति को लेकर सवाल उठते हैं। बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ता उनसे खफा रहते हैं। दिलचस्प यह है कि वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं लेकिन एक जमाने में ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी रहे हैं। 

  • आबादी: पश्चिम बंगाल में बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ती है। 27 फीसदी मुस्लिम आबादी बीजेपी से दूर भागती है। पश्चिम बंगाल की 43 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 135 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतादाता जीत-हार तय कर सकते हैं। मुर्शिदाबाद में करीब 66 फीसदी मुस्लिम रहते हैं, मालदा में 51 फीसदी और उत्तर दीनाजपुर में 49 फीसदी। उत्तर-दक्षिण परगना में भी मुस्लिम मजबूत स्थिति में हैं। यहां बीजेपी लचर प्रदर्शन करती है। मुर्शिदाबाद में 22 जिले, मालदा में 12, कूच बिाहर 9 विधानसभा सीटें हैं। उत्तर परगना में 33 विधानसभा सीटें हैं, दक्षिण परगना में 31 विधानसभा सीटें। बीजेपी यहां कमजोर पड़ जाती है। जीत के लिए बीजेपी को दोगुनी सीटें हासिल करनी चाहिए। 

  • ममता बनर्जी: पश्चिम बंगाल की में बीजेपी नेतृत्व के लिए ऐसी चुनौती, जिसे शीर्ष नेतृत्व ढूंढ नहीं पा रहा है। यहां ममता बनर्जी के कद का कोई नेता बीजेपी के पास नहीं है, जिसकी व्यापक लोकप्रियता हो। हर बार मोदी के चेहरे पर ही चुनाव होता है। ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल में 'दीदी' वाली छवि रखती हैं। लोकप्रिय हैं, बंगाली अस्मिता की बात करती हैं, बाहरियों से बंगाल बचाओ का नारा देती हैं। उन्होंने लक्ष्मी भंडार जैसी योजनाएं भी चलाईं हैं, पेंशन भी देती हैं। मुस्लिम वोटर उनके नाम पर लामबंद होते हैं और फुरफुरा शरीफ-असदुद्दीन ओवैसी जैसे दल भी अपनी पैठ नहीं बना पाते। ममता बनर्जी के आगे फिलहाल जातीगत समीकरण ध्वस्त हो जाते हैं। 

  • बाहरी बनाम बंगाली संस्कृति: सार्थक चौधरी, बंगाली गायक हैं। उनका कहना है, 'बंगाली अपनी संस्कृति को लेकर संरक्षणवादी होते हैं। हिंदुत्व को पसंद करने वाले लोग भी, बीजेपी को बाहरी मान लेते हैं। वजह यह है कि बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व ही यहां कमजोर है। विधानसभा चुनाव में सारे बड़े नेता, पश्चिम बंगाल से बाहर के होते हैं। बंगाली भाषा और संस्कृति को पसंद करने वाले लोगों को यह रास नहीं आता है। साल 2024 के चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत कम हुआ है, सीटें कम हुईं हैं। यह 2026 में भी नजर आ सकता है।'