केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी का यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनना तय है। शनिवार को उन्होंने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की मौजूदगी में अपना नामांकन दाखिल किया। पंकज चौधरी सात बार के लोकसभा सदस्य हैं। उनकी गिनती यूपी के प्रभावशाली ओबीसी नेता के तौर पर होती है। 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के बाद मोदी सरकार ने पंकज चौधरी को वित्त राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। अब उनका प्रदेश अध्यक्ष बनना लगभग तय है।

 

महाराजगंज से सात बार के सांसद पंकज चौधरी का संबंध कुर्मी समाज से है। उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय की अच्छी खासी संख्या है। कई जिलों में इनकी भूमिका निर्णायक है। बीजेपी ने ओबीसी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को आगे करके सपा के पीडीए फॉर्मूले की काट खोजी है। मगर बीजेपी के इस सियासी प्रयोग की असल परीक्षा 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में होगा।

 

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यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते हैं। पंकज चौधरी का संबंध महाराजगंज से है। दोनों जिलों की सीमा एक-दूसरे से लगती है। यही कारण है कि केंद्र के अलावा राज्य स्तर पर भी पकंज चौधरी को भरपूर समर्थन मिल रहा है। 1989 में पंकज ने अपनी सियासत की शुरुआत गोरखपुर नगर निगम से किया था। वह गोरखपुर के उप महापौर भी रहे। उनकी मां उज्ज्वल चौधरी महाराजगंज जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। पंकज चौधरी की पढ़ाई की बात करें तो उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है।


उत्तर प्रदेश में करीब 8 से 10 फीसद कुर्मी मतदाता है। यह समुदाय 40 सीटों पर प्रभाव डालने की ताकत रखता है। ओबीसी में यादवों के बाद कुर्मी समुदाय दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है। बरेली से कई बार सांसद रहे संतोष गंगवार की गितनी कुर्मी समाज के प्रभावशाली नेताओं में होती है। हालांकि उनके राज्यपाल बनने के बाद बीजेपी को एक मजबूत कुर्मी नेता की तलाश थी। योगी मंत्रिमंडल में शामिल राकेश सचान का संबंध भी कुर्मी समाज से है। मगर उनका बैकग्राउंड सपा और कांग्रेस से जुड़ा है, जबकि पंकज चौधरी 90 के दशक से बीजेपी का हिस्सा हैं।

 

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कुर्मी समाज की ताकत से बीजेपी भलीभांति रूबरू है। यही वजह है कि पिछले 10 साल से केंद्र और राज्य में अपना दल (सोनेलाल) के साथ उसका गठबंधन बरकरार है। अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं और उनके पति आशीष पटेल योगी सरकार में मंत्री हैं।

 

माना जाता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोट बड़ी संख्या में बीजेपी से झिटका। इसका खामियाजा उसे उठाना पड़ा। 2019 में बीजेपी को यूपी में 62 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। 2024 में उसकी सीटें घटकर 33 रह गईं। सपा पांच से 37 सीटों पर पहुंच गई। सपा ने अपनी प्रचंड जीत के पीछे पीडीए फॉर्मूल को बताया। सपा पीडीए में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय को वर्गीकृत करती है।