संजय सिंह, पटना: बिहार में एनडीए को विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला। प्रचंड बहुमत मिलने से नेशनल डेमोक्रेटिल अलायंस (NDA) एनडीए के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी उत्साहित है। चुनाव की सफलता के बाद जब प्रधानमंत्री बिहार आए थे, तब उन्होंने कहा था कि बिहार के रास्ते ही गंगा नदी बंगाल पहुंचती है। बिहार के बाद अब बंगाल की बारी है। प्रधानमंत्री का संकेत साफ था कि बिहार में चुनावी जीत का असर बंगाल चुनाव पर भी पड़ेगा। बीजेपी ने संगठन स्तर पर फेरबदल कर इसकी तैयारी शुरु कर दी है। इसी कड़ी में नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष और संजय सरावगी को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया है। 

बिहार विधानसभा के हर चुनाव में बीजेपी दो कायस्थों को टिकट देती थी। इस बार सिर्फ पार्टी ने नितिन नबीन को अपना उम्मीदवार बनाया। नितिन नबीन अगड़ी जाति से कायस्थ समुदाय से आते हैं। इन्होंने चुनाव में शानदार जीत हासिल की। चुनाव के दौरान ये पार्टी के बड़े नेताओं को फीडबैक भी देते रहे। 

चुनाव के दौरान ही अपने संबंधों को और बेहतर बनाने का मौका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिला। गृह मंत्री अमित शाह तो इनके घर छठ का प्रसाद भी खाने गए थे। तबसे यह कयास लगना शुरु हो गया था कि पार्टी नेतृत्व नितिन नबीन को लेकर कोई बड़ी राजनीतिक भूमिका तय करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। चुनावी रणनीति, संगठनात्मक समझ और जमीनी पकड़ के कारण नितिन नबीन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद नेताओं की सूची में तेजी से शामिल होते चले गए। आज वह राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर पहुंच गए। बीजेपी की यह नीति अगड़ों को साधने में कामयाब रही।

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क्या जेपी नड्डा ने ही दिलाई बड़ी जिम्मेदारी?

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का जन्म पटना में ही हुआ था। छात्र नेता के रुप में उनकी शुरुआत यहीं हुई। जेपी आंदोलन में लालू यादव, नीतीश कुमार, नरेंद्र सिंह, सुशील मोदी और नवीन किशोर सिन्हा सक्रिय रहे। नवीन किशोर सिन्हा बीजेपी की टिकट पर लगातार चुनाव जीतते रहे। जेपी नड्डा और नवीन किशोर सिन्हा की दोस्ती तब भी बरकरार थी। 

नवीन किशोर सिन्हा की मृत्यु के बाद उनके विरासत को नितिन नबीन ने संभाला। अपने मित्र के बेटे को आगे बढ़ाने में जेपी नड्डा ने भरपूर मदद की। हाल ही में हुए संपन्न विधानसभा चुनाव में जेपी नड्डा ने नितिन नबीन पर भरोसा जताते हुए चुनावी फीडबैक लिया। उसी फीडबैक के आधार पर आगे की चुनावी रणनीति बनाई गई। इसका लाभ नितिन नबीन को कार्यकारी अध्यक्ष बनने में मिला।

संजय सरावगी के बहाने क्या साधा? 

वैश्य सामाजिक रुप से पिछड़ा की श्रेणी में आते हैं। इनका वोट बैंक में हिस्सेदारी 27 प्रतिशत का है। संजय सरावगी इसके पूर्व नीतीश सरकार में मंत्री थे। इस बार वैश्य कोटे से दिलीप जायसवाल को मंत्री बनाया गया। वैश्य वोट बीजेपी का कोर वोट है। संजय सरावगी के मंत्री नही बनने से वैश्य समाज के लोगों की बेचैनी बढ़ गई थी। वैश्यों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया था कि कई बार के विधायक रहे और मारवाड़ी समाज से जुड़े सरावगी को मंत्रिमंडल में जगह क्यों नहीं मिली। इससे पहले वैश्य समुदाय के ही दिलीप जायसवाल प्रदेश अध्यक्ष थे। मंत्री बनने के बाद उन्हें यह पद छोड़ना ही था। इस कारण बीजेपी ने दिलीप जायसवाल की जगह संजय सरावगी के हाथों प्रदेश बीजेपी की कमान सौंप दी। इससे पिछड़े वर्ग के साथ साथ वैश्य समाज के लोगों को भी साधने में बीजेपी सफल रही।

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क्या फायदा होगा बंगाल चुनाव में?

बीजेपी नेताओं का मानना है कि नितिन नबीन और संजय सरावगी को संगठन की जिम्मेवारी सौंपकर बीजेपी ने दूर की सियासत साध ली है। नितिन नबीन कायस्थ समाज से आते हैं। इन्हें बंगाल की राजनीति का बेहतर समझ भी है। वह बंगाल में पार्टी का काम कर भी चुके हैं। वहां कायस्थ समाज के वोटरों की संख्या निर्णायक स्थिति में है।

नितिन को आगे बढ़ाकर बीजेपी इसका राजनीतिक लाभ बंगाल चुनाव में लेना चाहती है। संजय सरावगी मारवाड़ी समाज से आते हैं। बिहार के मारवाड़ी हजारों की संख्या में पश्चिम बंगाल में व्यवसाय करते हैं। पार्टी की मंशा है कि बंगाल चुनाव में सरावगी के माध्यम से पश्चिम बंगाल में मारवाड़ी वोटरों को साधने में आसानी होगी। बीजेपी के मंत्री मंगल पांडेय भी पिछले चुनाव में बंगाल में सक्रिय थे। उनके भी अनुभवों का लाभ उठाने की कोशिश में बीजेपी लगी हुई है।