महाराष्ट्र के सबसे चर्चित परिवारों में से एक पवार परिवार के लिए जुलाई 2023 किसी झटके की तरह रहा। परिवार बंट गया। जिन  चाचा शरद पवार की उंगली पकड़कर भतीजे आजीत पवार सियासत में आए थे, शरद पवार के राजनीतिक वारिस थे, उन्होंने ही पार्टी तोड़ दी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के धुर विरोधी गुट, एनडीए से हाथ मिला लिया। परिवार गया, पार्टी बिखरी और रिश्ते भी। 

अब एनसीपी के विभाजन के करीब ढाई साल बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी और उनके चाचा शरद पवार की एनसीपी (एसपी) ने पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ के नगर निगम चुनावों के लिए गठबंधन कर लिया है। ये दोनों जगहें एनसीपी की पारंपरिक मजबूत सीटें मानी जाती हैं।

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के दोनों धड़ों ने यह जरूर कहा है कि गठबंधन सिर्फ 15 जनवरी 2026 को होने वाले इन दो नगर निगम चुनावों तक सीमित है। इसके आगे कोई योजना नहीं है। पुणे में अजित पवार की एनसीपी 125 सीटों पर और शरद पवार की एनसीपी (एसपी) 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दोनों अपने-अपने चुनाव चिह्न पर ही उम्मीदवार उतारेंगी।

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गठबंधन करना क्यों पड़ा?

सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के अंदर ही बीजेपी और एनसीपी के बीच सीधी टक्कर दिख रही है। बीजेपी ने पुणे में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि अजित पवार की एनसीपी को अकेले छोड़ दिया गया। बीजेपी पूरे राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। बीजेपी पुणे जैसे इलाके को गंवाना नहीं चाहती है। ऐसे में अजित पवार और शरद पवार दोनों की पार्टियों का मानना है कि बीजेपी के विस्तार को रोकने के लिए एकजुट होना जरूरी है। 

एनसीपी के कार्यकर्ता दोनों पवार परिवार से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं और वे चाहते थे कि वोट बंटने से बचें। शरद पवार की पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए यह गठबंधन उनके लिए भी राहत की बात है। अजीत पवार और सुप्रिया सुले के बिगड़े रिश्ते भी इसी बहाने से सुलझ रहे हैं।

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एनसीपी के साथ आने से होगा क्या?

एकजुट एनसीपी अब बीजेपी के लिए मजबूत चुनौती बनेगी। दोनों पार्टियां उम्मीद कर रही हैं कि उनके स्थानीय नेता अब बीजेपी में नहीं जाएंगे। हाल में शरद पवार गुट के कुछ नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिससे उन्हें उम्मीदवार ढूंढने में दिक्कत हो रही थी।


दोनों पार्टियों का विलय होगा?

सियासी गलियारों में चर्चा है कि ऐसा हो सकता है। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के दोनों धड़ों की विचारधारा एक है। अजीत पवार, अपने चाचा शरद पवार को राजनीतिक आदर्श मानते रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि अब हो सकता है कि विलय भी हो जाए। अजीत पवार राज्य की कमान संभालें, सुप्रिया सुले केंद्र में। पर यह अभी अटकलें ही हैं। 

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क्या है एनसीपी का भविष्य?

कई नेता और कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि एनसीपी एक हो सकी है। शरद पवार गुट के विधायक रोहित पवार ने साफ कहा कि यह सिर्फ इन दो नगर निगमों तक है और यह स्थानीय कार्यकर्ताओं की इच्छा से हुआ है। विलय के लिए बड़ी बाधाएं हैं। विलय की सबसे बड़ी बाधा है कि पार्टी का नेतृत्व। सुप्रिया सुले, शरद पवार की बेटी हैं। अजीत पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम हैं। महाराष्ट्र में उनका सियासी कद महायुति का हिस्सा होने के बाद तेजी से बढ़ा है। पुराना विभाजन भी नेतृत्व संकट की वजह से हुआ था। सुप्रिया सुले और अजीत पवार के तकरार ने चीजें बिगाड़ दी थीं।

क्यों ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहे लोग?

नगर निगम चुनावों में अक्सर स्थानीय स्तर पर अजीब गठबंधन देखने को मिलते हैं। अगर पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ में यह गठबंधन अच्छा प्रदर्शन करता है, तो आगे जिला परिषद चुनावों में भी ऐसी मांग उठ सकती है। लेकिन अभी सबकी नजर इन चुनावों के नतीजों पर है। दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र निकाय चुनावों में कई जगहों पर बीजेपी कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा, कई जगह शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी ने एक साथ मिलकर। स्थानीय समीकरणों के लिहाज से राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावी समीकरणों से उम्मीद रखना अभी बेमानी होगी।