भोजपुरी से पिंपरी-चिंचवड तक, बंजर जमीन पर इंडस्ट्री उग आने की कहानी
कभी छोटे-छोटे गांवों का इलाका कहा जाने वाला इलाका आज देश के प्रमुख औद्योगिक शहरों में से एक है। इस पर कब्जे की जंग एक बार फिर रोचक हो चली है।

पिंपरी चिंचवड़ की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
देश में कई ऐसे शहर बसे हैं जो प्रमुख शहरों के बाहर बसने शुरू हुए और आगे चलकर खुद की पहचान बना ली। देश की राजधानी दिल्ली के बाहर नोएडा और गुरुग्राम जैसे शहर ऐसे ही बसे। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बाहर पुणे और पुणे के बाहर बसे पिंपरी-चिंचवड जैसे शहर इसी क्रम में बसते गए। मौजूदा वक्त में पिंपरी-चिंचवड इस वजह से चर्चा में है कि महाराष्ट्र की राजनीति में बेहद अहम माने जाने वाले पवार परिवार ने इसी शहर के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनाव के लिए हाथ मिला लिया है। अजित पवार का कहना है कि कभी इस शहर का म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन एशिया के सबसे अमीर निकायों में से एक था। औद्योगिक शहर होने के नाते अजित पवार की बात काफी हद तक सही भी है और यही वजह भी है कि महाराष्ट्र में सक्रिय सभी दल इस पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं।
हजारों साल का इतिहास लिए खड़ा यह शहर मौजूदा वक्त में तमाम उद्योगों की वजह से जाना जाता है। इस शहर को शरद पवार के परिवार के गढ़ के रूप में भी जाना जाता है। वही गढ़ जिसे बीजेपी ने साल 2017 में छीन लिया। वही गढ़ जिसे बचाने के लिए दो धड़े में बंटा परिवार एक बार फिर से साथ आ रहा है। कभी बंजर रहे इस क्षेत्र को फैक्ट्रियों का खेत बना दिया गया और नीतियों की खाद और विजन के पानी ने इस क्षेत्र को देखते ही देखते औद्योगिक शहर बना दिया। आइए जानते हैं इस शहर के इंडस्ट्रियल सिटी बन जाने की पूरी कहानी।
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क्या है पिंपरी चिंचवड?
हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के लिए सबसे पहले तो नाम और उसका अर्थ समझना जरूरी है। असल में यह दो गावों को मिलाकर बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पिंपरी का अर्थ पीपल से है और चिंच का अर्थ इमली और वड यानी बरगद। पूर्व में गांवों और शहरों के नाम इसी तरह से रखे जाते थे तो यह कहानी कमोबेश ठीक लगती है। नक्शे पर देखें तो मुंबई और पुणे के बीच में पुणे वाले सिर पर सबसे आखिर में पड़ने वाला शहर पिंपरी-चिंचवड ही है लेकिन अब यह पुणे से अलग है। मुला नदी पुणे और पिंपरी-चिंचवड को अलग करती है और पिंपरी चिंचवड के लगभग बीचोबीच बहती है। पिंपरी चिंचवड के कुछ अन्य इलाके भोसारी, वाकड, हिंजेवाड़ी, खिचली, तलवडे, मोशी और मारुंजी हैं।
इतिहास को देखें तो देश के कुछ सबसे पुराने शहरों में एक नाम पिंपरी-चिंचवड की भी आएगा। लगभग 2 हजार साल पहले हिंदू राजा भोज का राज्य इसी क्षेत्र में था और भोसारी क्षेत्र उनकी राजधानी हुआ करता था। राजा भोज के राज्य का नाम भोजपुरी था। जब यहां MIDC का गठन हुआ तब उसका केंद्र भी भोसारी में ही रखा गया। शहर हजारों साल पुराना है इसके प्रमाण पुरातत्वविदों को भी मिले हैं। मिट्टी के बर्तन, औजार आदि को पुणे के म्यूजियम में रखा गया है। 1885 के बॉम्बे गजट में छपा था कि पिंपरी-चिंचवड में उस जमाने में 14 फीट ऊंचा एक गेट हुआ करता था। यह क्षेत्र सन 850 से 1310 तक यादव वंश का भी हिस्सा रहा।
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'संस्कृतिच्या पावुलखुना' नाम की किताब में पिंपरी-चिंचवड और मराठाओं के रिश्तों के बारे में लिखा गया है। इस किताब में पिंपरी के सथवई मंदिर, अकुर्दी के तुलजाभवानी मंदिर और भोसारी के खांदोबा मंदिर का जिक्र है। इसी किताब में एक वाड़ा (बड़े घर) का जिक्र है जिसे देवजी तपकीर ने साल 1731 में बनवाया था। देवजी तपकीर एक सरदार या कप्तान थे और उनका बनवाया यह वाड़ा आज भी चिखली गांव में मौजूद है। भोसारी और चिखली गांवों के चारों ओर एक चारदीवारी हुआ करती थी जो 1818 में गिरा दी गई।
बंजर जमीन पर उगती गईं फैक्ट्रियां
आधुनिक पिंपरी-चिंचवड की किस्मत चमकने का बड़ा कारण मुंबई और पुणे को जोड़ने वाला हाइवे रहा। दोनों शहरों की इसी नजदीकी का फायदा पुणे के के आसपास के इलाकों को मिला और उसे फायदे में बड़ी हिस्सेदारी पिंपरी-चिंचवड की रही। 1970 का दशक आते-आते इन सभी गांवों को एकजुट करके पिंपरी-चिंचवड म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का गठन किया गया।
देश को आजादी मिलने के बाद पहली चुनौती थी कि अपने पैरों पर खड़ा होना है। एक तरफ देश को अपना पेट भरने के लिए अनाज का इंतजाम करना था तो दूसरी तरफ दुनिया के कदम से कदम मिलाने के लिए फैक्ट्रियां लगानी थीं। इसी क्रम में फैसला हुआ कि हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स फैक्ट्री लगाई जाएगी। साल 1955 में जीवन रक्षक दवाएं बनाने वाली इस कंपनी की पहली यूनिट लगाने के लिए जगह तय हुई पुणे-मुंबई हाइवे पर स्थित पिंपरी।
यह कंपनी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेनस इमरजेंसी फंड (UNICEF) की मदद से खड़ी होनी थी और हां पेनसिलीन, एमोक्सीसिलीन और अन्य एंटी फंगल दवाएं बनाई जानी थी। कुछ ही साल में यह कंपनी दवा बनाने का अहम केंद्र बनी और पिंपरी भी बड़ा औद्योगिक शहर बनने की ओर बढ़ गया। इसके बाद Haffkine बायो-फार्मास्युटिकल लिमिटेड को भी मुंबई से पिंपरी ट्रांसफर कर दिया गया।
यशवंत राव चव्हाण ने खींची लकीर
1960 में जब महाराष्ट्र अलग राज्य बना और यशवंतराव चव्हाण प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने तो उन्होने राज्य को नई दिशा देनी शुरू की। उन्होंने महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MIDC) का गठन किया ताकि राज्य में फैक्ट्री लगाने वालों की मदद की जा सके और सारे काम जल्दी हो सकें। मुंबई की आबादी तेजी से बढ़ रही थी और ठीक उसी वक्त पिंपरी में फैक्ट्रियां लगती जा रही थीं। पुराना हाइवे इसमें उस कड़ी का काम कर रहा था जो इन उद्योगों के लिए बेहद जरूरी थी। कुछ ही समय में बजाज ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड और टाटा मोटर्स ने भी पिंपरी का रुख किया।
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बजाज ने अकुर्दी में अपने दोपहिया और तीन पहिया वाहन बनाने का प्लांट लगाया तो टाटा ने भारी गाड़ियां बनानी शुरू कीं। कुछ ही साल में फिनोलेक्स ने भी पिंपरी में अपनी यूनिट डाल दी। कुछ ही साल में मुख्यमंत्री यशवंत राव चव्हाण ने उद्योग नीति बनाई जिसके तहत कंपनियों को सस्ते प्लॉट और इन्सेंटिव दिए गए ताकि वे महाराष्ट्र में ही काम करें। बिजली, पानी और रोड कनेक्टिविटी दी गई तो कारोबारियों को भी जगह पसंद आने लगी।
लगभग 3000 एकड़ में MIDC ने छोटे-बड़े उद्योगों को बसाना शुरू किया और हर साल यहां की फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ती गई। शुरुआत में ऐसी कंपनियों ने यहां अपना बेस बनाया जिन्हें ओरिजिनकल एक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (OEM) कहा जाता है। जब OEM कंपनियां लग गईं तो उन वेंडरों की भी जरूरत पड़ने लगी जो स्पेयर पार्ट उपलब्ध कराती थीं। ऐसे में स्थानीय कारोबारियों को भी बल मिला और वे भी कारोबार में कूद पड़े।देखते ही देखते 14 से 15 हजार यूनिट यहां लग गईं और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का हर काम यहां होने लगा। 1970 का दशक आया तो स्वीडन की कुछ कंपनियों ने भी पिंपरी चिंचवड का रुख किया। वाल्कन लावल, सांडविक और SKF ने यहां अपने प्लांट लगाए। मौजूदा वक्त में यहां 600 से ज्यादा कंपनियां काम कर रही हैं और लगभग 20 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है।
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