भारत की भूमि ऋषियों, योगियों और देवताओं की तपोभूमि रही है। यहां हर पर्वत, नदी, वन और झील के पीछे कोई न कोई आध्यात्मिक या पौराणिक कथा जुड़ी होती है। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है आदि कैलाश, जिसे श्रद्धापूर्वक 'छोटा कैलाश' भी कहा जाता है। उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित यह स्थान, शिवभक्तों के लिए एक अत्यंत पावन और भावनात्मक तीर्थस्थल है।

 

मूल कैलाश पर्वत, जिसे 'कैलाश मानसरोवर' कहते हैं, वह तिब्बत में स्थित है और इसे भगवान शिव का दिव्य निवास माना जाता है। परंतु यह स्थान भारतीय सीमा में नहीं आता और वहां की यात्रा कठिन, महंगी और राजनीतिक रूप से जटिल होती है। ऐसे में उत्तराखंड में स्थित आदि कैलाश, जो देखने में भी मूल कैलाश पर्वत के समान प्रतीत होता है, श्रद्धालुओं के लिए एक वैकल्पिक लेकिन उतना ही पवित्र स्थल बन गया है।

आदि कैलाश क्यों कहलाता है छोटा कैलाश?

आदि कैलाश की चोटी की बनावट कैलाश पर्वत जैसी है- सफेद, सीधी और त्रिकोणाकार। स्थानीय लोग इसे शिवजी का ही एक रूप मानते हैं और यह विश्वास करते हैं कि आदिकाल में भगवान शिव ने यहीं पर तपस्या की थी। इसी कारण इसे ‘आदि’ (प्रारंभिक) कैलाश कहा जाता है।

 

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इसकी महिमा इतनी है कि लोग इसे ‘कैलाश का प्रतिरूप’ कहते हैं। कठिन ट्रेकिंग, ऊंचाई और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह स्थल भी आध्यात्मिक साधकों को कैलाश जैसी ही अनुभूति देता है। इसलिए इसे सम्मानपूर्वक 'छोटा कैलाश' भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा और मान्यता

एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ हुआ था और भगवान शिव ने पृथ्वी पर कदम रखा, तो उन्होंने सबसे पहले तपस्या के लिए जिस स्थान को चुना वह यही आदि कैलाश था। कई पुराणों में वर्णन आता है कि शिव ने सबसे पहले इसी पर्वत पर समाधि लगाई थी। कालांतर में वे मानसरोवर के समीप स्थित कैलाश पर्वत पर चले गए। यह भी माना जाता है कि पार्वती माता का विवाह होने से पहले शिवजी ने यहीं पर साधना की थी, ताकि वे गृहस्थ जीवन के योग्य बन सकें। तब ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं ने भी यहीं पर आकर भगवान शिव की स्तुति की थी।

 

एक अन्य लोककथा के अनुसार, जब सती का शरीर खंडित हुआ था और भगवान शिव शोक में डूबे कैलाश से चल पड़े थे, तो वे आदि कैलाश क्षेत्र में भी कुछ समय रुके थे। यह स्थान उनकी मौन और ध्यान की अवस्था से जुड़ा हुआ माना जाता है। यहां स्थित ‘पार्वती सरोवर’ के बारे में मान्यता है कि माता पार्वती यहां स्नान करती थीं और इसी जल से भगवान शिव को अभिषेक किया जाता था। यह सरोवर अब भी यहां के यात्रियों का प्रमुख आकर्षण है।

भौगोलिक स्थिति और धार्मिक महत्व

आदि कैलाश भारत-तिब्बत सीमा के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए धारचूला से यात्रा प्रारंभ होती है और फिर गुंजी, कालापानी होते हुए पर्वतराजों के बीच से होकर यह पवित्र स्थल आता है। यहां पहुंचने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है क्योंकि यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है।

 

यहां स्थित 'ओम् पर्वत' भी एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। यह पर्वत प्राकृतिक रूप से ऐसे आकार में बना है कि उस पर ‘ॐ’ की आकृति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ऐसा दृश्य संसार में और कहीं देखने को नहीं मिलता। शिवभक्तों के लिए यह ॐ पर्वत, शिव के प्रतीक रूप में अत्यंत पवित्र है।

 

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यह क्षेत्र केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और प्राकृतिक विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऊंचे हिमालयी क्षेत्र में स्थित यह स्थान फूलों, झीलों और बर्फ से ढकी चोटियों के बीच दिव्यता का अनुभव कराता है।

आध्यात्मिक और साधना के लिए उपयुक्त स्थान

आदि कैलाश एक ऐसा स्थान है जहां आधुनिक जीवन की हलचल से दूर, आत्मा को शांति मिलती है। यहां की ऊंचाई, शुद्ध हवा, हिमालय की गोद और शिवजी की उपस्थिति का एहसास साधकों को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है। यहां पहुंचकर व्यक्ति अपने भीतर की यात्रा भी शुरू करता है।

 

जो भक्त मानसरोवर तक नहीं जा सकते, उनके लिए आदि कैलाश वही आध्यात्मिक अनुभूति देता है। विशेषकर सावन माह, शिवरात्रि या श्रावण सोमवार के दिनों में यहां की यात्रा का विशेष महत्व होता है।