सिख धर्म में बैसाखी पर्व का खास स्थान है। इस दिन गुरुद्वारों में अरदास की जाती है, नगर कीर्तन निकाला जाता और लंगर का आयोजन होता है। इसी नगर कीर्तन का नेतृत्व ‘पंज प्यारे’ करते हैं, जिन्होंने अपने धर्म, गुरु और सत्य के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया। ‘पंज प्यारे’ का मतलब है- वह पांच प्यारे, जिन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी ने खुद चुना और धर्म की रक्षा के लिए तैयार किया। सिख इतिहास में इनका स्थान सम्मानित होता है और आज भी ये निभाई जाती है।

पंज प्यारे कौन हैं?

पंज प्यारे वह पहले पांच सिख थे जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी की परीक्षा में खरे उतरते हुए बिना किसी झिझक के अपने प्राणों की आहुति देने की इच्छा जताई। इन पांचों का नाम था- भाई दया सिंह (लाहौर), भाई धर्म सिंह (दिल्ली), भाई मोहकम सिंह (द्वारका), भाई साहिब सिंह (बिदर, कर्नाटक), भाई हिम्मत सिंह (जगन्नाथ पुरी)। ये सभी अलग-अलग क्षेत्र और जाति से आए थे लेकिन गुरु जी ने इन्हें एक समान दर्जा देकर यह सिद्ध किया कि सिख धर्म में जात-पात और भेदभाव की कोई जगह नहीं है।

 

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प्रथा की शुरुआत कब हुई?

इस परंपरा की नींव बैसाखी के दिन 1699 में आनंदपुर साहिब में रखी गई थी। उस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने हजारों श्रद्धालुओं की सभा में तलवार निकालकर पूछा – ‘कौन है जो धर्म के लिए अपने प्राण देगा?’ पहले भाई दया सिंह आगे आए और उसके बाद चार और सिख। गुरु जी ने एक-एक को भीतर ले जाकर प्रतीकात्मक रूप से सिर कलम किया (लेकिन वास्तव में उन्हें आशीर्वाद दिया और विशेष सेवा के लिए तैयार किया)।

 

इसके बाद उन्होंने एक लोहे के बर्तन में पानी और पताशा मिलाकर ‘अमृत’ तैयार किया और पांचों को अमृत छका कर उन्हें ‘पंज प्यारे’ की उपाधि दी।

इनका दायित्व क्या है?

पंज प्यारे सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं हैं, बल्कि सिख धर्म में इनका एक गंभीर धार्मिक और सामाजिक दायित्व होता है। इनका काम है-

  • अमृत संचार (दीक्षा) करना – किसी को खालसा पंथ में दीक्षित करना।
  • संगत का नेतृत्व करना – धार्मिक आयोजनों और यात्राओं में मार्गदर्शन देना।
  • सिख मर्यादा और अनुशासन की रक्षा – धर्म से संबंधित फैसलों में सामूहिक रूप से विचार करना।
  • गुरु की भूमिका निभाना – गुरु गोबिंद सिंह जी ने ऐलान किया था कि उनके बाद गुरु ग्रंथ साहिब और पंज प्यारे ही सिखों के मार्गदर्शक होंगे।

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इस पद के नियम क्या हैं?

पंज प्यारे की उपाधि लेने के लिए, उन्हें पहले अमृतधारी सिख होना चाहिए। अमृतधारी वह सिख होते हैं, जिनका अमृत संस्कार हुआ है और वह खालसा के सदस्य हैं। साथ ही उन्हें सिख मर्यादा का पालन करना होता है और अनुशासित जीवन जीने वाला होना चाहिए। एक नियम यह भी है कि उनके जीवन में ईमानदारी, सेवा भावना और धार्मिक ज्ञान होना अनिवार्य है। इन ‘पंज प्यारों’ का चुनाव आमतौर पर संगत द्वारा किया जाता है।