हनुमान जी को हिंदू धर्म में अमरता यानी चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। इससे जुड़ी एक बेहद रोचक कथा है, जिसमें कहा गया है कि हनुमान जी ने पहले इस वरदान को स्वीकार करने से मना कर दिया था। यह कथा न केवल उनकी विनम्रता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सच्चे भक्त के लिए सेवा और समर्पण ही सबसे बड़ी प्राप्ति होती है।
हनुमान जी और चिरंजीवी होने आशीर्वाद
पौराणिक कथा के अनुसार, जब रामायण काल का युद्ध समाप्त हो चुका था। लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौट चुके थे और उनका राजतिलक हो चुका था। श्रीराम के जीवन का यह काल बहुत ही सुखद और शांतिपूर्ण था। सभी सेवक, मित्र और परिजन आनंदित थे। हनुमान जी, जो कि भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे, उस समय निष्ठा और सेवा भाव में तत्पर थे। वह श्रीराम के दरबार में बिना किसी गर्व या विशेष अधिकार के उपस्थित रहते थे। उन्हें कभी अपने बल, बुद्धि या वीरता पर अभिमान नहीं हुआ।
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इसी समय, देवताओं में एक सभा आयोजित हुई जिसमें सभी देवताओं ने विचार किया कि धरती पर ऐसे वीर, बुद्धिमान और समर्पित भक्त बहुत कम होते हैं। इसलिए हनुमान जी को चिरंजीवी बनने का आशीर्वाद दिया जाना चाहिए, ताकि वे युगों-युगों तक धर्म की रक्षा करते रहें और भक्तों की सहायता करें।
यह प्रस्ताव लेकर देवताओं ने श्रीराम से अनुरोध किया कि वे हनुमान जी को अमरता का वरदान दें। श्रीराम ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और हनुमान जी को बुलाकर कहा, 'हे पवनपुत्र! मैं तुम्हें चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देता हूं। तुम युगों-युगों तक जीवित रहोगे, भक्तों के कष्ट दूर करोगे और धर्म की रक्षा करोगे।'
हालांकि, यह सुनते ही हनुमान जी अत्यंत शांत और विनम्र भाव से बोले, 'प्रभु, यदि यह वरदान मेरे अहंकार को बढ़ाए, तो मैं इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। मैं तो केवल आपकी सेवा के लिए ही जन्मा हूं। जब तक आप मुझे सेवा का अवसर देंगे, मैं सुखी रहूंगा। अमरता मेरे लिए किसी अर्थ की नहीं जब तक मैं आपकी कृपा से जुड़ा नहीं हूं।”
हनुमान जी की यह बात सुनकर पूरा दरबार भावविभोर हो गया। श्रीराम ने मंद हंसी के साथ कहा 'हे मारुतनंदन! यही तो तुम्हारी महानता है। तुम्हारा यह त्याग ही तुम्हें और भी महान बनाता है लेकिन मेरी आज्ञा से ही तुम चिरंजीवी रहोगे, ताकि हर युग में तुम धर्म का साथ दे सको और जो भी भक्त तुम्हारा स्मरण करे, उसकी रक्षा कर सको।'
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चिरंजीवी हनुमान का महत्व
इसके बाद हनुमान जी को औपचारिक रूप से अमरता का वरदान दिया गया। कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और जहां भी भगवान श्रीराम का नाम लिया जाता है, हनुमान जी वहां उपस्थित होते हैं।
उनका यह त्यागपूर्ण भाव हमें यह सिखाता है कि सेवा और समर्पण ही सच्चे भक्ति के लक्षण हैं। उन्होंने कभी चमत्कारों या वरदानों पर गर्व नहीं किया, बल्कि अपनी विनम्रता और निष्ठा से ही महानता प्राप्त की।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।