बांके बिहारी मंदिर, उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित एक प्रमुख और पूज्य मंदिर है, जो भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप ‘बांके बिहारी’ को समर्पित है। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का यह केंद्र सालभर भक्तों से भरा रहता है लेकिन अक्षय तृतीया के दिन इस मंदिर में एक विशेष दृश्य देखने को मिलता है- भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन। बांके बिहारी का यह दर्शन केवल साल में एक ही बार किया जाता है। आइए जानते हैं क्या है कारण और इस मंदिर से जुड़ी खास बातें।
क्या है चरण दर्शन की विशेषता?
बांके बिहारी मंदिर में आम दिनों में भगवान के चरणों को पर्दे से ढका जाता है। पूरा स्वरूप देखने को तो मिलता है लेकिन चरण दर्शन सिर्फ साल में एक बार अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
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मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण के चरण इतने प्रभावशाली और चमत्कारी हैं कि बार-बार देखने से भक्त उनसे मोहग्रस्त हो जाते हैं और सांसारिक जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं। यही कारण है कि मंदिर में भगवान के चरणों को पर्दे से ढककर रखा जाता है।
हालांकि अक्षय तृतीया का दिन ऐसा है, जो स्वयंसिद्ध और शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान के चरण-दर्शन को विशेष पुण्यदायी और मोक्षदायक माना गया है। ऐसा विश्वास है कि जो भी इस दिन श्रीकृष्ण के चरणों के दर्शन करता है, उसे जीवन में अपार सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
बांके बिहारी मंदिर का इतिहास
बांके बिहारी मंदिर का निर्माण 1864 ईस्वी में स्वामी हरिदास द्वारा करवाया गया था, जो स्वयं रसिक संत और संगीतज्ञ थे तथा प्रसिद्ध तानसेन के गुरु भी माने जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि स्वामी हरिदास की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण और राधारानी उनके सामने प्रकट हुए। उन्होंने अनुरोध किया कि वे एक ही रूप में सदा विराजमान रहें, जिससे भक्त दर्शन कर सकें। इस रूप को ही बांके बिहारी कहा गया — 'बांके' यानी थोड़ा झुका हुआ (त्रिभंगी मुद्रा में) और 'बिहारी' यानी वृंदावन के राजा।
भगवान की यह प्रतिमा राधा रानी और भगवान कृष्ण का एक रूप है। यही कारण है कि यहां पूजा-पाठ में विशेष परंपरा अपनाई जाती हैं। मंदिर की विशेषता यह भी है कि आरती प्रतिदिन नहीं होती, बल्कि साल में कुछ खास अवसरों पर ही की जाती है, क्योंकि भगवान को अधिक बाहरी अनुष्ठान प्रिय नहीं हैं — उन्हें स्नेह, भक्ति और रसिक भक्ति भाव ही ज्यादा पसंद है। इसके साथ बांके बिहारी मंदिर में हर पांच मिनट पर पर्दे बंद कर दिए जाते हैं। साथ ही साल में एक बार बांके बिहारी हाथों में बांसुरी धारण करते हैं और श्रावण मास में सिर्फ एक दिन उन्हें झूले पर बैठाया जाता है।
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अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय तृतीया को हिन्दू धर्म में बेहद शुभ दिन माना गया है। यह वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आती है और इसे अक्षय पुण्य का दिन कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है – ऐसा पुण्य जो कभी समाप्त नहीं होता।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। साथ ही, सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी दिन हुई थी। इसलिए यह दिन देवी-देवताओं के पूजन, धर्म कार्यों, नए कार्यों की शुरुआत, विवाह, दान-पुण्य और विशेष पूजा के लिए उत्तम माना जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।