सनातन धर्म में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों से जुड़ी कथाएं बहुत प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक भगवान विष्णु के छठे रूप भगवान परशुराम की कथाएं भी सुनी और पढ़ी जाती हैं। त्रेतायुग में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर महर्षि जमदग्नि और रेणुका के घर जन्में भगवान परशुराम अपने उग्र रूप और अधर्म के संहारक के रूप में पूजे जाते हैं। वेदों में भगवान परशुराम के जीवन काल से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे प्रचलित कथा- अपनी माता रेणुना का सिर काटने की है। हालांकि, कई लोग इसके पीछे छिपा कारण नहीं जानते हैं। आइए पढ़ते हैं, भगवान परशुराम की कथाएं जिनमें उन्होंने अधर्म का नाश किया था।

पिता की आज्ञा पर माता का वध

भगवान परशुराम, महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। उनकी माता बहुत पतिव्रता और तपस्विनी थीं लेकिन एक दिन उन्होंने नदी किनारे एक सुंदर गंधर्व को देखकर मन में हल्का आकर्षण आने दिया। यह बात उनके पति जमदग्नि को अपने तपोबल से ज्ञात हो गई। क्रोधित होकर उन्होंने अपने बेटों से माता का वध करने को कहा। उनके चारों बड़े बेटों ने यह करने से इनकार कर दिया लेकिन परशुराम पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानते थे। उन्होंने बिना संकोच माता का सिर धड़ से अलग कर दिया।

 

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पिता अपने पुत्र की आज्ञा-पालन से प्रसन्न होकर बोले – ‘वर मांगो।’ तब परशुराम ने मां को जीवनदान और भाइयों को सद्बुद्धि देने का वरदान मांगा। इस घटना से परशुराम के क्रोध और उनकी पितृभक्ति दोनों झलकती हैं।

सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध

एक समय की बात है, सहस्त्रबाहु नामक राजा बहुत बलशाली और अहंकारी था। वह एक दिन महर्षि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचा, जहां उसे कामधेनु गाय दिखाई दी। यह दिव्य गाय ऋषि को भगवान से प्राप्त हुई थी और उससे कोई भी वस्तु तुरंत प्राप्त की जा सकती थी। राजा ने उस गाय को बलपूर्वक छीनने की कोशिश की। जब ऋषि ने विरोध किया तो राजा ने उन्हें मार डाला और गाय को लेकर चला गया।

 

जब परशुराम को यह भयंकर समाचार मिला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने तुरंत अपने पिता की हत्या का बदला लेने का निश्चय किया। परशुराम ने सहस्त्रबाहु के महल पर धावा बोल दिया। भयंकर युद्ध हुआ और अंत में परशुराम ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया।

क्षत्रियों का इक्कीस बार संहार

अपने पिता की हत्या के बाद भगवान परशुराम का गुस्सा शांत नहीं हुआ। उन्होंने यह प्रण लिया कि जो भी क्षत्रिय राजा अन्यायी और अत्याचारी होगा, उसे वे पृथ्वी से समाप्त कर देंगे। उन्होंने भारतवर्ष में भ्रमण कर अनेक अत्याचारी क्षत्रियों राजाओं का वध किया। कहते हैं कि उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन कर दिया।

 

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प्रत्येक युद्ध में वह अकेले ही हजारों योद्धाओं को पराजित कर देते थे। उनका यह अभियान तब तक चला जब तक उन्होंने संतोष नहीं पाया और पृथ्वी से अन्याय का बोझ कम नहीं हो गया। बाद में उन्होंने अपना समस्त धन ऋषियों को दान में दे दिया और तपस्या करने चले गए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।