शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। वे केवल विनाश के देवता ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने वाले परमात्मा माने जाते हैं और इसलिए उन्हें महादेव भी कहा जाता है।

 

धर्म ग्रंथों में सृष्टि के नियमों का विस्तार से किया गया है, जिससे इसका संचालन बिना किसी बाधा के हो सके लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन नियमों के रचयता भगवान शिव को कहा जाता है? वेद-पुराण में यह बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की, तब इसे सही तरीके से संचालित करने के लिए भगवान शिव ने कुछ नियम बनाएं।

 

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कर्म का नियम

भगवान शिव के अनुसार, हर जीव को अपने कर्मों के आधार पर फल मिलता है। यह नियम संपूर्ण सृष्टि के संचालन में सबसे महत्वपूर्ण है। किसी को उसके जन्म, जाति या कुल के अनुसार नहीं, बल्कि उसके कर्मों के अनुसार ही सुख और दुख प्राप्त होते हैं। जो अच्छे कर्म करता है, उसे अच्छा फल मिलता है, और जो बुरे कर्म करता है, उसे उसका दंड भुगतना पड़ता है।

सृजन और संहार का नियम

महादेव ही सृजन और संहार के अधिपति हैं। उन्होंने यह नियम बनाया कि जो भी जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित होती है। यह चक्र निरंतर चलता रहेगा, जिससे सृष्टि में संतुलन बना रहेगा। अगर कोई जीव अमर हो जाए, तो पृथ्वी पर असंतुलन फैल सकता है, इसलिए शिव ने जन्म और मृत्यु का नियम बनाया ताकि सृष्टि में संतुलन बना रहे।

शिव और शक्ति का नियम

भगवान शिव ने यह नियम बनाया कि मनुष्य और प्रकृति (शक्ति) के संतुलन से या इसका एक और अर्थ देखें तो पुरुष और महिला(शक्ति) के समन्वय से ही सृष्टि चल सकती है। वे स्वयं अर्धनारीश्वर के रूप में इस सत्य को दर्शाते हैं कि बिना शक्ति के शिव अधूरे हैं और बिना शिव के शक्ति अधूरी है। इस नियम के आधार पर सृष्टि की रचना हुई, जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों की समान भूमिका है। संसार में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों का सहयोग आवश्यक है।

ध्यान और आत्मज्ञान का नियम

भगवान शिव को आदियोगी भी कहा जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने संसार को बताया कि आध्यात्मिक ज्ञान ही असली धन है। भौतिक सुख-सुविधा और सांसारिक संपत्ति कुछ समय तक ही सीमित है लेकिन आत्मज्ञान अमर है। उन्होंने यह नियम बनाया कि जो ध्यान और तपस्या करेगा, वही सत्य को प्राप्त कर सकेगा।

विनम्रता और अहंकार का नियम

शिव ने यह नियम बनाया कि अहंकार का अंत निश्चित है। जो व्यक्ति अहंकारी होगा, उसका पतन निश्चित है। रावण, भस्मासुर और अन्य कई राक्षसों ने जब शिव से शक्तियां प्राप्त कीं लेकिन जब वे अहंकार में चूर हो गए तो अंत उनका नाश हो गया।

 

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भक्ति और प्रेम का नियम

भगवान शिव ने यह नियम बनाया कि सच्चे प्रेम और भक्ति से ही भगवान को पाया जा सकता है। वे केवल दिखावे की पूजा को स्वीकार नहीं करते, बल्कि भक्त के दिल की सच्चाई को महत्व देते हैं। भक्त चाहे कोई भस्मासुर जैसा राक्षस हो या मार्कंडेय ऋषि जैसा संत, अगर उनकी भक्ति सच्ची होगी, तो महादेव उन्हें आशीर्वाद जरूर देते हैं।

मृत्यु के बाद न्याय का नियम

शिव ने यह नियम भी बनाया कि हर व्यक्ति को मृत्यु के बाद उसके कर्मों के अनुसार न्याय मिलेगा। वे मृत्यु के देवता यमराज को यह आदेश देते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे कर्म करेगा, उसे स्वर्ग मिलेगा और जो बुरे कर्म करेगा, उसे नरक जाना होगा। इसी आदेश का पालन कर यमराज स्वर्ग या नर्क प्रदान करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।