भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित सांची स्तूप एक प्राचीन बौद्ध स्मारक है, जिसे न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से बल्कि धार्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में, भोपाल से लगभग 46 किलोमीटर दूर सांची नामक स्थान पर स्थित है।

सांची स्तूप का इतिहास

सांची स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था। सम्राट अशोक ने जब कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया, तो उन्होंने भगवान बुद्ध की अस्थियों को विभाजित कर देश भर में कई स्तूपों में संरक्षित करवाया। सांची स्तूप उन्हीं प्रमुख स्तूपों में से एक है, जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों के अवशेष रखे गए हैं।

 

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शुरुआत में यह स्तूप केवल एक मिट्टी और ईंट से बनी संरचना थी लेकिन बाद में इसे पत्थरों और नक्काशीदार तोरण द्वारों से सजाया गया। सांची स्तूप के चारों ओर चार भव्य तोरण (द्वार) बने हैं जो बौद्ध धर्म की कहानियों, जातक कथाओं और बुद्ध के जीवन प्रसंगों को चित्रों के माध्यम से दर्शाते हैं।

बौद्ध धर्म में इसका महत्व

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सांची स्तूप एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्तूप केवल एक स्मारक नहीं है, बल्कि ध्यान, साधना और शांति का प्रतीक भी है। यहां आने वाले श्रद्धालु स्तूप की परिक्रमा करते हैं, जिसे 'प्रदक्षिणा' कहा जाता है। यह परिक्रमा घड़ी की दिशा में की जाती है, जो श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है।

 

सांची स्तूप बुद्ध की निर्वाण अवस्था (मोक्ष) को दर्शाता है। यह प्रतीक है कि कैसे एक व्यक्ति सांसारिक जीवन से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की ओर जा सकता है। इस स्तूप की संरचना भी बौद्ध दर्शन को दर्शाती है- ऊपर की ओर गोलाकार गुम्बद मोक्ष को और नीचे की चौड़ी आधारशिला भौतिक संसार को दिखाती है।

स्थापत्य और कला

सांची स्तूप को विश्व धरोहर (World Heritage Site) के रूप में यूनेस्को ने मान्यता दी है। इसके चारों तोरण द्वारों पर की गई बारीक नक्काशी और मूर्तिकला अद्भुत है। ये मूर्तियां बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को सुंदर और प्रतीकात्मक तरीके से प्रस्तुत करती हैं।

 

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यहां बुद्ध को प्रत्यक्ष रूप में नहीं दिखाया गया, बल्कि उनके प्रतीकों के माध्यम से जैसे- धर्मचक्र, बोधि वृक्ष, चरण चिन्ह आदि के द्वारा उनकी उपस्थिति दर्शाई गई है।

आधुनिक समय में

आज सांची स्तूप एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जहां भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी बौद्ध अनुयायी और पर्यटक आते हैं। हर साल यहां बौद्ध पर्वों पर विशेष आयोजन होते हैं। यहां एक बौद्ध संग्रहालय भी है, जिसमें कई ऐतिहासिक वस्तुएं और स्तूप से जुड़ी जानकारियां रखी गई हैं।