सनातन धर्म में चैत्र नवरात्रि पर्व का अपना एक विशेष महत्व रखता है। चैत्र नवरात्रि के देवी आदिशक्ति के नौ दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है। शास्त्रों में भी चैत्र नवरात्रि के महत्व को विस्तार से बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिनों में पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होता है। साथ ही इन नौ दिनों में कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है। आइए जानते हैं, क्या है चैत्र नवरात्रि के नियम।
चैत्र नवरात्रि के नियम
- चैत्र नवरात्रि में भक्त पूरे नौ दिनों तक या पहले और आखिरी दिन उपवास रख सकते हैं। बता दें कि उपवास में फल, दूध, साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, आलू और सेंधा नमक का ही सेवन किया जाता है। इस दौरान अनाज, प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा का सेवन भुलकर भी करना चाहिए। साथ कोई व्यक्ति यदि व्रत नहीं रख सकता, तो वह एक समय सात्विक भोजन कर सकता है।
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- बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, जिसे घटस्थापना कहते हैं। इसके लिए सबसे पहले मां दुर्गा की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें और विधिवत कलश स्थापित करें। साथ ही हर दिन माता को लाल फूल, अक्षत (चावल), कुमकुम, नारियल और मिठाई अर्पित की जाती है।
- भक्त माता के विभिन्न रूपों की पूजा करके दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य या अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। इस दौरान अखंड ज्योत जलाने की परंपरा भी होती है, जो पूरे नौ दिनों तक जलता रहता है।
- नवरात्रि के दौरान मन, वचन और कर्म से पवित्रता बनाए रखना जरूरी होता है। इस दौरान झूठ, क्रोध, बुरे विचार और नकारात्मकता से बचना चाहिए। साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करना और संयमित जीवन जीना शुभ माना जाता है।
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- नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन किया जाता है, जिसमें नौ कन्याओं को भोजन कराकर माता का आशीर्वाद लिया जाता है। नवमी तिथि को हवन करने की भी परंपरा है, जिससे व्रत पूर्ण होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी ज्योतिष शास्त्र, सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।