अध्यात्म सिर्फ पूजा-पाठ और मंत्र जाप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अनुशासन का एक बड़ा माध्यम है। अध्यात्म के जानकार बताते हैं कि यह मनुष्य को आत्मा की गहराइयों से जोड़ने, सत्य की खोज करने और अपने वास्तविक रूप जानने की प्रेरणा चाहिए। कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर लौटना चाहता है तो उन्हें सबसे पहले खुद का ज्ञान होना चाहिए। आइए जानते हैं कि अध्यात्म कि ओर लौटने के लिए क्या करना चाहिए।
आध्यात्मिकता की ओर पहला कदम क्या
सनातन धर्म में कहा गया है कि 'आत्मानं विद्धि' यानी पहले स्वयं को जानो। जब कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर लौटना चाहता है, तो सबसे पहले उन्हें अपने भीतर झांकना होगा। बाहरी दुनिया में सुख और शांति ढूंढने के बजाय आत्म-चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए।
इसके लिए योग-ध्यान सबसे कारगर माना जाता है। इसलिए हर दिन कुछ समय निकालकर शांति से बैठे और मस्तिष्क में 'मैं कौन हूं?', 'मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?' जब ये सवाल गहराई से मन में उठते हैं, तो व्यक्ति का झुकाव ईश्वर और आत्मा की ओर होने लगता है।
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संस्कृति और धर्मग्रंथों की ओर झुकाव
सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह किसी एक नियम या ग्रंथ में बंधा नहीं है, बल्कि यहां अनेक ग्रंथ और परंपराएं हैं। कोई भी व्यक्ति जो अध्यात्म की ओर बढ़ना चाहता है, उन्हें भगवद गीता, उपनिषद, रामायण और वेदों का अध्ययन करना चाहिए।
भगवद गीता को विशेष रूप से अध्यात्म का अमृत कहा जाता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह हर युग के हर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन है। इस धार्मिक ग्रंथ में आत्मा, कर्म, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष के विषय में स्पष्ट विवरण मिलता है। इसके अलावा योग और ध्यान का अभ्यास करने से भी व्यक्ति अपने मन को शांत कर सकता है और अपने भीतर ईश्वर की अनुभूति कर सकता है। अन्य धर्मों के लोग अपने-अपने धार्मिक ग्रंथ का अध्ययन कर सकते हैं।
अध्यात्मिकता की ओर पहला कदम सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं होना चाहिए। ज्ञान के साथ श्रद्धा और भक्ति भी होनी चाहिए। सनातन धर्म में कहा गया है कि 'श्रद्धावान लभते ज्ञानम्' अर्थात जो श्रद्धा रखता है, वही सच्चे ज्ञान को प्राप्त करता है।
इसलिए जब यह आभास हो जाए कि अध्यात्म की ओर कदम बढ़ चुके हैं, तब भगवान का स्मरण, कीर्तन और प्रार्थना करनी चाहिए। इससे व्यक्ति का हृदय शुद्ध होता है और मन में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है। कोई व्यक्ति यदि किसी विशेष देवता की पूजा करता है, तो उन्हें उस देवता के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई श्रीराम को पूजता है, तो उन्हें रामायण पढ़नी चाहिए और उनके गुणों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।
सत्संग और गुरु की शरण
किसी भी आध्यात्मिक मार्ग में अकेले आगे बढ़ना कठिन हो सकता है। इसलिए, सही मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए संत, विद्वान और गुरु के साथ सत्संग करना बहुत जरूरी होता है। सत्संग का अर्थ सिर्फ किसी कथा या प्रवचन को सुनना नहीं, बल्कि उन विचारों को अपने जीवन में उतारना भी है। जब व्यक्ति अच्छे विचारों और सकारात्मक वातावरण में रहता है, तो उसकी आध्यात्मिक चेतना तेज़ी से बढ़ती है।
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सादा जीवन, उच्च विचार
अध्यात्म में सादगी को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। भोग-विलास में फंसे रहने से व्यक्ति कभी भी आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए, जो व्यक्ति सनातन अध्यात्म की ओर लौटना चाहता है, उन्हें अहंकार, लालच, ईर्ष्या और क्रोध को त्यागकर सरल और सादा जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।
अध्यात्म का अर्थ यह नहीं कि संसार को छोड़ दिया जाए, बल्कि इसमें रहकर अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित किया जाए। गीता में श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि 'कर्म करो, फल की चिंता मत करो'। जब व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है, तो वह धीरे-धीरे बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर के निकट जाने लगता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।