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होली पर्व से जुड़ी 5 कहानियां, जो बताती हैं इस त्योहार का महत्व

होली से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, इनमें भक्त प्रह्लाद की कथा, श्री कृष्ण और राधा की कथा शामिल है। आइए पढ़ते हैं इस पर्व से जुड़ी 5 पौराणिक कथाएं, जो बताती हैं इस त्योहार का महत्व।

AI Image of Shri Krishna Radha Holi

श्री कृष्ण और राधा रानी होली खेलते हुए।(Photo Credit: AI Image)

होली भारत का एक महत्वपूर्ण और रंगों से भरा त्योहार है, जिसे पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह केवल रंगों का पर्व नहीं, बल्कि इसमें अनेक धार्मिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं, जो इसके महत्व को दर्शाती हैं। आइए, होली से जुड़ी पांच प्रमुख कहानियों को जानते हैं, जो इस पर्व का गहरा अर्थ समझाती हैं।

प्रह्लाद और होलिका की कथा

यह कहानी भक्त प्रह्लाद और उसकी दुष्ट बुआ होलिका से जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक अहंकारी राजा था, जिसे अपनी शक्ति पर घमंड था। उसने पूरे राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था। यह देखकर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए।

 

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अंत में, उसने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका को एक वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। इसी घटना की याद में होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

राधा-कृष्ण और रंगों की होली

भगवान श्रीकृष्ण और राधा की प्रेम कहानी भी होली से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि बालकृष्ण का रंग गहरा नीला था, जिससे वे चिंतित रहते थे कि राधा और अन्य गोपियां उन्हें पसंद नहीं करेंगी।

 

माता यशोदा ने उनसे कहा कि वे राधा पर अपनी पसंद का कोई भी रंग लगा सकते हैं। कृष्ण ने राधा और उनके सखाओं पर रंग डाल दिया और इस तरह ब्रज में रंगों की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई। आज भी वृंदावन और बरसाने में खासतौर पर राधा-कृष्ण की होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।

कामदेव और भगवान शिव की कथा

भगवान शिव की गहरी तपस्या को भंग करने के लिए देवताओं ने प्रेम के देवता कामदेव को भेजा। शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव ने उन पर प्रेम-बाण चलाया, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी और कामदेव भस्म हो गए। बाद में, कामदेव की पत्नी रति के प्रार्थना करने पर शिवजी ने उन्हें फिर जीवनदान दिया। इस  घटना को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है और कुछ स्थानों पर इसे होली से जोड़ा जाता है।

ध्रुव की कथा

एक अन्य कथा राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव से जुड़ी हुई है। उनकी सौतेली मां सुरुचि ने उन्हें गोद में बैठने से रोक दिया और कहा कि यदि वह भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर लें, तो ही राजा के गोद में स्थान पा सकते हैं।

 

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ध्रुव ने घने जंगल में जाकर कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे अमरता का आशीर्वाद दिया और उन्हें ध्रुव तारा के रूप में स्थान मिला। होली पर्व पर यह कथा इसलिए सुनाई जाती है क्योंकि यह बताती है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

पांडव और द्रौपदी की होली

महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपना वनवास समाप्त कर हस्तिनापुर लौटे, तब उन्होंने पहली बार होली का त्योहार मनाया। द्रौपदी, जो स्वयं अग्नि की पुत्री मानी जाती थीं, ने इस अवसर पर सभी को गुलाल लगाकर आनंद मनाने के लिए प्रेरित किया। इस कथा के अनुसार, होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं बल्कि नई शुरुआत, भाईचारे और प्रेम का प्रतीक भी है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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