राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला और आस्था का एक अद्भुत संगम है। सफेद संगमरमर से बने इस मंदिर की नक्काशी इतनी बारीक है कि पत्थर में जीवंत भाव झलकते हैं। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह मंदिर मोक्ष और आत्मिक शांति का प्रतीक माना जाता है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, यहां दर्शन और पूजा करने से व्यक्ति के पापों का क्षय होता है और आत्मा को शुद्धि प्राप्त होती है। 

 

माना जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से दिलवाड़ा मंदिर में प्रार्थना करता है, उसे जीवन में आध्यात्मिक शांति और मोक्ष मार्ग की दिशा मिलती है। दिलवाड़ा मंदिर परिसर में पांच मुख्य जैन मंदिर हैं, जिसमें विमल वासाही, लूण वासाही, पीठलहर, खरतर वासाही और महावीर स्वामी मंदिर। हर मंदिर अलग-अलग जैन तीर्थंकरों को समर्पित है और हर मंदिर की दीवारों, छतों और स्तंभों पर की गई नक्काशी में भारतीय कला का बेजोड़ उदाहरण देखने को मिलता है।

 

 

दिलवाड़ा मंदिर से जुड़ी जैन धर्म की मान्यता

  • जैन धर्म के अनुसार, दिलवाड़ा मंदिर वह स्थान है जहां तीर्थंकरों की पूजा और आराधना के माध्यम से आत्मा को शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाया गया है।
  • मान्यता है कि यहां पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
  • जैन मतावलंबी मानते हैं कि इस मंदिर में दर्शन करने से व्यक्ति के कर्म बंधन कम होते हैं और उसे मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है।
  • यह स्थान श्वेतांबर जैन संप्रदाय के लिए बहुत पवित्र माना जाता है।

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मंदिर की विशेषताएं

दिलवाड़ा मंदिर अपने संगमरमर की नक्काशी और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। यहां कुल पांच मुख्य मंदिर हैं,

  • विमल वासाही मंदिर - भगवान आदिनाथ (पहले तीर्थंकर) को समर्पित।
  • लूण वासाही मंदिर - भगवान नेमिनाथ (22वें तीर्थंकर) को समर्पित।
  • पीठलहर मंदिर - भगवान ऋषभदेव को समर्पित।
  • खरतर वासाही मंदिर - भगवान पार्श्वनाथ (23वें तीर्थंकर) को समर्पित।
  • महावीर स्वामी मंदिर - भगवान महावीर (24वें तीर्थंकर) को समर्पित।

मंदिर से जुड़ा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

  • मान्यता के अनुसार, दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था।
  • विमल वासाही मंदिर का निर्माण 1031 ईस्वी में वीर विमल शाह ने करवाया था, जो उस समय गुजरात के सोलंकी शासक भीमदेव के मंत्री थे।
  • लूण वासाही मंदिर का निर्माण 1230 ईस्वी में तेजपाल और वस्तुपाल नामक दो भाईयों ने कराया था, जो गुजरात के राजा वीरधवल के प्रधानमंत्री थे।

मंदिर के बनावट की विशेषताएं

  • मंदिर की दीवारें, छतें और स्तंभ इतने सुंदर ढंग से तराशे गए हैं कि संगमरमर में मानो जीवंतता दिखाई देती है।
  • परिसर में स्थित हर मंदिर में संगमरमर की झरोकों, फूलों और देवताओं की कलाकृतियां बारीकी से उकेरी गई हैं।
  • कहा जाता है कि इन नक्काशियों को बनाने में सैकड़ों कारीगरों ने दशकों तक काम किया था।
  • यहां का वातावरण बहुत शांत और आध्यात्मिक है, जहां मोबाइल और फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है, जिससे ध्यान में कोई बाधा न हो।

दिलवाड़ा मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

यह मंदिर माउंट आबू के, सिरोही जिला, राजस्थान।

 

नजदीकी रेलवे स्टेशन:

 

आबू रोड रेलवे स्टेशन– मंदिर से लगभग 28 किलोमीटर दूर है।

 

नजदीकी एयरपोर्ट:

उदयपुर एयरपोर्ट – यहां से लगभग 165 किलोमीटर दूर।

 

सड़क मार्ग:

माउंट आबू तक राजस्थान और गुजरात के कई शहरों से बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।

माउंट आबू से दिलवाड़ा मंदिर तक 2 किलोमीटर की दूरी है, जिसे टैक्सी, ऑटो या पैदल भी तय किया जा सकता है।