हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम देवता के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश की उपासना प्रत्येक मास के चतुर्थी तिथि के दिन करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और दुःख दूर हो जाते हैं। बता दें कि चतुर्थी व्रतों में भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन से गणेश चतुर्थी पर्व का शुभारंभ होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। साल 2025 में 26 अगस्त को यह त्योहार मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस अवधि में श्री गणेश अपने भक्तों से मिलने के लिए धरती पर वास करते हैं। जिस वजह से यह दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दौरान भगवान गणेश के बहुत से भक्त पूजा अर्चना करते हैं। इस अवधि में कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। ऐसे में पूजा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जब भी भगवान गणेश पूजा करें तो कुछ चीजों का भोग वर्जित है। उन चीजों को पूजन में नहीं शामिल करना चाहिए।
यह भी पढ़ें: कितनी तरह से लगा सकते हैं तिलक, मान्यताएं क्या हैं?
इन सात चीजों से न लगाएं भोग
तुलसी के पत्ते
कहा जाता है कि एक बार गणेश जी तपस्या में लीन थे। तभी देवी तुलसी वहां पहुंचीं और उन्हें देखकर विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन गणेश जी ने यह कहते हुए उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि वह ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे हैं। इस पर तुलसी जी क्रोधित हो गईं और गणेश जी को दो विवाह का श्राप दे दिया। इसके प्रत्युत्तर में गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर (राक्षस) से होगा और उनके पत्ते उनकी पूजा में कभी स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
टूटे चावल
अक्षत का अर्थ होता है अखंडित यानी बिना टूटे हुए। चावल का दाना जब बिना टूटा होता है, तभी वह पूर्णता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। अगर चावल टूटे हों तो उसे अधूरा और अशुभ माना जाता है। इसलिए गणेश जी सहित किसी भी देवता को टूटे या खंडित चावल नहीं चढ़ाए जाते।
तामसिक भोजन
हिंदू धर्म में भोजन को तीन गुणों के आधार पर बांटा गया है –
- सात्त्विक (शुद्ध, पवित्र और मन को शांत करने वाला)
- राजसिक (शक्ति और उत्साह देने वाला)
- तामसिक (भारीपन, आलस्य और नकारात्मकता बढ़ाने वाला)
- तामसिक भोजन में जैसे लहसुन, प्याज़, मांस, शराब, अधिक मसालेदार या बासी भोजन शामिल होता है।
यह भी पढ़ें: नागचंदेश्वर मंदिर: यहां साल में सिर्फ एक दिन होते हैं नाग देव के दर्शन
कड़वे पदार्थ (करेला)
कड़वाहट नकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है – पूजा में मिठास, शांति और प्रसन्नता को महत्व दिया जाता है। कड़वे पदार्थ जीवन की कठिनाइयों और दुःख का प्रतीक होते हैं, जबकि भगवान गणेश मंगल, सुख और समृद्धि के देवता हैं।
भगवान गणेश को मिठास प्रिय है – गणेश जी का सबसे प्रिय भोग मोदक और लड्डू हैं, जो मिठास और आनंद का प्रतीक हैं। कड़वे पदार्थ उनके स्वभाव और पूजा के भाव के विपरीत माने जाते हैं।
भोग का उद्देश्य प्रसन्न करना है – पूजा में वही पदार्थ चढ़ाए जाते हैं जो देवता को प्रिय हों और सकारात्मक ऊर्जा दें। कड़वे और कटु स्वाद वाले पदार्थ मन को प्रसन्न नहीं करते, इसलिए गणेश जी को अर्पित नहीं किए जाते।
शास्त्रीय मान्यता – पुराणों और ग्रंथों में उल्लेख है कि गणेश जी को दूध, दूर्वा, गुड़, नारियल, लड्डू और फल अर्पित करना शुभ होता है। कड़वे, नमकीन या तीखे पदार्थ वर्जित हैं।
बासी या पुराना भोजन
हिंदू धर्म में पूजा और भोग का सीधा संबंध शुद्धता और सात्त्विकता से है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलदाता माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा में केवल शुद्ध, ताजे और सात्त्विक पदार्थ ही अर्पित करने का नियम है।
- अशुद्धता का प्रतीक – तलछट या बासी भोजन में नकारात्मक ऊर्जा और अशुद्धि मानी जाती है। यह देवताओं के लिए अनुपयुक्त है।
- सात्त्विकता का अभाव – पुराने भोजन का सात्त्विक गुण खत्म हो जाता है। उसमें तमस और रजस गुण बढ़ जाते हैं, जबकि भगवान गणेश सात्त्विक भोग ही स्वीकार करते हैं।
- स्वास्थ्य और पवित्रता का संकेत – पूजा का हर नियम आध्यात्मिक के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। बासी या तलछट वाला भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए पूजा में भी इसे वर्जित किया गया है।
- देवताओं को ताजगी प्रिय है – शास्त्रों में कहा गया है कि देवता ताजे फूल, फल और भोजन से प्रसन्न होते हैं। पुराने या गंधयुक्त भोजन उन्हें नहीं चढ़ाया जाता, क्योंकि यह श्रद्धा की कमी दर्शाता है।
तिल (तिल के बीज)
कुछ पौराणिक शास्त्रों में तिल को पितृप्रशांतिवर से जोड़कर देखा गया है, इसलिए गणेश चतुर्थी पर तिल अर्पित करना वर्जित माना जाता है।