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नागचंदेश्वर मंदिर: यहां साल में सिर्फ एक दिन होते हैं नाग देव के दर्शन

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित नागचंदेश्वर मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है।

Naag Chandeshwar

नागचंदेश्वर मंदिर| Photo Credit: X handle/ अमर सिंह

मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित नागचंदेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जो अपनी अनोखी परंपरा, विशेष धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथाओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर परिसर के ऊपर तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए यह मंदिर साल में एक बार ही खोला जाता है। यह मंदिर शिवभक्तों और विशेष रूप से नाग पूजा करने वालों के लिए बहुत ही पावन और महत्वपूर्ण स्थान के रूप में माना जाता है।

 

नागचंदेश्वर मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यह पूरे वर्ष बंद रहता है। केवल नाग पंचमी के दिन ही खुलता है। उस दिन श्रद्धालु मंदिर के अंदर जाकर दर्शन कर सकते हैं। बाकी समय मंदिर के मुख्य द्वार के बाहर से ही दर्शन किए जाते हैं। इस मंदिर की यह भी मान्यता है कि यहां बिना पुजारी के पूजा होती है। 

 

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इस मंदिर में एक खास शिवलिंग की प्रतिमा है, जिसके चारों ओर नाग (सांप) लिपटे हुए हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह मूर्ति एक चमत्कारी मूर्ति मानी जाती है, जिसे देखने से ही सर्पदोष और कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। यह मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली में बनी हुई है, जो कि उत्तर भारत के मंदिरों में बहुत कम देखने को मिलती है।

मंदिर की धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएं

नागचंदेश्वर मंदिर शिवभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से नाग दोष, कालसर्प दोष, और अन्य सर्प संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार,जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग होता है, वे लोग यहां विशेष रूप से नाग पंचमी के दिन आकर दर्शन करते हैं और अपने जीवन की बाधाओं से छुटकारा पाने की प्रार्थना करते हैं।

पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, एक बार सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी। तक्षक की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था। मगर इस वरदान को पाने के बावजूद तक्षक खुश नहीं थे। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वह हमेशा उनके सानिध्य में ही रहना चाहते हैं। उन्हें महाकाल वन में ही रहने दिया जाए। भोलेनाथ ने उन्हें महाकाल वन में रहने की अनुमति देते हुए आशीर्वाद दिया की उन्हें एकांत में विघ्न न हो, इस वजह से साल में एक बार सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही इस मंदिर को खोला जाएगा। 

 

 

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार ऋषि चंड ने शिव की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वरदान दिया कि वह सदैव उनके साथ रहेंगे। चंड ऋषि को शिवजी ने आशीर्वाद दिया कि उनका नाम नागों के साथ जुड़कर अमर होगा और वे उज्जैन में नागचंदेश्वर रूप में पूजे जाएंगे।

 

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यह भी मान्यता है कि जब राजा विक्रमादित्य ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया, तब उन्होंने शिवभक्त नागों के लिए विशेष मंदिर निर्माण की योजना बनाई और तब यह नागचंदेश्वर मंदिर स्थापित किया गया।

नाग पंचमी पर विशेष आयोजन

नागचंदेश्वर मंदिर में नाग पंचमी के दिन विशेष पूजा, अभिषेक और दर्शन का आयोजन होता है। इस दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उज्जैन पहुंचते हैं और रातभर कतार में खड़े रहकर मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं। जैसे ही मंदिर का कपाट खुलता हैं, लोग भाव-विभोर होकर दर्शन करते हैं और अपने कष्टों से मुक्ति की कामना करते हैं।

 

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इस दिन विशेष रूप से दूध, हल्दी, कुशा, नागकेसर और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा से पूजा करता है, उसके जीवन की सभी सर्प बाधाएं दूर हो जाती हैं।

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