उत्तराखंड की ऊंची-ऊंची बर्फीली चोटियां, घने जंगल और शांत वातावरण अपने आप में ही किसी स्वर्ग से कम नहीं लगते। इन्हीं वादियों में डोडी ताल मंदिर एक पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर भगवान गणेश और माता अन्नपूर्णा को समर्पित है। यह स्थान जितना खूबसूरत है, उतना ही रहस्यमयी और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। यहां हर साल दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि प्रकृति, पौराणिक कथाओं और रहस्यों का संगम माना जाता है।
डोडी ताल मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं कथाओं के आधार पर इस स्थान को भगवान गणेश का जन्मस्थान माना जाता है। मंदिर से सटी हुई झील इस मंदिर की खूबसूरती को और बढ़ाती है। इस झील से जुड़े कई रहस्य भी प्रसिद्ध हैं।
यह भी पढ़ें: साल में कितनी बार आती है एकादशी, कितने तरह की, मान्यताएं क्या हैं?
डोडी ताल मंदिर की पौराणिक कथा
मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान देवी पार्वती के स्नान स्थल के रूप में माना जाता है। जहां हर रोज वह स्नान करने के लिए आती थीं। इससे जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक सुबह डोडीताल में जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं, तो उन्होंने भगवान शिव के समर्पित बैल को स्नान क्षेत्र के द्वार पर रहने को कहा जिससे उनके कहने तक कोई भी उस क्षेत्र में प्रवेश न कर सके। नंदी ने आदेश मान लिया लेकिन भगवान शिव द्वार के पास पहुंचे, तभी नंदी ने उनका रास्ता रोक दिया और कहा कि यह देवी पार्वती का आदेश है कि जब तक वह न कहें, किसी को भी अंदर न जानें दें। शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने दावा किया कि वह देवी पार्वती के पति हैं और उन्हें अंदर जाने का अधिकार है। उन्होंने नंदी को यह भी निर्देश दिया कि उनके निर्देशों का पालन करना नंदी का कर्तव्य है।
इसके बाद, नंदी असहाय हो गए और उन्हें अंदर जाने से नहीं रोक सके। देवी पार्वती इस घटना से क्रोधित हो गईं और उन्होंने किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना करने का फैसला किया जो उनके निर्देशों को सुनेगा और उनके प्रति समर्पित रहेगा। उन्होंने स्नान के लिए डोडीताल की हल्दी, जूती की लकड़ी और मिट्टी ली और उसमें प्राण फूंक दिए और उससे एक छोटे बच्चे का निर्माण किया। मान्यताओं के अनुसार, इसी बालक को भगवान गणेश के रूप में पूजा जाता है।
कथा के अनुसार, जब अगली बार देवी पार्वती ने गणेश जी को रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया था, उसी समय जब भगवान शिव ने भीतर जाने का प्रयास किया तो गणेशजी ने उन्हें रोक दिया। एक बालक को अपना रास्ता रोकते देख भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी सेना (गण) को बालक से युद्ध करने को कहा। हालांकि, जिसने भी प्रयास किया, वह असफल रहा। इससे भगवान शिव को विश्वास हो गया कि वह बालक कोई सामान्य बालक नहीं, बल्कि किसी विशेष शक्ति से संपन्न है। उन्होंने बालक से युद्ध करने का प्रयास किया और क्रोध में उन्होंने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
यह भी पढ़ें: हरतालिका तीज: इस दिन रखा जाएगा व्रत, जानें पौराणिक कथा और विशेषता
जब देवी पार्वती ने यह भयावह दृश्य देखा, तो वह बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने घोषणा की कि गणेश उनकी ही रचना हैं। उन्होंने भगवान शिव से कहा कि अगर उनके पुत्र को पुनर्जीवित नहीं किया गया, तो वह संपूर्ण सृष्टि का नाश कर देंगी। स्थिति गंभीर हो गई, तब भगवान शिव ने गणेश के शरीर में हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया। तभी से गणेश को 'गजानन' कहा जाने लगा और प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त हुआ। इस कथा की वजह से डोडी ताल मंदिर को गणेश जी का जन्मस्थान माना जाता है।
डोडी ताल मंदिर से जुड़ी मान्यता
डोडी ताल मंदिर को लेकर लोगों में कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। सबसे बड़ी मान्यता यही है कि यह स्थान भगवान गणेश की जन्मस्थली है। मान्यताओं के अनुसार, यहां पूजा करने से विघ्न दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आकर प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है।
डोडी ताल मंदिर और ताल दोनों ही रहस्य से भरे हुए हैं। सबसे बड़ा रहस्य इसकी गहराई को लेकर है। कहा जाता है कि कई बार वैज्ञानिक और गोताखोरों ने इसकी गहराई मापने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। माना जाता है कि ताल की गहराई अनंत है और इसमें दिव्य शक्तियां वास करती हैं।
इसके अलावा, कई यात्रियों का कहना है कि रात के समय यहां अजीब सी ऊर्जा का अनुभव होता है। कोई इसे दिव्य मानता है, तो कोई इसे रहस्यमयी शक्ति मानता है। यही कारण है कि डोडी ताल मंदिर आस्था और रहस्य का संगम माना जाता है।
डोडी ताल मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
- यहां जाने के लिए पहले उत्तरकाशी शहर पहुंचना पड़ता है।
- वहां से बस या टैक्सी से अगोड़ा गांव या सांखरी गांव पहुंचा जा सकता है।
- अगोड़ा से डोडी ताल तक लगभग 18 से 20 किलोमीटर का ट्रेक (पैदल सफर) करना पड़ता है।
- यह ट्रेक घने जंगलों, बर्फीली चोटियों और झरनों से गुजरता है, जो रोमांचक और आध्यात्मिक अनुभव कराता है।