गोविंद देव जी मंदिर राजस्थान के जयपुर में स्थित एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जो न सिर्फ आस्था का केंद्र है बल्कि अपने इतिहास और चमत्कारी महत्व की वजह से पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और इसकी विशेषता यह है कि यहां विराजमान प्रतिमा को भगवान कृष्ण का सबसे वास्तविक और जीवंत रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस प्रतिमा को देखकर ऐसा महसूस होता है जैसे स्वयं श्रीकृष्ण हमारे सामने खड़े हों।

 

गोविंद देव जी मंदिर पर कोई शिखर नहीं है। इस मंदिर की प्रतिमा से जुड़ी बहुत सी किवदंतियां प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि यहां स्थित भगवान की मू्र्ति स्वंय श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ जी ने बनाई है।  उन्होंने अपनी दादी से पूछा कि श्रीकृष्ण कैसे लगते थे और फिर दादी के कहे अनुसार, उन्होंने यह प्रतिमा बनाई थी। 

 

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बहुत रोचक है। कथा के अनुसार, यह प्रतिमा करीब 5000 साल पहले ब्रज क्षेत्र में विराजमान थी। इस प्रतिमा को भगवान कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ जी ने स्वंय बनाई थी। मान्यता है कि ब्रजनाभ जी ने इस प्रतिमा को अपनी दादी से पूछकर बनाया था। मान्यता के अनुसार,  इसे वैसा ही रूप देने का प्रयास किया गया है जैसे द्वापर युग में भगवान कृष्ण वास्तव में दिखते थे।  

 

पहले इस मूर्ति को वृंदावन में स्थापित किया गया था। फिर मुगलकाल में औरंगजेब के शासन के दौरान मंदिरों पर खतरे के की वजह से यहां से मूर्ति को हटा दिया गया था और इसे जयपुर ले जाया गया था। जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने इसे अपनी राजधानी में स्थापित करवाया और आज भी यह मंदिर सिटी पैलेस के नजदीक स्थित है।

 

एक अन्य किवदंती के अनुसार, यह प्रतिमा स्वयं वृंदावन के गोवर्धन पर्वत के पास स्थापित थी और इसे स्वयं व्रज की महिमा से जोड़कर भगवान के एक भक्त ने स्थापित किया था। कथा के अनुसार, यह प्रतिमा करीब 5000 साल पहले ब्रज क्षेत्र में विराजमान थी। श्रीकृष्ण की परनानी, अर्थात् व्रज की रानी ने इस मूर्ति को बनवाया था। इस प्रतिमा को बनाने का कार्य भगवान विश्वकर्मा ने स्वंय किया था।

मंदिर की विशेषता

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान के दर्शन सात बार अलग-अलग समय पर होते हैं और हर बार भगवान को अलग शृंगार और भोग अर्पित किया जाता है। भक्त मानते हैं कि यहां भगवान की मूर्ति में एक अलग ही ऊर्जा और जीवंतता है। ऐसा विश्वास है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से यहां दर्शन करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मंदिर के भीतर की सजावट, प्राचीन स्थापत्य और भक्ति का वातावरण आने वाले हर व्यक्ति को दिव्यता का अनुभव कराता है।

 

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कहा जाता है कि यहां की प्रतिमा का चेहरा वही है जो द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का था। यह भी माना जाता है कि भगवान के इस रूप को देखकर भक्तों को ऐसा अनुभव होता है जैसे वे स्वयं मथुरा या वृंदावन के काल में पहुंच गए हों। कई श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर में आरती के समय वातावरण में ऐसी दिव्य सुगंध और ऊर्जा महसूस होती है, जो कहीं और नहीं मिलती।

 

मूर्ति में क्यों नहीं दिखते राधा रानी के पैर?

ऐसी मान्यता है कि राधा रानी के चरण कमल बहुत दुर्लभ हैं और श्री कृष्ण हमेशा उनके चरणों को अपने हृदय के पास रखते हैं, श्री कृष्ण जिनकी पूजा पूरी सृष्टि करती है, वह भी उनके चरणों को स्पर्श करते थे। राधा देवी के चरण बहुत दुर्लभ हैं और कोई भी व्यक्ति उनके चरणों को इतनी आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता है, इसलिए उनके पैर हमेशा ढके रहते हैं। कुछ मंदिरों में जन्माष्टमी पर या राधाष्टमी पर उनके चरणों को कुछ समय के लिए खुला रखा जाता है।

गोविंद देव जी में आरती/ झांकी का समय

गोविंद देव जी मंदिर में मंगला झांकी सुबह 4.30 से 5.45 तक है। धूप झांकी सुबह 8.15 से 9.30 बजे तक, श्रृंगार झांकी सुबह 10 से 10.45 बजे तक, राजभोग झांकी 11.15 से 11.45 बजे तक, ग्वाल झांकी शाम 5.30 से से 6 बजे तक और संध्या झांकी शाम 6 बजे तक। यह कोई निश्चित समय नहीं है बदल भी सकता है।

 

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मंदिर जाने का रास्ता

  • रेलवे स्टेशन से:  जयपुर जंक्शन से मंदिर लगभग 1.5–2 किलोमीटर की दूरी पर है। ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा या कैब लेकर 10–15 मिनट में पहुंच सकते हैं।
  • बस स्टैंड से:  सिंधी कैंप बस स्टैंड से मंदिर करीब 2 किलोमीटर दूर है। यहां से भी ऑटो, कैब या स्थानीय बसें आसानी से उपलब्ध हैं।
  • एयरपोर्ट से:  जयपुर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से मंदिर लगभग 12–13 किलोमीटर दूर है, टैक्सी या कैब से 25–30 मिनट में पहुंच सकते हैं।
  • शहर के अंदर से:  मंदिर सिटी पैलेस के पास है, हवा महल, जंतर मंतर और बाजार क्षेत्र से पैदल या रिक्शा से आसानी से पहुंचा जा सकता है।