हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है। यह स्थान देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे, तब उनके पैर का हिस्सा यहां गिरा था। तभी से यह स्थान शक्ति पीठ कहलाया और यहां देवी, चिंतपूर्णी के रूप में पूजित हुईं। भक्तों का विश्वास है कि सच्चे मन से यहां आकर माथा टेकने पर सभी चिंताएं और परेशानियां खत्म हो जाती हैं। 

 

इस मंदिर का गर्भगृह बेहद पवित्र और छोटा है, जहां माता की पिंडी की पूजा होती है। नवरात्रि और सावन मेले के समय मंदिर में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता के अनुसार, यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां आने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता है।

 

यह भी पढ़ें: हथिया नक्षत्र: क्या है वैदिक विशेषता, जानें महत्व और मान्यता

चिंतपूर्णी मंदिर की पौराणिक कथा

चिंतपूर्णी माता मंदिर शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुंड में कुदकर अपनी जान दी थी, उसके बाद भगवान शिव उनकी शरीर को उठाकर पूरे ब्राह्मण्ड में तांडव कर रहे थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने इसे देखा, तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को टुकड़ों में काट दिया था, तब उनके पैरों का हिस्सा इस स्थान पर गिरा था। इसलिए इसे शक्ति पीठ माना जाता है।

 

एक अन्य मान्यता है कि यहां माता को चिंता दूर करने वाली देवी कहा जाता है। भक्तों का विश्वास है कि जो भी सच्चे मन से माता के दरबार में आता है, उसकी सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं।

 

मंदिर की विशेषताएं

  • यहां माता का स्वरूप 'चिंतपूर्णी देवी' के नाम से पूजित है, जिन्हें 'चिंताओं को हरने वाली माता' कहा जाता है।
  • नवरात्रि और सावन मेले के समय मंदिर में लाखों भक्त आते हैं।
  • मंदिर का मुख्य गर्भगृह बहुत ही छोटा और पवित्र है, जहां माता की पिंडी के रूप में पूजा की जाती है।

यह भी पढ़ें: नवरात्रि 2025: जानें कलश स्थापना विधि, व्रत नियम और मुहूर्त

मंदिर की मान्यता

भक्त मानते हैं कि माता चिंतपूर्णी के दरबार में आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता। यहां की पूजा-अर्चना से जीवन की परेशानियां, मानसिक तनाव और सभी तरह की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार,  माता का नाम चिंतपूर्णी इसलिए पड़ा क्योंकि वह भक्तों की चिंताओं का निवारण करती हैं।

मंदिर तक जाने का रास्ता

नजदीकी रेलवे स्टेशन: मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन चिंतपूर्णी मार्ग स्टेशन है। यहां से लगभग 15-20 किलोमीटर की दूरी पर मंदिर स्थित है।

सड़क मार्ग: कांगड़ा, ऊना और हमीरपुर से यहां नियमित बसें और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।

नजदीकी एयरपोर्ट: निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा जिले का गग्गल एयरपोर्ट है, जो लगभग 60-70 किलोमीटर की दूरी पर है।