दक्षिण भारत में भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से वैष्णव परंपरा के अंतर्गत होती है और यहां विष्णु जी के अलग-अलग अवतारों के भव्य मंदिर भी देखने को मिलते हैं। इन मंदिरों में सबसे पहले वामन अवतार मंदिर का महत्व आता है, जिनसे जुड़ा त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर (केरल) ओणम पर्व की मान्यताओं से सीधा संबंध रखता है। कहा जाता है कि यहां भगवान वामन ने असुरराज महाबली से पृथ्वी को त्रिभुवन का दान लेकर धर्म की स्थापना की थी।
आंध्र प्रदेश में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा बहुत प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश का अहूबिलम नरसिंह मंदिर इस अवतार की महिमा को दर्शाता हैं। यहां नरसिंह भगवान के उग्र रूप से लेकर शांत रूप तक की पूजा होती है और भक्त मानते हैं कि यह अवतार धर्म की रक्षा और भक्त प्रह्लाद के उद्धार का प्रतीक है।
राम अवतार की बात करें तो तमिलनाडु का रमेश्वरम और आंध्र प्रदेश का भद्राचलम मंदिर श्रीराम के नाम से जगप्रसिद्ध है। भद्राचलम को तो दक्षिण का अयोध्या भी कहा जाता है। वहीं, श्रीरंगम का रंगनाथस्वामी मंदिर विष्णु जी के शयन रूप में विशेष आस्था का केंद्र हैं।
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कृष्ण अवतार की पूजा भी दक्षिण भारत में गहरी आस्था से की जाती है। उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर (कर्नाटक) इस परंपरा का सर्वोच्च उदाहरण है, जहां भगवान कृष्ण की बाल रूप में प्रतिमा स्थापित है और भक्त उन्हें दूध, मक्खन और तुलसी अर्पित करते हैं।
वामन अवतार – तिरुकोइलूर (तमिलनाडु) और त्रिक्काकारा मंदिर (केरल)
यहां भगवान विष्णु को वामन अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इन्होंने राजा महाबली से तीन पग भूमि मांगी और ब्रह्मांड को नाप लिया। ओणम पर्व इसी कथा से जुड़ा है।

त्रिक्काकारा मंदिर- कोच्चि
यह मंदिर ओणम उत्सव का जन्मस्थान माना जाता है और पौराणिक कथा के अनुसार यहीं भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरराज महाबली से तीन पग भूमि मांगी थी। त्रिक्काकारा वामनमूर्ति मंदिर में ओणम के दौरान खास पूजा-अर्चना और बलि-उत्सव आयोजित किया जाता है।

राम अवतार – रामेश्वरम और भद्राचलम (तेलंगाना)
भद्राचलम का श्री सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस स्थान पर वनवास के दौरान भगवान राम ने सीता जी के साथ समय बिताया था। रामेश्वरम को रामायण से जोड़ा जाता है, जहां राम जी ने सेतु बनाया था।

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कृष्ण अवतार – उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर (कर्नाटक)
मान्यता है कि यहां कृष्णजी की मूर्ति माध्वाचार्य द्वारा स्थापित की गई थी। प्रचलित कथा के अनुसार, यह मूर्ति स्वयं भगवान ने समुद्र से प्रकट की थी। भक्त मानते हैं कि यहां कृष्ण जी बच्चों की तरह पूजा ग्रहण करते हैं।

नरसिंह अवतार – अहूबिलम मंदिर (आंध्र प्रदेश)
यहां भगवान नरसिंह की पूजा होती है, जिन्होंने हिरण्यकश्यप का अंत कर प्रह्लाद की रक्षा की थी। यहां नौ स्वरूपों के नरसिंह मंदिर हैं, जिन्हें बेहद शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है।

वराह अवतार – भू वराह स्वामी मंदिर, श्रीमुष्णम (तमिलनाडु)
यह मंदिर भगवान विष्णु के वराह स्वरूप को समर्पित है। मान्यता है कि यहां पृथ्वी माता को वराह रूप में भगवान ने पाताल से उठाया था।

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विष्णु का शेषशायी रूप – श्री रंगनाथस्वामी मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु)
यह विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है, जहां भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन करते हैं। मान्यता है कि यहां पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह मंदिर कावेरी नदी के बीच स्थित श्रीरंगम द्वीप पर बना हुआ है और इसे दक्षिण भारत का वैकुंठ कहा जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिंदू मंदिर परिसर है, जिसमें सात प्राकार (घेराव) और 21 भव्य गोपुरम (द्वार) बने हुए हैं।