पुराण और हिंदू धर्मग्रंथों में कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं, जो हमें जीवन जीने की सीख देते हैं। इन्हीं में से एक रोचक कथा देवताओं के राजा इंद्र और सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद की, जिसमें अहंकार और विनम्रता का आमना सामना होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंद्र देवता, जिन्हें स्वर्ग का राजा माना जाता है, कभी-कभी अपनी शक्ति और वैभव को लेकर अहंकार में डूब जाते थे। एक बार ऐसा ही हुआ, जब इंद्र को अपने बल और पद पर घमंड हो गया। उन्होंने यह मान लिया कि तीनों लोकों में उनसे बड़ा और श्रेष्ठ कोई नहीं है। यही सोच धीरे-धीरे उनके व्यवहार में भी झलकने लगी। आइए जानते हैं कैसे भगवान विष्णु ने उनके अहंकार को दूर किया।
जब भगवान विष्णु ने किया था इंद्र के अहंकार को दूर
पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्ग में सुख, समृद्धि और आनंद का वातावरण था। इंद्र को लगा कि यह सब उनके नेतृत्व के कारण है। उन्होंने सोचा कि जब तक मैं हूं, स्वर्ग में कोई समस्या नहीं आ सकती। यही अहंकार उनके मन में घर कर गया। देवताओं के बीच चल रही इस स्थिति को नारद मुनि ने भांप लिया। नारद मुनि, जो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं, उन्होंने इंद्र के इस अहंकार को दूर करने की ठानी। वह सीधे बैकुंठ धाम पहुंचे और भगवान विष्णु से निवेदन किया कि इंद्र का अहंकार अब सीमा पार कर चुका है। इससे देवताओं और स्वर्ग का संतुलन बिगड़ सकता है।
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भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, 'जिस तरह समय-समय पर धरती पर वर्षा होती है, वैसे ही कभी-कभी देवताओं के मन में भी अहंकार की वर्षा होती है। हालांकि, उससे निपटने के लिए हमें संयम और शिक्षा की आवश्यकता है।' फिर विष्णु ने इंद्र को एक पाठ सिखाने की योजना बनाई।
भगवान विष्णु ने धारण किया साधारण ब्राह्मण का रूप
भगवान विष्णु ने एक साधारण ब्राह्मण का रूप धारण किया। वह एक तपस्वी की तरह स्वर्ग के दरबार में पहुंचे। इंद्र ने देखा कि एक तपस्वी ब्राह्मण उनके दरबार में आया है लेकिन वह न तो उन्हें प्रणाम कर रहा है और न ही उनकी प्रशंसा कर रहा है। इंद्र को यह बात बुरी लगी। उन्होंने उस ब्राह्मण से पूछा, 'क्या तुम नहीं जानते कि मैं स्वर्ग का राजा हूं? तीनों लोकों में मेरी सत्ता है। क्या तुम मेरे बारे में अनजान हो?'
ब्राह्मण मुस्कराए और बोले, 'मैं तो अब तक हजारों इंद्रों को देख चुका हूं, एक तुम भी सही।' इंद्र यह सुनकर चौंक गए। उन्होंने कहा, 'क्या मतलब? मैं तो केवल एक ही इंद्र हूं।'
ब्राह्मण ने शांति से कहा, 'जब-जब सृष्टि का निर्माण होता है, तब-तब एक नया इंद्र नियुक्त होता है। समय के चक्र में एक-एक कर सभी इंद्र बदल जाते हैं। तुम भी इस सृष्टि के एक चरण के इंद्र हो। इससे पहले भी अनेक इंद्र आ चुके हैं और आगे भी आते रहेंगे। तुम स्थायी नहीं हो। तुम जिस पर इतना घमंड कर रहे हो, वह क्षणिक है।'
इंद्र का अहंकार चूर हुआ
यह बात सुनते ही इंद्र को गहरा झटका लगा। उन्हें पहली बार यह एहसास हुआ कि उनका पद भी काल के अधीन है। वे समझ गए कि जिसे वे अपनी उपलब्धि समझ रहे थे, वह सृष्टि के नियम का एक हिस्सा मात्र है। उनका घमंड धीरे-धीरे पिघलने लगा। उन्होंने ब्राह्मण के चरणों में सिर झुका दिया और क्षमा मांगी।
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तभी ब्राह्मण ने अपना असली रूप प्रकट किया और भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने इंद्र से कहा, 'राजा वही होता है जो सेवा और नम्रता से राज करता है। अहंकार से सिर्फ दूरी और विनाश होता है। तुम्हारे भीतर अपार शक्ति है, लेकिन यदि वह विनम्रता से जुड़ जाए, तभी वह कल्याणकारी होती है।'
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी रामायण कथा और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।