पाम संडे, गुड फ्राइडे और ईस्टर ईसा मसीह के जीवन की ये तीन अहम घटनाएं ईसाई धर्म की बुनियाद मानी जाती हैं। इन्हीं घटनाओं से जुड़ा एक अलग दृष्टिकोण समय-समय पर बहस का विषय भी बनता रहा है। कुछ शोधकर्ताओं, लेखकों और आध्यात्मिक विचारकों का दावा है कि ईसा मसीह सूली पर मरे नहीं थे और बाद के वर्षों में उन्होंने भारत, विशेषकर कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में जीवन बिताया। यह दावा भले ही मुख्यधारा के इतिहास से अलग हो लेकिन सदियों से यह विचार लोगों की जिज्ञासा को जगाता रहा है।
इन मान्यताओं के अनुसार, ईसा मसीह ने अपने जीवन के तथाकथित गुमनाम वर्षों में भारत और तिब्बत में शिक्षा ग्रहण की और बाद में सूली की घटना के बाद वह दोबारा कश्मीर लौटे। श्रीनगर के रौजाबल इलाके में मौजूद एक कब्र, युसमर्ग और पहलगाम जैसे स्थान और बौद्ध विहारों से जुड़ी बातें इस कहानी को और रहस्यमय बनाते हैं। हालांकि, इतिहासकार इन दावों को प्रमाणिक नहीं मानते, फिर भी ये कथाएं आज भी शोध, आस्था और विवाद के केंद्र में बनी हुई हैं।
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युसमर्ग
कश्मीर में पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के बीच लगभग 7,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित युसमर्ग को बेहद सुंदर जगह माना जाता है। कुछ लोग इसे 'यीशु का मैदान' भी कहते हैं। एक मान्यता यह है कि ईसा मसीह कुछ समय के लिए यहां रुके थे, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।
पहलगाम
हरे-भरे मैदानों और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर पहलगाम कश्मीर का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां लिद्दर नदी, रिवर राफ्टिंग और पारंपरिक कश्मीरी बाजार पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि ईसा मसीह अपने प्रवास के दौरान यहां आए थे।
श्रीनगर और रौजाबल
श्रीनगर के पुराने इलाके खानयार में स्थित एक जगह है जिसे रौजाबल कहा जाता है। यहां एक पत्थर की कब्र मौजूद है। आम तौर पर इसे एक मध्यकालीन मुस्लिम संत यूजा आसफ की मजार माना जाता है।
हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि यह कब्र ईसा मसीह की हो सकती है, क्योंकि इसकी बनावट और दिशा पारंपरिक मुस्लिम कब्रों से अलग बताई जाती है।
अहमदिया आंदोलन के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद ने 1899 में यह दावा किया था कि रौजाबल की यह कब्र वास्तव में ईसा मसीह की है। इस दावे को लेकर आज भी मतभेद हैं।
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ओशो के विचार
दार्शनिक ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कहा था कि ईसा मसीह और मूसा दोनों की मृत्यु भारत में हुई। उनके अनुसार, सूली पर चढ़ाए जाने के समय ईसा मसीह की मृत्यु नहीं हुई थी। वह बेहोशी की हालत में सूली से उतारे गए, उनका इलाज किया गया और बाद में वह वहां से चले गए। ओशो के अनुसार, बाद में ईसा मसीह कश्मीर पहुंचे और वहीं लंबे समय तक रहे।
बौद्ध विहार और सम्मेलन
कुछ मान्यताओं के अनुसार, ईसा मसीह ने 80 ईस्वी में हुए एक प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में भी हिस्सा लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ियों पर एक प्राचीन बौद्ध विहार के अवशेष पाए जाते हैं, जहां यह सम्मेलन हुआ माना जाता है।
रूसी लेखक निकोलस नोतोविच ने भारत में रहकर एक किताब लिखी थी 'द अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट'। यह किताब हेमिस बौद्ध मठ में मौजूद कथित पांडुलिपियों पर आधारित बताई जाती है, जिनमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण का उल्लेख है।
रिसर्च और विवाद
ईसा मसीह के भारत आने का पहला उल्लेख 19वीं सदी में रूसी लेखक निकोलस नोतोविच की किताबों में मिलता है। उन्होंने दावा किया कि ईसा मसीह ने अपने जीवन के कुछ अज्ञात वर्ष लद्दाख और कश्मीर में बिताए थे। हालांकि, इतिहासकारों और मुख्यधारा के विद्वानों के बीच इन दावों को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है।
