कामदा एकादशी, भगवान विष्णि की प्रिय तिथियों में से एक है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत रखने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कामदा एकादशी का व्रत 8 अप्रैल को रखा जाएगे। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह भगवान विष्णु की विशेष पूजा-पाठ और व्रत का विधान है।
मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने से जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही राक्षस योनि भी छूट जाती है। कामदा एकादशी की कथा के अनुसार, संसार में इसके बराबर दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसकी कथा मात्र पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कामदा एकादशी की कथा और इसकी मान्यताऐं।
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कामदा एकादशी की व्रत कथा क्या है?
मान्यता है कि कामदा एकादशी की कथा सुनने से पाप नष्ट होते हैं और लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है। यह कथा कुछ संवादों पर आधारित है, जिन्हें लोग इस दिन पढ़ते-सुनते हैं। यह कथा कुछ इस तरह से शुरू होती है-
'प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व रहते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष बहुत बड़े घर में रहते थे। उन दोनों में बहुत प्रेम था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों पागल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों(संगीतकार) सहित ललित भी गाना गा रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने स्वर भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री को याद कर रहा है। अतः तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण(समय) महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुंह अत्यन्त भयंकर, आंखें सूर्य-चंद्रमा की तरह जलती हुई और मुंह से आग निकलने लगी। उसकी नाक पहाड़ की तरह बड़ी हो गई और गर्दन भी उतनी ही लंबी लगने लगी। सिर के बाल पहाड़ों पर लगे पेड़ों के समान लगने लगे और हाथ काफी लंबे हो गए। कुल मिलाकर उसका शरीर कई किलो मीटर जितना बड़ा में हो गया। इस तरीके से राक्षस होकर वह बहुत से दुख सहने लगा।
जब उसकी पत्नी ललिता को यह बात पता चली तो उसे बहुत दुख हुआ और वह अपने पति को दोबारा सही करने के बारे में सोचने लगी। वह राक्षस कई तरीके के दुख सहता हुआ बड़े-बड़े जंगलों में रहने लगा। उसकी पत्नी उसके पीछे-पीछे जाती और रोती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता तुरंत ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर श्रद्धापूर्वक पूजा करने लगी।
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उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुनि। मेरा नाम ललिता है। मेरे पति राजा पुण्डरीक के श्राप से राक्षस हो गए हैं। इसकी वजह से बहुत दुखी हूं। उनके सही होने का कोई तरीका बताइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व (संगीतकार) कन्या। अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से सारी मनोकामना पूरी होती है। यदि तुम कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे दो तो वह तुरंत ही राक्षस योनि से छूट जाएगा।
मुनि से ऐसी बातें सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी हे प्रभो। मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पति को मिल जाए जिससे उन्हें राक्षस योनि से छूट मिल जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने रूप में आ गया। फिर वे दोनों सुंदर कपड़े और गहने पहनकर एक साथ घूमने निकल गए। उसके बाद वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक चले गए।'
व्रत रखने का तरीका
कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को सात्विक चीजों का भोग लगाना चाहिए। इस व्रत में अन्न नहीं खाना चाहिए। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत पसंद है इसलिए भोग में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें। भगवान विष्णु को ताजे और ऋतु फल बहुत पसंद हैं जैसे- केला,अंगूर, खरबूजा, और तरबूजा जैसे फल चढ़ाएं। मेवे में सूखे मेवे का प्रयोग करें जैसे बादाम, काजू, किशमिश और पिस्ता। पंचामृत जरूर चढ़ाए यह बहुत शुभ माना जाता है।