वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन मौनी अमावस्या व्रत का पालन किया जाता है। बता दें कि हिन्दू धर्म में मौनी अमावस्या एक बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण दिन माना जाता है और इस दिन से महाकुंभ मेले में कई अनुष्ठान और आध्यात्मिक गतिविधियां आरंभ होती हैं।
वर्तमान समय में प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। जिसमें लाखों की संख्या में लोग में पवित्र स्नान के लिए आ रहे हैं। मौनी अमावस्या के दिन पूरा कुंभ क्षेत्र भक्त और साधु-संतों से भर जाता है। इस दिन को विशेष रूप से तप, ध्यान, दान और स्नान के लिए जाना जाता है। मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान का भी विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं कुंभ मेले में किन-किन अनुष्ठानों की होती है शुरुआत।
मौनी अमावस्या का महत्व
मौनी अमावस्या शब्द दो शब्द- 'मौन' और 'अमावस्या' से मिलकर बना है। 'मौन' का अर्थ है चुप रहना और 'अमावस्या' का अर्थ है चंद्र मास का वह दिन जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मौन रहकर और ईश्वर का ध्यान करते हुए स्नान और पूजा करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
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महाकुंभ में मौनी अमावस्या का महत्व
महाकुंभ में मौनी अमावस्या से कई महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुरू होते हैं। संगम पर स्नान करने के साथ ही भक्तगण पूजा-अर्चना और दान-पुण्य की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
पवित्र स्नान
मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में संगम पर शाही स्नान करने की परंपरा है। इस दौरान अखाड़ों के संत और साधुओं के साथ-साथ लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस दिन गंगा स्नान करते हैं, इससे जुड़ी मान्यता है कि इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इस स्नान के बाद ही सभी अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं।
मौन व्रत
इस दिन कई साधु-संत और भक्त व्रत का पालन करते हैं और मौन व्रत रखते हैं। यह व्रत आत्म-अनुशासन और आत्म-शुद्धि का प्रतीक है। मौन रहने से व्यक्ति अपनी ऊर्जा को भीतर की ओर केंद्रित करता है और ध्यान की गहराई में जाता है।
दान-पुण्य
मौनी अमावस्या पर दान करने का विशेष महत्व है। भक्त अन्न, वस्त्र, धन, तिल, गुड़ और अन्य आवश्यक वस्तुएं जरूरतमंदों को दान करते हैं। इसे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि लाने वाला कर्म माना जाता है।
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यज्ञ और हवन
कुंभ मेले में मौनी अमावस्या से बड़े पैमाने पर यज्ञ और हवन का आयोजन होता है। विभिन्न अखाड़ों द्वारा तैयार यज्ञशालाओं में हवन शुरू हो जाते हैं, जिससे वातावरण को पवित्र होता है और इसे ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे कारगर माध्यम माना जाता है।
कल्पवास का आरंभ
न केवल कुंभ में बल्कि हर साल संगम के तट पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करते हैं। यह कल्पवास हर साल मौनी अमावस्या से ही शुरू हो जाता है और इस दौरान भक्त कठिन नियमों का पालन करते हुए एक माह संगम के तट पर बिताते हैं। कुंभ में कल्पवास का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके साथ साधु-संत और योगी भी ध्यान में लीन होकर ईश्वर की आराधना करते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।