महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 12 वर्षों के बाद महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। महाकुंभ में पवतित्र संगम स्नान के साथ-साथ अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। इन सभी के साथ कुंभ में गंगा आरती का विशेष महत्व है। यह आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करने का माध्यम है।
गंगा नदी को भारतीय संस्कृति में 'मां' का दर्जा दिया गया है और शास्त्रों में उन्हें मोकसदायिनी भी कहा गया है। गंगा आरती का आयोजन कुंभ के दौरान हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में किया जाता है, साथ ही इस दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
गंगा आरती के नियम
गंगा आरती को गंगा के घाट पर विशेष रूप से पवित्र स्थान पर किया जाता है। स्थान की शुद्धता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही आरती का आयोजन प्रातःकाल और सायंकाल के समय होता है। कुंभ के दौरान सूर्यास्त के समय की आरती विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। गंगा आरती एक सामूहिक अनुष्ठान है, जिसमें पुजारी और श्रद्धालु मिलकर आरती करते हैं।
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पुजारियों के पास दीपक, घंटी और मंत्रोच्चार के लिए सभी सामग्रियां होती हैं। साथ ही इस दौरान विशेष वैदिक मंत्रों और भक्ति गीतों का उच्चारण किया जाता है। इसमें गंगा स्तुति, शिव मंत्र और अन्य पवित्र ग्रंथों के श्लोक शामिल होते हैं। गंगा आरती में शामिल होने वाले सभी श्रद्धालुओं से पवित्रता और मर्यादा बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। उन्हें स्नान के बाद ही आरती में भाग लेना चाहिए। मान्यता है कि इन बातों का ध्यान रखकर आरती में भाग लेने से आरती का फल प्राप्त होता है।
गंगा आरती का महत्व
गंगा आरती के दौरान वातावरण में ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो मन और आत्मा को शुद्ध करती है। साथ ही गंगा आरती के माध्यम से गंगा नदी को धन्यवाद दिया जाता है, जो जीवनदायिनी मानी जाती है। यह प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान व्यक्त करने का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा आरती के समय गंगा के तट पर उपस्थित होने और मंत्रोच्चार सुनने से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह आत्मा को पवित्र करने का अवसर प्रदान करता है। शास्त्रों में यह बताया गया है कि किसी भी अनुष्ठान को पूरा करने के लिए आरती जरूर करनी चाहिए, तभी इसका फल प्राप्त होता है और जीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसा न करने पर अनुष्ठान को अधूरा माना जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।