भारत में कई ऐसे देवस्थल और धाम हैं, जिनसे जुड़ी पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं विस्तार से बताई गई हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख स्थान है 'मणिकर्णिका घाट'। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी के किनारे स्थित मणिकर्णिका घाट हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। इस स्थान को मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक कहा जाता है, और मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार किए जाने से आत्मा को मुक्ति मिलती है। पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से मणिकर्णिका घाट से जुड़ी कई रोचक बातें हैं। आइए जानते हैं-

क्या है मणिकर्णिका घाट का पौराणिक महत्व

मणिकर्णिका घाट का नाम भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने यहां एक कुंड बनाया और उसमें स्नान किया। इस दौरान श्री हरि का मणि और माता पार्वती का कर्णफूल इस घाट पर गिर गया था, जिसके कारण इसे 'मणिकर्णिका' कहा जाने लगा।

 

इस घाट से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है, जिसमें कहा गया है कि माता सती की मृत्यु के बाद जब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने दिव्यास्त्र सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अनेक टुकड़े कर दिए थे। माता शरीर के यह हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जिसे आज हम शक्तिपीठ के रूप में जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार, मणिकर्णिका घाट वह स्थान है, जहां सती का कान गिरा था और इसे शक्तिपीठ का स्थान प्राप्त है।

मणिकर्णिका घाट पर होती है मोक्ष की प्राप्ति

हिंदू धर्म में मणिकर्णिका घाट को मोक्ष प्राप्ति का सबसे आसान मार्ग कहा जाता है। मान्यता है कि जिन लोगों का अंतिम संस्कार इस स्थान पर होता है, उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। यही कारण है कि मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी भी बुझती नहीं है। यहां हर मिनट एक पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, जिस वजह से इसे ‘महाश्मशान’ के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव स्वयं यहां मृत लोगों के कान में तारक मंत्र डालते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मणिकर्णिका पर अनंत चिता और मणिकर्णिका कुंड

मणिकर्णिका घाट की सबसे अनूठी बात यह है कि यहां चिता की आग कभी नहीं बुझती। दिन-रात यहां पर शवों का अंतिम संस्कार होता है। इसे अनंत चिता भी कहा जाता है, जो मृत्यु और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र का प्रतीक है। मान्यता है कि यह अग्नि हजारों वर्षों से यहां जल रही है, और इसे बुझने नहीं दिया जाता है। मणिकर्णिका घाट के पास एक पवित्र कुंड है, जिसे मणिकर्णिका कुंड कहा जाता है। इस कुंड को भगवान विष्णु द्वारा निर्मित बताया जाता है। यहां से मान्यता यह है कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।