उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, जहां कई पौराणिक तीर्थस्थल स्थापित हैं। साथ ही यहां स्थित पंच केदार यानी पांच प्रमुख शिव मंदिरों को विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व प्राप्त है। ये पांच मंदिर हैं- केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर। यह सभी स्थल पौराणिक कथा, कठिन यात्रा और आस्था से जुड़े हुए हैं। आइए इन सभी केदारों का इतिहास, मान्यता, कथा और दर्शन महत्व को विस्तार से जानते हैं।

केदारनाथ मंदिर

स्थान: रुद्रप्रयाग ज़िले में, समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित।

 

कथा: महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव से क्षमा माँगने निकले। शिवजी पांडवों से रुष्ट होकर केदारनाथ क्षेत्र में छिप गए। शिवजी ने यहां बैल (नंदी) का रूप लिया। पांडवों ने उन्हें पहचान लिया, तो शिवजी भूमि में समा गए। बैल का कूबड़ यहीं प्रकट हुआ, जो आज केदारनाथ मंदिर में पूजा जाता है। बता दें कि भगवान शिव को समर्पित यह धार्मिक स्थल बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यता है कि यहां दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

 

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तुंगनाथ मंदिर

स्थान: रुद्रप्रयाग जिले में, समुद्र तल से 3,680 मीटर की ऊंचाई पर, यह सबसे ऊंचा शिव मंदिर है।

 

कथा: जब भगवान शिव का शरीर भूमि में समा रहा था, तो उनकी भुजाएं तुंगनाथ में प्रकट हुईं। यह मंदिर त्रेतायुग से जुड़ा माना जाता है और यहां की यात्रा कठिन लेकिन सुंदर होती है। चंद्रशिला से सूर्योदय और हिमालय की ऊंचाइयों का दृश्य बहुत अद्भुत होता है।

रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रनाथ मंदिर(Photo Credit: Social Media)

स्थान: चमोली जिले में, समुद्र तल से लगभग 2,286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित।

 

कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार,भगवान शिव का मुख इस स्थान पर प्रकट हुआ था। यह मंदिर प्राकृतिक गुफा में स्थित है और इसका वातावरण बहुत शांत और आध्यात्मिक है। कहा जाता है कि यहां पूजा करने से मनोवांछित फल मिलता है और शांति की प्राप्ति होती है।

मध्यमहेश्वर मंदिर

स्थान: उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में, समुद्र तल से करीब 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित।

 

कथा: यह स्थान भगवान शिवजी की नाभि (मध्य भाग) से जुड़ा हुआ है। पांडवों द्वारा खोजे जाने पर भगवान शिव का यह अंग मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ था। कहा जाता है कि यहां पूजा करने से भक्तों को शांति और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। चारों ओर बर्फीली चोटियों से घिरा यह मंदिर बहुत सुंदर दिखाई देता है।

कल्पेश्वर मंदिर

स्थान: चमोली जिले के ऊर्गम घाटी में, समुद्र तल से लगभग 2,200 मीटर की ऊंचाई पर।

 

कथा: भगवान शिव की जटाएं (केश) यहां प्रकट हुई थीं। यह एकमात्र ऐसा केदार मंदिर है, जो पूरे वर्ष खुला रहता है। यह स्थान महादेव की गहन साधना के लिए जाना जाता है।

 

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पंच केदार से जुड़ी मान्यताएं

पांडवों की प्रायश्चित यात्रा: पंच केदार की स्थापना का संबंध पांडवों से है। महाभारत युद्ध में भारी रक्तपात और अधर्म होने के कारण पांडवों को आत्मग्लानि हुई और वे भगवान शिव से क्षमा मांगने हिमालय की ओर चले। शिवजी की माया से वे पांच भागों में प्रकट हुए और पंच केदार के रूप में उनकी स्थापना हुई।

पंच केदार यात्रा का धार्मिक महत्व

पंच केदार की यात्रा को बहुत ही खास माना जाता है। सभी पांच केदार अपने विशेष महत्व और मान्यताओं के लिए जानें जाते हैं। कुछ केदारों की यात्रा बहुत ही कठिन हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि भगवान के दर्शन के लिए कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है। काह जाता है केदारनाथ भगवान से शक्ति प्राप्त होती है। तुंगनाथ में भक्ति और साहस की परीक्षा होती है। रुद्रनाथ मन की शांति, मध्यमहेश्वर में आंतरिक संतुलन और कल्पेश्वर महादेव साधना और एकाग्रता की प्राप्ति होती है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।