भगवान शालिग्राम को विष्णु जी का प्रतीक रूप माना जाता है। यह एक दिव्य और स्वयंभू (स्वतः उत्पन्न) पवित्र पत्थर है, जो केवल नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है। शालिग्राम शिला को विष्णु जी का ही साक्षात रूप माना गया है। इसके स्वरूप पर किसी प्रकार की मूर्ति निर्माण की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह पत्थर स्वयं ही पूजा के योग्य होता है।

यह पत्थर आमतौर पर गोल या अंडाकार होता है और इसमें प्राकृतिक रूप से चक्र, रेखाएं, या शंख जैसे चिन्ह बने होते हैं, जो विष्णु के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाते हैं।

शालिग्राम की पूजा का महत्व

विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है

शालिग्राम की पूजा करने से श्रीहरि विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भक्तों का जीवन सुख-शांति और समृद्धि से भर जाता है।

पापों का नाश

यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नियमित रूप से शालिग्राम की पूजा करता है, उसके जीवन के पापों का क्षय हो जाता है और वह मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होता है।

 

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गृहस्थ जीवन में सुख

विशेषकर जो भक्त तुलसी विवाह के साथ शालिग्राम का पूजन करते हैं, उन्हें वैवाहिक जीवन में सौभाग्य, प्रेम और संतुलन प्राप्त होता है।

पितृ दोष से मुक्ति

कई धर्म ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि शालिग्राम पूजा से पितृ दोष, कालसर्प दोष जैसे प्रभावों का शमन होता है।

मनोकामना पूर्ण करने वाला

यदि किसी विशेष उद्देश्य से शालिग्राम की पूजा की जाए, जैसे संतान प्राप्ति, रोग मुक्ति या व्यापार वृद्धि, तो भक्त को निश्चित रूप से फल मिलता है।

शालिग्राम पूजा में ध्यान रखने योग्य बातें

  • शालिग्राम को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए। यदि पूजा नहीं हो पा रही हो तो उसे गंगाजल में रखें।
  • शालिग्राम को कभी भी बिना स्नान के न छुएं। शुद्धता अत्यंत आवश्यक है। पूजा से पहले स्नान जरूरी है।
  • मांस-मदिरा का सेवन करने वाले को शालिग्राम नहीं रखना चाहिए। यह अति पवित्र प्रतीक है, इसलिए सात्विक जीवन आवश्यक है।
  • स्त्रियां मासिक धर्म के दौरान शालिग्राम की पूजा नहीं करें। इस दौरान पूजा से दूर रहना धर्म सम्मत माना गया है।
  • शालिग्राम को जमीन पर न रखें। इसे हमेशा पूजा स्थान पर ऊंचाई पर रखें, जैसे चौकी या पाटे पर।
  • अभाव में भी तुलसी दल का प्रयोग अनिवार्य है। भगवान विष्णु को तुलसी प्रिय हैं, इसलिए तुलसी के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
  • शालिग्राम को तोड़ना, खुरचाना या उस पर कोई बदलाव करना वर्जित है। यह अपराध के बराबर माना जाता है और पापफल देने वाला हो सकता है।
  • भूलवश भी किसी को दान न दें। शालिग्राम कोई साधारण वस्तु नहीं, यह विष्णु स्वरूप है। इसे बेचने या दान देने से भारी दोष लगता है।