हर साल 25 दिसंबर को दुनियाभर में क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है। भगवान यीशु के जन्मदिवस पर मनाए जाने वाले इस त्योहार से कई दिन पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घर से लेकर ऑफिस और बाजार में भी क्रिसमस की तैयारियां दिखाई देती हैं। लोग चर्चों में प्रार्थना करते हैं, घरों को सजाते हैं और गीत गाते हैं, जिनमें कहा जाता है कि यीशु मसीह के जन्म के समय सब कुछ शांत था। आमतौर पर फिल्मों में दिखाया जाता है कि शांत गांव, तारों से भरे आसमान के बीच यीशु का जन्म हुआ था लेकिन इतिहासकार और लेखक जोआन टेलर ने अपनी किताब में अलग दावा किया है।
फिल्मों में यीशु के जन्म के समय संसार को शांत दिखाया गया है लेकिन इस सीन पर लोगों में एक राय नहीं है। फिल्मों में दिखाए जाने वाले इस सीन को कई इतिहासकार अधूरा मानते हैं। इतिहासकार और लेखक जोआन टेलर के अनुसार, यह तस्वीर पूरी सच्चाई नहीं बताती। असल में यीशु का जन्म और उनका शुरुआती जीवन संघर्ष, भय और अस्थिरता से भरे दौर में हुआ था। लेखक जोआन टेलर ने बताया कि उन्हें भी बचपन से यही लगता था कि यीशु का जन्म बहुत ही शांत परिस्थितियों में हुआ था लेकिन जब उन्होंने अपनी किताब के लिए रिसर्च करना शुरू किया तो पता चला कि उनके परिवार की परिस्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। उन्हें एक गौशाला में रखा गया था, जहां जंगली जानवरों का खतरा भी था।
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जोआन टेलर ने किताब में क्या लिखा?
इतिहासकार और लेखक जोआन टेलर की किताब 'बॉय जीसस: ग्रोइंग अप जूडियन इन टर्बुलेंट टाइम्स' में यीशु के जन्म को लेकर अलग कहानी बताई गई है। उनकी किताब में दावा किया गया है कि यीशु का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब यहूदिया रोमन साम्राज्य के अधीन था और वहां लगातार तनाव बना हुआ था। इतिहास में भी यह साफ झलकता है कि यीशु का परिवार किसी सुरक्षित माहौल में नहीं रह रहा था। जिस जगह यीशु को जन्म के बाद रखा गया था, वह जानवरों का गंदा चारा रखने की जगह थी। यीशु को जन्म के समय कोई आरामदायक जगह या बिस्तर नहीं मिल पाया था। इसका मतलब है कि यीशु का जन्म गरीब परिवार में हुआ था।
राजा हेरोद को यीशु से था खतरा?
राजा हेरोद यहूदिया का एक राजा था, जिसने 37 ईसा पूर्व से 4 ईसा पूर्व तक शासन किया था। हेरोद के शासन काल में यीशु का जन्म लगभग 4-6 ईसा पूर्व में फिलिस्तीन के बेथलहम शहर में हुआ था। लेखक जोआन टेलर का मानना है कि हेरोद एक क्रूर शासक था। उन्होंने कहा, 'यीशु के जन्म की कहानी में राजा हेरोद का नाम आते ही माहौल और गंभीर हो जाता है। उस दौर में हेरोद का मतलब था डर और क्रूरता। उन्हें रोमन साम्राज्य ने नियुक्त किया था और सत्ता बचाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। यीशु का परिवार खुद को राजा दाऊद के वंश से जोड़ता था, जिससे भविष्य में एक नए राजा के आने की उम्मीद जुड़ी थी। कुछ साल पहले हेरोद ने दाऊद की कब्र को तुड़वाकर वहां से खजाना लूट लिया था। इससे यह साफ होता है कि वह इस वंश और उससे जुड़ी किसी भी उम्मीद से कितना भयभीत था। ऐसे माहौल में जन्म लेने वाले बच्चे और उसके परिवार का डर में रहना स्वाभाविक था।'
अशांत शहर में हुआ था जन्म
यीशु के जन्म को लेकर मशहूर कहानी में बताया गया है कि उनका जन्म बेलमथ में हुआ और इसे एक शांत और छोटा गांव माना जाता था लेकिन इतिहासकार लेखक जोआन टेलर इस बात का समर्थन नहीं करतीं। जोआन टेलर बेलमथ को एक अशांत तनावग्रस्त और हिंसा से जुड़ी जगह बताती हैं। उनका मानना है कि जब हेरोद को सत्ता मिली थी तब उसे स्थानीय लोगों के विरोध और विद्रोह का सामना करना पड़ा था। बेथलेहम के आसपास उसके समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें कई लोग मारे गए। इस इलाके पर कब्जे के बाद हेरोद ने बेथलेहम के पास एक पहाड़ी पर हेरोडियम नाम का एक विशाल स्मारक बनवाया था, जो उसकी जीत और नरसंहार की याद दिलाता था। जोआन टेलर का मानना है कि बेथलेहम इतना महत्वपूर्ण नगर था कि वहां तक पानी पहुंचाने के लिए बड़ा एक्वाडक्ट (पुल जैसा ढांचा) बनाया गया था, जिससे पता चलता है कि यह कोई साधारण गांव नहीं था।
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बेथलेहम को अक्सर एक शांत और छोटा गांव माना जाता है, लेकिन इतिहास इसे एक तनावग्रस्त और हिंसा से जुड़ा स्थान बताता है। जब हेरोद को सत्ता मिली थी, तब उसे स्थानीय लोगों के विरोध और विद्रोह का सामना करना पड़ा था। बेथलेहम के आसपास उसके समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें कई लोग मारे गए। बाद में हेरोद ने बेथलेहम के पास एक पहाड़ी पर हेरोडियम नाम का विशाल स्मारक बनवाया,जो उसकी जीत और किए गए नरसंहार की याद दिलाता था। इतना ही नहीं, बेथलेहम इतना महत्वपूर्ण शहर था कि वहां तक पानी पहुंचाने के लिए बड़ा एक्वाडक्ट बनाया गया था, जिससे पता चलता है कि यह कोई साधारण गांव नहीं था।
डर के कारण पलायन को मजबूर थे लोग
जोआन टेलर ने बताया कि यीशु के जन्म के समय बेलमथ में डर का माहौल था। राजा हेरोद के डर के कारण यीशु का परिवार भी सुरक्षित नहीं था। गोस्पेल के अनुसार, यूसुफ और मरियम अपने नवजात बच्चे के साथ जान बचाने के लिए मिस्र भाग गए। यह एक साधारण यात्रा नहीं थी बल्कि यीशु के परिवार को अपना घर,समाज और पहचान छोड़कर भागना पड़ा था। नवजात की जान बचाने के लिए परिवार ने यह कठिन फैसला लिया है। उसी समय पूरे यहूदिया में रोमन शासन के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा था। माना जाता है कि यीशु का जन्म हेरोद के शासनकाल के अंतिम दो सालों में हुआ था। हेरोद की मौत के बाद यरुशलम में लोगों ने मंदिर पर कब्जा कर आजादी की मांग की थी लेकिन जवाब में हेरोद के बेटे आर्केलाउस ने हजारों लोगों का कत्लेआम करवा दिया।
मिस्त्र से लौटा परिवार
जोआन टेलर के अनुसार, यीशु का परिवार उत्तरी इजरायल के गलील में जाकर रहने लग गया था। उनका कहना है कि इसी अशांत दौर में यीशु का परिवार मिस्र से लौटकर गलील के नासरत गांव में बस गया था। उस समय गलील कुछ समय के लिए रोमन नियंत्रण से बाहर था, इसलिए वहां रहना यीशु के परिवार को अपेक्षाकृत सुरक्षित लगा। हालांकि, यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं रही। रोमन जनरल वारुस ने सीरिया से सेना भेजकर विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया। आसपास के शहर सेफोरिस को नष्ट कर दिया गया, कई गांव जला दिए गए और बड़ी संख्या में यहूदी विद्रोहियों को सूली पर चढ़ा दिया गया। इसके बाद भी आर्केलाउस का शासन भय और अत्याचार से भरा रहा।
फिल्मों को बताया अधूरा
इतिहासकार जोआन टेलर का कहना है कि फिल्मों और कुछ प्राचीन ग्रंथों में यीशु के बचपन को सही और ऐतिहासिक संदर्भ में नहीं दिखाया गया है। उन्होंने हाल ही में आई फिल्म 'द कारपेंटर्स सन' का जिक्र करते हुए कहा था कि यह बाइबल पर आधारित नहीं है। उनका मानना है कि यह एक गैर-बाइबल ग्रंथ पर आधारित फिल्म है और इस ग्रंथ को यीशु के जन्म के काफी बाद लिखा गया था। इस ग्रंथ में यीशु को एक ऐसे बालक के रूप में दिखाया गया है जो गुस्से में लोगों को नुकसान पहुंचाता है। इसमें यहूदियों के प्रति नकारात्मक और खतरनाक सोच भी नजर आती है।
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नाटिविटी सीन आज भी प्रासंगिक
नाटिविटी सीन यीशु के जन्म को दिखाने वाला सीन है। इसमें मुख्य रूप से उनकी मां मरियम पिता युसुफ और नवजात यीशु को दिखाया गया है। इस सीन में यीशु के जन्म की कहानी दिखाई जाती है। इतिहासकारों के अनुसार, यीशु के जन्म की असली कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आज के समय में जब दुनिया में अशांति फैली हुई है तब यीशु का जन्म एक ऐसे परिवार की कहानी बन जाता है जो सत्ता, डर और पलायन का सामना कर रहा था। अमेरिका के कुछ चर्च अब नाटिविटी सीन को शरणार्थियों और प्रवासियों की पीड़ा से जोड़कर दिखा रहे हैं, ताकि यह बताया जा सके कि यीशु का जन्म भी संघर्ष के बीच हुआ था।
जोआन टेलर ने कहा, 'इतिहास की नजर से देखा जाए तो यीशु की नाटिविटी कहानी सिर्फ शांति और खुशी की नहीं है। यह अत्याचार, भय और अस्थिरता के बीच जन्मी उम्मीद की कहानी है। शायद यही वजह है कि यह कहानी आज भी लोगों को छूती है और कठिन समय में भी आशा का संदेश देती है।'
