सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। बता दें कि नवरात्रि के नौ दिनों में मां भगवती के 9 दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है। साथ ही इन नौ दिनों में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित शक्तिपीठों में भी भक्तों की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है। भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित त्रिपुरा राज्य का नाम सुनते ही देवी शक्ति की महिमा का स्मरण होता है।

 

बहुत कम लोग जानते हैं कि त्रिपुरा का नाम त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ के कारण पड़ा है। यह शक्तिपीठ देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसका पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है। इस मंदिर से जुड़ी कथाएं, आस्था और रहस्य आज भी भक्तों को अपनी ओर खींचते हैं।

 

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त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ का पौराणिक इतिहास

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया था। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के शरीर को उठाकर तांडव शुरू कर दिया। इससे संसार में प्रलय की स्थिति बन गई। देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे इस स्थिति को शांत करें।

 

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो अलग-अलग स्थानों पर गिरे। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ वह स्थान है, जहां देवी सती का दायां वक्ष गिरा था। इसी कारण इस स्थान का धार्मिक महत्व अत्यंत बढ़ गया और कालांतर में यह स्थान त्रिपुर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

देवी त्रिपुर सुंदरी और भैरव

इस शक्तिपीठ में देवी को त्रिपुर सुंदरी और भगवान भैरव को त्रिपुरेश भैरव के नाम से पूजा जाता है। 'त्रिपुर सुंदरी' का अर्थ है- तीनों लोकों की स्वामिनी और सौंदर्य, शक्ति व करुणा की प्रतीक। त्रिपुरेश भैरव देवी के रक्षक हैं और उनके साथ इस शक्तिपीठ में पूजनीय हैं।

 

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त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ का महत्व सिर्फ त्रिपुरा राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारतवर्ष के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्रि, दुर्गा अष्टमी और शक्तिपूजा के पर्वों पर यहां हजारों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं। यहां पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति मानी जाती है और मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक की गई आराधना से सभी कष्ट दूर होते हैं। इस मंदिर में देवी को चंदन, लाल वस्त्र, फूल और विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि जो सच्चे दिल से यहां प्रार्थना करता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं।

 

त्रिपुरा का नाम: इतिहासकारों और धार्मिक विद्वानों के अनुसार, राज्य का नाम ‘त्रिपुर सुंदरी’ से ही ‘त्रिपुरा’ पड़ा। यानी यह राज्य देवी की शक्ति का साक्षात प्रतीक है।

 

रात को घंटा न बजने का रहस्य: मान्यता है कि इस मंदिर में रात्रि समय घंटा नहीं बजाया जाता क्योंकि देवी विश्राम करती हैं। इस परंपरा का पालन आज भी भक्त श्रद्धा से करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।