हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष स्थान है जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या या पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इसका प्रमुख केंद्र है वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ है, जिसकी पूजा विवाहित महिलाएं करती हैं। कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों की जाती है? आइए जानते हैं।

वट वृक्ष: त्रिदेवों का निवास स्थान

धर्म-ग्रंथों में बरगद का पेड़ हिंदू धर्म में त्रिदेवों का निवास बताया गया है। जिसमें जड़ को ब्रह्मा जी का रूप कहा गया है, जो सृजनकर्ता हैं। तने को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है, जो पालनकर्ता हैं और डाली व पत्तों को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है, जो संहार और पुनर्जन्म के देवता हैं। यही कारण है कि इसे पूजना, देवताओं की आराधना के समान माना जाता है।

 

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सावित्री और सत्यवान की कथा

वट सावित्री व्रत का मूल आधार एक सावित्री और सत्यवान से जुड़ी प्राचीन पौराणिक कथा है, जो "महाभारत" के वन पर्व में वर्णित है। कथा के अनुसार, राजा अश्वपत की पुत्री सावित्री ने अल्पायु युवक सत्यवान से विवाह किया, जिसे पहले से ही ज्ञात था कि उसकी जीवन अवधि बहुत छोटी है।

 

विवाह के बाद, एक दिन सावित्री को यह आभास हो गया कि उस दिन उसके पति की मृत्यु हो सकती है। उसने व्रत रखा और सत्यवान के साथ वन में गई, जहां वह लकड़ी काटने गया था। वहीं पर यमराज आए और सत्यवान की आत्मा को ले जाने लगे।

 

सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपनी चतुरता और तप से उन्हें प्रभावित कर अंत यमराज से सत्यवान के लिए जीवनदान प्राप्त किया। कहा जाता है कि यह पूरा प्रसंग बरगद के पेड़ के नीचे घटित हुआ था। इसलिए यह वृक्ष सावित्री की निष्ठा और तप का साक्षी माना जाता है।

 

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बरगद के पेड़ की पूजा क्यों?

बरगद का पेड़ कई सौ वर्षों तक जीवित रह सकता है। यह दीर्घायु, स्थिरता और मजबूती का प्रतीक है। जब महिलाएं इसे पूजती हैं, तो वे अपने पति के जीवन में भी यही गुण आने की प्रार्थना करती हैं। इसके साथ वट वृक्ष पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत लाभकारी होता है। यह प्राणवायु (ऑक्सीजन) अधिक मात्रा में देता है और गर्मी में ठंडी छाया देता है। इसलिए इसे 'जीवनदायक' पेड़ कहा गया है।

धार्मिक मान्यता और लाभ

ऐसा माना जाता है कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है। इसके साथ जिन महिलाओं को संतान नहीं होती, वे भी यह व्रत करती हैं और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। साथ ही मानसिक शांति, पारिवारिक समृद्धि और अध्यात्मिक बल की प्राप्ति के लिए भी इसे अत्यंत फलदायी माना गया है।