सोशल मीडिया पर अगर आप भी धर्म से जुड़े कॉन्टेंट देखते हैं तो 'वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये' गाती हुए एक चर्चित आवाज आपके कान में भी जरूर पड़ेगी। इसी आवाज में और भी स्तोत्र या मंत्र जाप आपको सुनने को मिल जाएंगे। क्या आप जानते हैं कि यह आवाज किसकी है और यह इतनी चर्चित क्यों हुई? अगर आप अब तक इस आवाज के मालिक को नहीं जानते तो यह जानकर आपको भी दुख होगा कि इस मधुर आवाज में गाने वाला शख्स अब इस दुनिया में नहीं है। सिर्फ 31 साल की उम्र में हार्ट अटैक के चलते इस दुनिया को छोड़ चुके शख्स का नाम मृत्युंजय हीरेमठ था और यह आवाज उन्हीं की है। 

 

केदारनाथ मंदिर के वेदपाठी रहे मृत्युंजय हीरेमठ के निधन के बाद भी लोग उनके गाए हुए शिव स्तोत्र को सोशल मीडिया पर सुनते हैं। वेदपाठी मृत्युंजय की मृत्यु 31 साल की उम्र हो गई थी। वह केदारनाथ मंदिर और ओंकारेश्वर मंदिर में वेदपाठी के रूप में काम करते थे। उनकी मृत्यु साल 2024 में हुई थी। मृत्युंजय मूल रूप से दक्षिण भारत के जंगम सेवा समुदाय से जुडे़ हुए थे। इस समुदाय के लोग ही केदारनाथ मंदिर धाम में पुजारी के तौर पर काम करते हैं। 108 श्री गुरुलिंग महाराज के 4 पुत्रों में मृत्युंजय हीरेमठ सबसे छोटे थे, उनके बड़े भाई शिव शंकर लिंग केदारनाथ मंदिर में पुजारी के पद पर काम करते हैं। 


मृत्युंजय हीरेमठ को उनकी अद्भुत आवाज और विशेष गायन की शैली की वजह से सोशल मीडिया पर लोग उन्हें काफी पसंद करते थे। मृत्युंजय हीरेमठ ने स्वंय से एक शिव स्तोत्र की रचना की थी। वह स्तोत्र आज भी सोशल मीडिया पर लोगों के जरिए काफी पसंद किया जाता है। उन्होंने उस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया है। 

 

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यूट्यूब पर लाखों फैन

वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ के यूट्यूब पर लोखों फैन हैं। मृत्युंजय शिव स्तोत्र और भगवान शिव का भजन गाते थे। वह श्लोकों के माध्यम से केदारनाथ की महिमा का वर्णन करते थे। मृत्युंजय अपने स्वरचित शिव स्तोत्र और गायन शैली की वजह से भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय थे। वह अपने यूट्यूब चैनल के जरिए से देश-विदेश के लोगों तक भगवान शिव की महिमा और केदारनाथ के महात्म को पहुंचाते थे। गुप्तकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर उनके गाए हुए भजनों से हमेशा गूंजता रहता था।

 

लोकप्रिय भजन

मृत्युंजय हीरेमठ का सोशल मीडिया से लेकर मंदिर के अंदर तक सबसे लोकप्रिय भजन 'सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं... तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।' था। यह भजन सुनकर भक्त भाव विभोर हो उठते थे। उनके गायन के बाद मंदिर का महौल आध्यात्मिक हो जाता था। यह श्लोक 'सोमनाथ स्तुति' से लिया गया है। यह स्तुति भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन करती है। इसी का पूरा रूप आप सुनेंगे तो मृत्युंजय हीरेमठ ने 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा भी शानदार स्वर में गाई है।

 

स्वरचित शिव स्तोत्र

मृत्युंजय हीरेमठ ने 'जयशंभुनाथ दिगंबरम्। करुणाकरं जगदीश्वरम्' नामक शिव स्तोत्र की रचना स्वयं की थी। इस स्तोत्र के माध्यम से उन्होंने भगवान शिव की आध्यत्मिक महिमा का वर्णन किया है। इस शिव स्तोत्र को मृत्युंजय ने अपने यूट्यूब चैनल पर भी शेयर किया था, जो आज भी मौजूद है। यह शिव स्तोत्र भगवान शिव के भक्तों के बीच न केवल भारत में ही, बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हैं। 

 

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गुरुलिंग महाराज - मृत्युंजय हीरेमठ के पिता

केदारनाथ धाम में पुजारी के रूप में सेवा


गुरुलिंग महाराज केदारनाथ धाम में पुजारी के तौर पर लंबे समय तक सेवा दे चुके हैं। वह अपने जीवन के शुरुआती दौर में ही केदारनाथ मंदिर समिति के साथ जुड़ गए थे। गुरुलिंग महाराज श्रद्धालुओं के बीच धर्म और संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा से काम करने के लिए जाने जाते हैं।   

 

देश-विदेश में पूजनीय परिवार


गुरुलिंग महाराज और उनके परिवार ने धार्मिक सेवाओं के प्रति समर्पण के बल पर श्रद्धालुओं और धार्मिक संगठनों का सम्मान अर्जित किया है। उनका परिवार अब अस्थायी रूप से उखीमठ (रुद्रप्रयाग) में रहता है और पूजा-पाठ की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। 

शिव शंकर लिंग- वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ के बड़े भाई

केदारनाथ प्रतिष्ठान में पुजारी


शिव शंकर लिंग वर्तमान में श्री बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) के अंतर्गत केदारनाथ प्रतिष्ठान में पुजारी के तौर पर काम करते हैं। इस पद पर रहकर वह अपने पारिवारिक और धार्मिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, जो दक्षिण भारत के जंगम शैव समुदाय से जुड़ी है। 

 

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वेदपाठी परिवार की धार्मिक परंपरा


शिव शंकर लिंग ने परिवार के धार्मिक कार्यों और संस्कारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने काम को ईश्वर की सेवा मानकर किया है और केदारनाथ धाम आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भरोसेमंद पुजारी के रूप में जाने जाते हैं।

शैव परंपरा के अनुसार दी गई समाधि

मृत्युंजय हीरेमठ की मृत्यु 19 अप्रैल 2024 को गढ़वाल लोकसभा सीट पर मतदान के दिन हुई थी। वह वोट डालने के बाद वापस घर लौट रहे थे इस दौरान हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई थी। 20 अप्रैल को शैव पंरपरा के अनुसार, उन्हें सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई थी, जिसमें लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। वेदपाठी मृत्युंजय हीरेमठ को मंदाकिनी नदी तट पर शैव परंपरा के अनुसार समाधि दी गई थी ।