महाकुंभ नगर में जहां एक ओर दुनिया भर के छोटे बड़े साधु संत महात्मा, लाखों की संख्या में कल्पवासी श्रद्धालु और पर्यटक डटे हैं, दूसरी तरफ देश-दुनिया से आए पर्यटक अलग लुत्फ ले रहे हैं। महाकुंभ नगर में खान-पान के उत्पाद भी खूब बिक रहे हैं। यहां धार्मिक किताबें, पूजा में इस्तेमाल होने वाली चीजें भी खूब बिक रही हैं।
इन सामानों के बीच एक बड़े आकार का 'विष्णुशंख' भी सुर्खियों में है। नासिक से आए एक विक्रेता ने इस शंख को बेचने के लिए रखा है। इसकी कीमत इतनी ज्यादा बताई जा रही है कि लोग खरीद ही नहीं पा रहे हैं। व्यापारी का कहना है कि इसकी कीमत केवल जरूरतमंद भक्त ही समझ सकते हैं।
मेला क्षेत्र के सेक्टर 18,19 और 20 में सड़कों पर रुद्राक्ष, मोती, नग और तुलसी की मालाओं दुकानें लगी हैं। हरिद्वार नासिक उत्तराखंड से लेकर सूरत मुंबई तक से लोग यहां रोड पटरी पर मालाओं की बड़ी रेंज लेकर बैठे हैं। वैसे पूरे मेला क्षेत्र में तो ऐसी हजारों दुकानें हैं लेकिन इन सेक्टरों की दुकानों पर कुछ ज्यादा ही भीड़ रहती है।
कहां मिलेगी जादुई शंख?
सेक्टर 18 की पास शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती के शिविर के पास यह मालाओं वाली दुकान है जिसपर यह विष्णु शंख बिक्री के लिए रखी हुई है। दुकानदार के मुताबिक यह विष्णु शंख रामेश्वरम के आसपास बहुत गहरे समुद्र में पाया जाता है। मछुवारों के लिए इसका मिलना सौभाग्य और बड़े मुश्किल का काम होता है। मछुआरे इसे बाजार में बेचते हैं। वहां से यहां तक आने में काफी कीमत बढ़ जाती है।
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बड़े धार्मिक स्थलों और आयोजनों में यह शुभ वस्तु के रूप में स्थापित किया जाता है। इस शंख को बजा पाना बेहद मुश्किल काम है लेकिन इसे शुभ प्रतीक माना जाता है। इसे मछुआरे समुद्र तल से लाते हैं यह पूरी तरह से प्राकृतिक है इसमें किसी तरह की कारीगरी या बनावट नहीं की गई है। यह शंख करीब14 से 15 किलोग्राम का है। सामान्य शंखों की तुलना में यह शंख कई गुना बड़ा है।

अनोखे शंख की खूब हो रही है चर्चा
महाकुंभ नगर क्षेत्र में कल्पवास करने आए प्रतापगढ़ निवासी ललित नारायण मिश्रा ने बताया कि वह मेला क्षेत्र में 13 जनवरी से आ गए हैं और जगह-जगह घूम रहे हैं। उन्हें कहीं ऐसी शंख नजर नहीं आई है। इतने विशाल शंख को देखकर हैरानी भी हुई है। शंख सनातन धर्म का एक प्रतीक है। पूजा-पाठ में शंख का विशेष महत्व है। शंखनाद विजय और शांति का प्रतीक है।
क्यों नकली लग रही है यह शंख?
एक संत ने कहा, 'देखने में तो यह सुंदर लग रहा था लेकिन हमें लगा किया आर्टिफिशियल है। जब हाथ में लेकर देखा तो बहुत ही कोमल, शीतल और मृदुल एहसास रहा है। बड़ी शुभ और विलक्षण लगी यह शंख। अगर भारतीय ऐतिहासिकता की बात करें तो महाभारत काल में महाबली भीमसेन के पास एक विशाल शंख था जिसे पौंड्रक शंख कहा जाता था। भीमसेन का यह शंख इतना विशाल था कि इसके बजाने से शत्रु ध्वनि की आवाज से भय बस भाग जाते थे।'
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कितने तरह की होती है शंख?
शंख दो तरह की होती है। वामावर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख। यह एक समुद्री जीव है, जिसे समुद्री घोंघा प्रजाति में रखा गया है। यह टर्बिनेला पाइरम नाम से चर्चित है। इस खोल का भीतरी भाग खोखला और बहुत चमकदार होता है। कुंडल बनाने की दिशा के आधार पर शंखों की किस्में तय की जाती हैं। वामावर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख।
वामावर्ती शंख सामान्य रूप से उपलब्ध है और इसकी कुंडलियां या चक्राकार पदार्थ एक सर्पिल में फैलते हैं। वहीं दक्षिणावर्ती शंख बहुत दुर्लभ है। दक्षिणावर्त इसकी कुंडलियाँ या चक्राकार पदार्थ वामावर्त फैलते हैं। यह बहुत ही दुर्लभ रूप से बनने वाली आकृति है और इसे शुभ और धन देने वाला माना जाता है।
हिंदू धर्म में क्यों पवित्र मानी जाती है शंख?
हिंदू मान्यता कहती है कि दक्षिणावर्ती शंख एक दुर्लभ रत्न की तरह है। अगर ऐसे शंख में कोई दोष भी हो तो भी उसे सोने से मढ़ने से उसका पुण्य वापस मिल जाता है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु को स्नान कराने से भक्तों को पिछले सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, शंख से प्रवाहित जल से देवता को स्नान कराना सात समुद्रों और नदियों के जल जितना पवित्र माना जाता है।