भारतीय समाज में ज्योतिष और उससे जुड़ी भविष्यवाणी हिंदू धर्म में विशेष सम्मान प्राप्त है। सदियों से लोग जीवन की उलझन, समस्या और भविष्य से जुड़ी बातों को समझने और उन्हें जानने की इच्छा रखते हैं। इसके लिए वह ज्योतिष और धार्मिक साधना करते हैं। हालांकि आज के समय में यह बहस गहराती जा रही है कि क्या ये केवल आस्था के विषय है या मनोविज्ञान का हिस्सा? आइए संस्कृत के विद्वान आचार्य श्याम चंद्र मिश्र से जानते हैं कि ज्योतिष, भविष्यवाणी और धर्म हैं।

 

आचार्य मिश्र बताते हैं कि धर्म संस्कृत शब्द 'धृ' धातु से निकला है, जिसका अर्थ है 'धारण करना'। धर्म का उद्देश्य मनुष्य को नैतिक जीवन, सत्य, करुणा और अनुशासन की राह पर ले जाना है। हिन्दू धर्म सहित सभी धर्म सिर्फ ईश्वर पूजा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उसे जीवन जीने की पद्धति हैं। यह जीवन के चार स्तंभ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से एक है।

ज्योतिष क्या है और यह कैसे कार्य करता है?

आचार्य इस पर बताते हैं कि ज्योतिष विद्या प्राचीन भारतीय शास्त्रों की एक प्रमुख शाखा है। इसे वेदांग कहा गया है, जो वेदों के अध्ययन में सहायक माना गया है। इसके अनुसार, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और गति का प्रभाव मानव जीवन और घटनाओं पर पड़ता है। जन्म के समय की कुंडली के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव, स्वास्थ्य, संबंध और जीवन की संभावनाओं का अनुमान लगाया जाता है।

 

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ज्योतिष का उद्देश्य यह नहीं होता कि वह निश्चित भविष्य बताए, बल्कि यह संभावनाओं का संकेत देता है। इसमें दशा, गोचर, ग्रहों की दृष्टि, भाव और नक्षत्रों की गहराई से गणना की जाती है। महर्षि पराशर, वराहमिहिर जैसे विद्वानों ने ज्योतिष के सिद्धांतों को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया था।

भविष्यवाणी: विज्ञान या मनोविज्ञान?

इसपर आचार्य मिश्र बताते हैं कि कई बार व्यक्ति अपनी समस्याओं के समाधान के लिए ज्योतिषी के पास जाता है। वह जो सुनता है, उसी को अपने जीवन में घटित होते देखता है- इसे 'आत्म-संकेत' भी कहा जाता है। यानी व्यक्ति खुद को मानसिक रूप से उसी दिशा में ढाल लेता है, जिसकी भविष्यवाणी की गई हो। जो एक मनोविज्ञान का ही हिस्सा है लेकिन ज्योतिषीय भविष्यवाणी को झुठलाना गलत होगा।

धर्मशास्त्रों में ज्योतिष का स्थान

वेद, पुराण और उपनिषदों में ज्योतिष और कालगणना का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में नक्षत्रों की गणना, सूर्य-चंद्र ग्रहण की स्थितियों का वर्णन मिलता है। 'काल पुरुष सिद्धांत' के अनुसार, ब्रह्मांड की हर घटना एक निश्चित कालचक्र के अनुसार होती है।

 

धार्मिक ग्रंथों में भी विभिन्न ऋषियों द्वारा दी गई भविष्यवाणियां देखने को मिलती हैं, जैसे नारद मुनि, अत्रि ऋषि, आदि। इन भविष्यवाणियों का उद्देश्य डर फैलाना नहीं, बल्कि लोगों को जीवन के सचेत रहने और अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

 

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आचार्य मिश्र आगे बताते हैं कि ज्योतिष, धर्म और भविष्यवाणी को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम इन्हें अंधविश्वास के चश्मे से न देखें, न ही आंख मूंदकर स्वीकार करें। मनुष्य ने सदा से यह जानने की कोशिश की है कि उसका भविष्य कैसा होगा और इसी खोज ने इन प्रणालियों को जन्म दिया।

 

आस्था वह शक्ति है जो मनुष्य को कठिनाइयों से जूझने की प्रेरणा देती है। यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष या भविष्यवाणी से मानसिक बल पाता है, तो वह उसके लिए सहायक हो सकती है। वहीं, यह भी जरूरी है कि इन प्रणालियों का उपयोग डर फैलाने या आर्थिक दोहन के लिए न किया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार देखा जाता है कि ज्योतिष गणनाओं को देखकर अच्छी बातें न बताकर केवल नकारात्मक ही बताया जाता है, जो इस विद्या से छल करने के समान है।