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श्रुति और स्मृति वेद में अंतर क्या है? जानिए अपने हर सवाल का जवाब

हिंदू धर्म में श्रुति और स्मृति वेद को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानते हैं क्या है इनमें अंतर और इनका उद्देश्य।

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सांकेतिक चित्र(Photo Credit: AI Image)

भारतीय सनातन धर्म में वेदों को परम सत्य और ज्ञान का स्रोत माना गया है। वेदों को दो मुख्य भागों में बांटा गया है- श्रुति और स्मृति। दोनों का उद्देश्य मानव जीवन को धर्म, ज्ञान और आचरण की दिशा देना है लेकिन इनकी उत्पत्ति, स्वरूप और महत्व में कई मूलभूत अंतर हैं। आइए जानते हैं, क्या है श्रुति और स्मृति में क्या है अंतर।

श्रुति क्या है?

श्रुति का अर्थ होता है 'जो सुना गया हो।' श्रुति ग्रंथों को ऋषियों ने ध्यान और साधना के माध्यम से ब्रह्मा या ईश्वर से सुना और फिर उन्हें पीढ़ियों तक मौखिक रूप से सुरक्षित रखा गया।

 

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श्रुति की मुख्य विशेषताएं

इसे अपौरुषेय (मनुष्य से परे, ईश्वर प्रदत्त) माना गया है। इसका स्रोत स्वयं ब्रह्मा या परमात्मा माने जाते हैं। यह ज्ञान ऋषियों ने ध्यान में सुना और ग्रहण किया। यह ग्रंथ मौलिक और सर्वप्रथम माने जाते हैं।

श्रुति में कौन-कौन से ग्रंथ आते हैं?

  • चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
  • ब्राह्मण ग्रंथ – वेदों की व्याख्या
  • आरण्यक – वन में अध्ययन करने योग्य ग्रंथ
  • उपनिषद – वेदांत का ज्ञान, आत्मा और ब्रह्मा का रहस्य

श्रुति का प्रमुख उद्देश्य ईश्वर, आत्मा, ब्रह्माण्ड और जीवन के रहस्यों का उद्घाटन करना है। यह आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान का मूल स्रोत है।

स्मृति क्या है?

स्मृति का अर्थ होता है- 'जो याद किया गया हो।' स्मृति ग्रंथों की रचना महर्षियों और विद्वानों ने श्रुति के आधार पर समाज की आवश्यकताओं के अनुसार की थी। यह मानव निर्मित ग्रंथ हैं, परंतु श्रुति के अनुसार आधारित होते हैं। ये ग्रंथ समाज, धर्म, आचार, नीति और व्यवहार को दिशा देने के लिए बनाए गए थे। समय और स्थान के अनुसार इनमें परिवर्तन संभव होता है।

 

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स्मृति में कौन-कौन से ग्रंथ आते हैं?

  • धर्मशास्त्र/स्मृतियां – मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि
  • रामायण और महाभारत – दो महान इतिहास ग्रंथ
  • पुराण – 18 मुख्य और 18 उप पुराण (जैसे भागवत, शिव, गरुड़)
  • सूत्र ग्रंथ – गृह्य सूत्र, धर्म सूत्र आदि
  • न्याय और दर्शन शास्त्र – 6 दर्शनों में स्मृति का उपयोग होता है।

स्मृति का लक्ष्य है श्रुति के सिद्धांतों को व्यवहारिक जीवन में लागू करना। जैसे न्याय, राजनीति, विवाह, सामाजिक व्यवस्था, नियम और संस्कार आदि।

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