मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित पहाड़ी पर विराजमान बीजासन माता मंदिर (सलकनपुर) भक्तों का प्रमुख आकर्षण केंद्र माना जाता है। इस प्राचीन शक्तिपीठ को न सिर्फ स्थानीय क्षेत्र में, बल्कि देशभर में अपनी मनोकामना पूर्ति, आध्यात्मिक शक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। हर वर्ष नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर यहां लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन और आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं, इसी के चलते मंदिर परिसर में श्रद्धा और उत्साह का नजारा देखने को मिलता है।

 

कहा जाता है कि बीजासन माता की साधना यहां श्रद्धालुओं को जीवन की चुनौतियों से उबरने, पारिवारिक सुख–शांति पाने और भावनात्मक ऊर्जा को मजबूत करने में मदद करती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 1,000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा भी साबित होती है। इसके अलावा बुजुर्गों और विशेष रूप से यात्रा करने में असमर्थ लोगों के लिए रोपवे जैसी सुविधाओं का विकास भी चल रहा है।

 

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मंदिर की मुख्य विशेषताएं

बीजासन माता का मंदिर एक सिद्धपीठ माना जाता है और यह विंध्याचल श्रेणी की एक छोटी चोटी पर स्थित है। मंदिर लगभग 800 फीट ऊंचे पहाड़ पर है और ऊपर चढ़ने के लिए लगभग 1,000–1,400 सीढ़ियां हैं।  यह चढ़ाई श्रद्धालुओं के लिए एक भक्तिमय अनुष्ठान भी मानी जाती है। हाल के वर्षों में बुज़ुर्गों और असमर्थ श्रद्धालुओं के लिए रोपवे (केवल कुछ स्रोतों में उपलब्ध/विकसित बताया गया है) जैसी सुविधाएं भी दी गयी हैं, जिससे ज्यादा लोग सहजता से दर्शन कर सकें। मंदिर के आसपास का प्राकृतिक परिदृश्य शांत व हराभरा है और ऊपर से आसपास के जंगलों औक इलाके के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। 

इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

सिद्धि और मनोकामना पूरी होने का स्थान: स्थानीय मान्यता है कि बीजासन माता की कृपा बहुत जल्दी फलित होती है। यहां आकर भक्तों की मनोकामनाएं, विशेषकर संतान की कामना, पारिवारिक सुख-समृद्धि और रोग-मुक्ति के लिए मानी जाती हैं। 


शक्ति और सुरक्षा की देवी: देवी को विंध्यवासिनी रूप में शक्ति का रूप माना जाता है। वह बुराई, बाधा और संकट से रक्षा करती हैं। इसलिए अनेक श्रद्धालु संकटमोचन और स्वास्थ्य-संबंधी प्रार्थनाओं के लिए आते हैं। 

 

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा 

लोककथाओं और स्थानीय इतिहास के अनुसार, करीब 300 वर्ष पूर्व एक समूह बंजारे (चरवाहे/व्यापारी) इस पहाड़ी पर आराम के लिए रुके थे। अचानक उनके गायब हो गए पशु ढूंढने गये तो उन्हें यहां एक कन्या का दिव्य स्वरूप मिला जिसने संकेत ने देवी के स्थान का पता दिखाया। उस स्थान पर जब उन्होंने पूजा की तो उनके खोए हुए पशु वापस मिल गए और उस चमत्कार के बाद वहां देवी की स्थापित मूर्ति की पूजा-अर्चना हुई। श्रद्धा बढ़ने पर स्थानीय लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण कराया और धीरे-धीरे यह स्थान श्रद्धालुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ बन गया। 

प्रमुख त्योहार और पूजा-व्यवस्था

नवरात्रि (वसंत/चैत्र और शरद दोनों): मंदिर पर सबसे बड़ा उत्सव नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। इस समय लाखों श्रद्धालु आते हैं, विशेष मेले और भंडारे आयोजित होते हैं।

 

माघ मेला/विशेष आयोजन: फरवरी-मार्च के आसपास विशेष मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों की प्रथा रही है।

 

दैनिक आरती और दर्शन: सुबह-दोपहर-शाम नियमित आरती होती है। दर्शन समय आमतौर पर सुबह से शाम तक बने रहते हैं।  शेड्यूल साल-दर-साल बदल सकता है, इसलिए यात्रा से पहले स्थानीय लोगों से समय की पुष्टि कर लेना अच्छा रहता है। 

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता 

नजदीकी एयरपोर्ट

 

नजदीकी प्रमुख हवाई अड्डा भोपाल (Raja Bhoj Airport) है, जो लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित है। भोपाल हवाई अड्डे से टैक्सी या कार के जरिए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। 

 

नजदीकी रेलवे स्टेशन

 

निकटतम रेल स्टेशन के रूप में Budni / Sehore / Bhopal जंक्शन का इस्तेमाल होता है।

 

सड़क मार्ग

 

भोपाल से 70 किमी सड़क मार्ग के जरिए आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। सीहोर जिला मुख्य मार्गों से जुड़ा हुआ है।