इजरायल और ईरान में शुरू हुए भीषण जंग में पूरी दुनिया में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। वहीं ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनई ने संघर्ष के दौरान सोशल मीडिया ऐप X पर लिखा कि 'महान हैदर के नाम पर, लड़ाई शुरू होती है. अली अपनी जुल्फिकार के साथ खैबर लौटते हैं।'

 

ईरान के सर्वोच्च नेता के पोस्ट ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी। इस पोस्ट में उन्होंने चार शब्दों का जिक्र किया- हैदर, अली, जुल्फिकार और खैबर। इन शब्दों का इस्लाम के इतिहास और युद्ध में बहुत बड़ी जगह है। आइए जानते हैं इन शब्दों के पीछे छिपे मतलब, उनका इतिहास और आज की राजनीति से संबंध।

 

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हैदर और अली का क्या है मतलब?

‘हैदर’ शब्द अरबी भाषा का है, जिसका मतलब होता है ‘शेर’। यह नाम खासतौर पर इस्लाम के एक योद्धा और शासक हजरत अली के लिए लिया जाता है। हजरत अली, पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे। बता दें कि शिया मुसलमान उन्हें पहला इमाम मानते हैं। वहीं सुन्नी मुसलमान उन्हें इस्लाम के चौथे खलीफा के रूप में जानते हैं।

 

हजरत अली को इस्लाम में बहुत सम्मान से देखा जाता है। उन्हें 'हैदर-ए-कर्रार' यानी 'निडर शेर' भी कहा जाता है और यह नाम युद्ध के समय यह बहुत बड़ा माना जाता है।

जुल्फिकार- अली की दोधारी तलवार

जुल्फिकार एक मशहूर तलवार का नाम है, जो हजरत अली को पैगंबर मोहम्मद ने तोहफे के तौर पर दी थी। यह तलवार दोधारी थी यानी उसके दोनों किनारे तेज थे। इस तलवार को इस्लामी परंपरा में बहादुरी, न्याय और विजय का प्रतीक माना जाता है।

 

बहुत से झंडों, बैनरों और धार्मिक प्रतीकों में जुल्फिकार की तस्वीर अंकित होती है। जब कोई धार्मिक या राजनीतिक नेता ‘जुल्फिकार’ का जिक्र करता है, तो वह अपने संघर्ष को हजरत अली की विरासत से जोड़कर एक शक्ति और साहस का संदेश देता है।

 

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खैबर का मतलब

खैबर सऊदी अरब के एक इलाके का नाम है, जो इस्लाम के शुरुआती दिनों में एक बड़ी यहूदी बस्ती था। इस जगह पर 628 ईस्वी में एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जिसे ‘गज़वा-ए-खैबर’ कहा जाता है।

 

इस युद्ध में पैगंबर मोहम्मद और उनके अनुयायियों ने खैबर के किलों पर चढ़ाई की थी। हजरत अली ने इस लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई थी और एक भारी लोहे का दरवाजा उखाड़ कर किला फतेह किया था। खैबर की जीत को इस्लामिक इतिहास में साहस का प्रतीक माना जाता है।