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'बड़े नेत्र, अधूरा शरीर', भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का क्या है अर्थ?

हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ की उपासना का खास स्थान है। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति के पीछे का रहस्य।

Image of Bhagwan Jagannath

भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भगवान जगन्नाथ का नाम सुनते ही उड़ीसा (ओडिशा) के पुरी नगर में स्थित जगन्नाथ मंदिर की छवि मन में उभरती है। हालांकि, इस मंदिर और विशेषकर यहां विराजमान भगवान जगन्नाथ की अद्वितीय मूर्ति के स्वरूप को लेकर लोगों के मन में वर्षों से कई प्रश्न उठते हैं। खासतौर पर उनकी बड़ी-बड़ी आंखें, बिना हाथ-पैर के अधूरी प्रतीत होती मूर्ति, बड़ा मुख और सामान्य मूर्तियों से अलग आकृति- ये सब भक्तों को आकर्षित करते हैं। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ मूर्ति से जुड़ी मान्यताएं और पौराणिक कथा।

भगवान जगन्नाथ का स्वरूप क्यों है अलग?

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति पारंपरिक हिंदू मूर्तियों से बिल्कुल भिन्न है। न तो इसमें सामान्य तरह के अंग होते हैं, न ही वह सुव्यवस्थित सुगठित काया जैसा होता है जैसे हम मंदिरों में देखते हैं। कहा जाता है कि उनके भगवान जगन्नाथ की आंखें गोल और बहुत बड़ी हैं। यह उनके सर्वदर्शी होने का प्रतीक है। उनका बड़ा मुख उनके सर्वश्रवणशील और सर्वभक्ष्य (सभी का पालन करने वाले) स्वरूप को दर्शाता है। साथ ही बिना हाथ और पैर की यह मूर्ति अधूरी प्रतीत होती है लेकिन इसमें एक गहरा संकेत छिपा है, जिसे समझने के लिए हमें उनकी पौराणिक कथा जाननी होगी।

 

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मूर्ति की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

प्राचीन समय में मालवा प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न विष्णु के महान भक्त थे। एक बार उन्हें स्वप्न में दर्शन हुआ कि नीलमाधव नाम के एक दिव्य रूप में भगवान विष्णु जंगल में किसी स्थान पर प्रकट हैं। राजा ने खोज शुरू की लेकिन नीलमाधव का दर्शन न हो सका। इसके बाद उन्हें एक बार फिर स्वप्न में आदेश मिला कि वे समुद्र किनारे जाएं और वहां एक विशेष लकड़ी (दारु) से भगवान विष्णु की मूर्ति बनवाएं।

 

राजा इंद्रद्युम्न ने समुद्र किनारे जाकर उस दिव्य दारु (लकड़ी) को पाया। तभी वहां एक रहस्यमय वृद्ध कारीगर (जिन्हें विश्वकर्मा माना जाता है) आया और कहा, 'मैं इन मूर्तियों को बनाऊंगा, लेकिन एक शर्त है — जब तक मैं द्वार बंद कर काम करूं, कोई द्वार न खोले। अगर किसी ने बीच में दरवाजा खोला, तो मूर्तियां अधूरी रह जाएंगी।'

 

राजा सहमत हुए। कारीगर काम में लग गया और 21 दिन की अवधि तय हुई। लेकिन कुछ दिन बीतते ही भीतर से आवाजें आनी बंद हो गईं। रानी ने चिंतित होकर राजा से कहा कि कारीगर जीवित भी है या नहीं, यह देखना चाहिए। राजा ने द्वार खोल दिया। जैसे ही दरवाजा खुला, कारीगर लुप्त हो गया और मूर्तियां अधूरी रह गईं – हाथ-पैर अधूरे, आंखें बड़ी, शरीर अधविकसित।

 

आध्यात्मिक संकेत और रहस्य

यह अधूरा रूप वास्तव में मानव जीवन के अपरिपूर्ण समझ और पूर्णता की प्रतीक्षा का प्रतीक है। इसे रूपों से परे एक दिव्यता का संकेत माना जाता है।

 

बड़ी आंखें: भगवान की दृष्टि सब कुछ देख सकती है- पाप-पुण्य, भीतर-बाहर। उनका प्रेम और दया किसी भौतिक रूप तक सीमित नहीं है।

बिना हाथ-पैर: यह दर्शाता है कि ईश्वर का कार्य सिर्फ हाथ-पैर से नहीं, बल्कि संकल्प और ऊर्जा से होता है। वह बिना किसी अंग के भी सृष्टि चला सकते हैं।

अधूरी मूर्ति: यह यह भी दर्शाती है कि भगवान केवल बाहरी रूप से नहीं, भाव और श्रद्धा से पूजे जाते हैं।

 

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रथयात्रा और मूर्ति का महत्त्व

हर साल पुरी में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा विश्वप्रसिद्ध है। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विशाल रथों में बैठकर नगर भ्रमण करते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर खुद भक्तों के बीच आते हैं, न कि केवल मंदिर में बैठते हैं। यह यात्रा भी यही सिखाती है कि भगवान किसी रूप या मूर्ति तक सीमित नहीं हैं, वे प्रेम, सेवा और समर्पण से सहज ही प्राप्त हो सकते हैं।

जगन्नाथ – सर्वधर्म समभाव के प्रतीक

जगन्नाथ का स्वरूप यह भी दर्शाता है कि ईश्वर किसी एक वर्ण, जाति, भाषा, या देश के नहीं होते। उनकी मूर्ति में न कोई विशेष जातीय या सांस्कृतिक लक्षण हैं, न पारंपरिक वस्त्र-शृंगार। इसलिए कई विद्वान मानते हैं कि जगन्नाथ सभी धर्मों, समुदायों और विचारधाराओं को जोड़ने वाले सर्वधर्म समभाव के प्रतीक हैं।

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