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अक्कारे कोट्टियूर मंदिर: साल में सिर्फ एक बार खुलता है ‘महा शिव मंदिर’

केरल में स्थित अक्कारे कोट्टियूर महा शिव मंदिर साल में सिर्फ एक बार 27 दिनों के लिए खुलता है। जानिए इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं।

Image of Akkare Kottiyoor temple

अक्कारे कोट्टियूर महा शिव मंदिर(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत के दक्षिणी राज्य केरल में स्थित अक्कारे कोट्टियूर महा शिव मंदिर न केवल एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, बल्कि इसका इतिहास, परंपराएं और वातावरण भी इसे विशेष बनाते हैं। यह मंदिर केरल के कन्नूर जिले में स्थित है और वावली नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। इसे स्थानीय लोग किझक्केश्वरम या अक्कारे कोट्टियूर के नाम से भी जानते हैं, जिसका अर्थ है – 'नदी के उस पार का कोट्टियूर'।

 

अक्कारे कोट्टियूर एक अस्थायी मंदिर है, जो केवल साल में एक बार वैशाख महीने के त्योहार के दौरान खुलता है। यह मंदिर घने जंगलों और वन्य क्षेत्र के बीच बसा हुआ है, जो अब वन्यजीव अभयारण्य घोषित हो चुका है। यह पूरा क्षेत्र लगभग 80 एकड़ में फैला हुआ है और बेहद शांत, प्राकृतिक और आध्यात्मिक वातावरण से भरपूर है।

 

नदी के पश्चिमी किनारे पर एक स्थायी मंदिर स्थित है जिसे इक्कारे कोट्टियूर या थ्रुच्चेरुमाना मंदिर कहा जाता है, जो पूरे साल खुला रहता है।

 

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पौराणिक कथा

इस मंदिर से जुड़ी कथा दक्ष यज्ञ से संबंधित है। भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आमंत्रण न मिलने पर आहत होकर आत्मदाह कर लिया था। इस घटना से शिव बहुत दुखी हुए और सती के शव को उठाकर सृष्टि भर में घूमने लगे। मान्यता है कि सती के नयन (आंखें) इसी स्थान पर गिरे थे, जिससे यह स्थान पवित्र शक्ति स्थल बन गया।

 

यहां सती को एक विशेष स्थान 'अम्मरक्कलु थरा' पर पूजित किया जाता है। यह मंदिर न केवल एक शक्ति पीठ है, बल्कि इसे त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और शिव तथा आदि शक्ति के एकत्र होने का स्थान भी माना जाता है।

 

धार्मिक महत्व और विशेषताएं

शिव, विष्णु और शक्ति – तीनों परंपराओं का संगम यहां देखने को मिलता है।


नाम 'कोट्टियूर' संस्कृत के 'कूडी' (मिलन) और 'ऊरु' (स्थान) से बना है, यानी "जहां सब देवता एकत्र होते हैं"।


यहां की पूजा पद्धति और नियम संकराचार्य द्वारा निर्धारित किए गए थे, जिन्होंने इस स्थान की पवित्रता को देखते हुए केवल नदी के पश्चिमी किनारे से ही पूजा की थी।

मंदिर की विशेष परंपराएं

स्वयंभू शिवलिंग: यहां का शिवलिंग स्वतः प्रकट हुआ माना जाता है, जिसे कुरुमथूर ब्राह्मण गले लगाकर पूजते हैं।


रोहिणी पूजा, शाक्त, वैष्णव और शैव परंपराओं का संतुलित समावेश – यह स्थान धार्मिक एकता का प्रतीक है।


भद्रकाली की कथा: एक नम्बूदिरी ब्राह्मण को देवी भद्रकाली ने तीन पवित्र प्रतीक दिए, जो आसपास के तीन मंदिरों में स्थापित किए गए, जिससे इस क्षेत्र की धार्मिक परंपरा और गहरी हुई।

 

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मुख्य त्योहार – वैशाख महोत्सव

अक्कारे कोट्टियूर मंदिर साल में केवल वैशाख महोत्सव के दौरान खुलता है, जो मई-जून में 27 दिनों तक चलता है। यह पर्व अनेक धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं से जुड़ा हुआ है:

नेय्यट्टम – घी से भगवान शिव का अभिषेक कर पर्व की शुरुआत होती है।


एलानीरट्टम – नारियल पानी से विशेष अभिषेक की प्रक्रिया।


थ्रिक्कलाशट्टु – तीन पवित्र कलशों से समापन अभिषेक।


यह पूरी प्रक्रिया बेहद श्रद्धा, नियम और अनुशासन के साथ संपन्न होती है। भक्तजन मीलों दूर से पैदल आकर पूजा सामग्री लाते हैं, जिसकी परंपरा पजास्सी राजघराने द्वारा आरंभ की गई थी। इतिहास में कोट्टियूर परुमाल मंदिर को केरल का दूसरा सबसे धनी मंदिर माना जाता था। इसके पास हजारों एकड़ जमीन और बहुमूल्य संपत्तियां थीं। करिम्बना गोपुरम नामक स्थान पर ये संपत्तियां सुरक्षित रखी जाती थीं।

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