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जन्म और विनाश का चिह्न है जगन्नाथ की रथ यात्रा

हिंदू धर्म में जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का विशेष स्थान है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें।

Image of Jagannath Rath Yatra

प्रतीकात्मक चित्र(Photo Credit: PTI File Photo)

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में कई पर्व और उत्सव अनोखे हैं, लेकिन पुरी की रथ यात्रा का स्थान अत्यंत विशेष है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ जुड़ी है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ओडिशा के पुरी नगर में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसे देखने लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।

रथ यात्रा का प्रतीक क्या है?

रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे प्रतीकात्मक अर्थ छिपे हैं:

जीवन के मार्ग पर ईश्वर की यात्रा:


यह यात्रा दर्शाती है कि भगवान केवल मंदिरों में सीमित नहीं रहते, वे अपने भक्तों के बीच आते हैं। रथ का चलना यह बताता है कि जीवन एक चलती हुई यात्रा है और ईश्वर हर पल हमारे साथ चलते हैं।


समानता और समरसता का संदेश: रथ यात्रा में हर जाति, वर्ग और धर्म के लोग मिलकर रथ को खींचते हैं। यह समाज में समानता और भाईचारे का संदेश देता है।


अहंकार का विनाश: भगवान को रथ से मंदिर से बाहर ले जाना यह दर्शाता है कि ईश्वर को अपने हृदय में उतारना चाहिए, न कि केवल बाहरी पूजा तक सीमित रखना चाहिए। यह आंतरिक अहंकार को त्यागने का प्रतीक है।


प्रकृति और जीवन चक्र से जुड़ाव: यह यात्रा वर्षा ऋतु के आगमन से पहले होती है, जब जीवन एक नए चक्र में प्रवेश करता है। यह प्रकृति के साथ तालमेल की भी प्रतीक है।

रथ यात्रा का इतिहास

रथ यात्रा की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी मानी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने जब द्वारका में अपने नश्वर शरीर का त्याग किया, तब उनके अवशेष एक लकड़ी के लठ्ठे के रूप में समुद्र तट पर मिले। राजा इन्द्रद्युम्न को स्वप्न में यह संकेत मिला कि वे उस लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनवाएं।

 

पुरी में बनाए गए इस भव्य मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित की गईं। यह भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण अपने जीवनकाल में अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ वृंदावन जाना चाहते थे, लेकिन नहीं जा सके। उसी स्मृति को पुनर्जीवित करने के लिए हर वर्ष रथ यात्रा निकाली जाती है।

रथ यात्रा की विशेषता:

तीन भव्य रथ:


भगवान जगन्नाथ का रथ – नन्दीघोष (16 पहिए, लाल और पीला रंग)
बलभद्र का रथ – तलध्वज (14 पहिए, लाल और हरा रंग)
सुभद्रा का रथ – पद्मध्वज (12 पहिए, लाल और काला रंग)


गुंडिचा मंदिर की यात्रा:


तीनों देवता अपने-अपने रथ में बैठकर पुरी के मुख्य मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं। यह मंदिर भगवान की मौसी का घर माना जाता है।


रथ खींचने की परंपरा:


श्रद्धालु रथ को खींचकर पुण्य प्राप्त करते हैं। यह माना जाता है कि भगवान का रथ खींचने से पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


7 दिन का विश्राम:


देवता गुंडिचा मंदिर में एक सप्ताह तक विश्राम करते हैं। इसके बाद वे "उल्टा रथ" से पुनः अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं।

आध्यात्मिक महत्व:

ईश्वर का सुलभ रूप: रथ यात्रा में भगवान स्वयं भक्तों के पास आते हैं। यह भक्ति मार्ग में उनके सुलभ रूप को दर्शाता है।


मुक्ति का मार्ग: यह यात्रा जीवन रूपी संसार सागर को पार करने का प्रतीक है। रथ, जीवन रूपी शरीर है और भगवान हमारे सारथी हैं।


सांसारिक मोह से मुक्ति: रथ को खींचते समय भक्त सांसारिक बंधनों को भूलकर केवल भगवान के नाम में लीन हो जाते हैं।

रथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें:

पुरी की रथ यात्रा को विश्व की सबसे बड़ी चलती मूर्ति यात्रा (Moving Temple Festival) माना जाता है।


यह एकमात्र ऐसा समय होता है जब गैर-हिंदू भी भगवान के दर्शन कर सकते हैं, क्योंकि बाकी समय मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं।


ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों में भी अब रथ यात्राएं निकलती हैं- जो इस परंपरा की विश्वस्तर पर प्रसिद्धि को दर्शाती हैं।

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