आज तारीख 17 फरवरी, 2025 है और दिन सोमवार। आज के दिन पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में इतिहास लिखा जा रहा है। इस इतिहास का केंद्र 'कोकराझार' है। कोकराझार वही जिला है जहां से 'बोडोलैंड आंदोलन' की शुरुआत हुई थी। बोडोलैंड आंदोलन के 59 साल बाद यहां विधानसभा का सत्र आयोजित हो रहा है, जिसे अभूतपूर्व घटना माना जा रहा है।   

 

कोकराझार में विधानसभा सत्र की पहली बैठक का आयोजन एक ऐतिहासिक कदम है। सरकार अपने इस कदम से असम के राजनीतिक परिदृश्य में एक नई दिशा का संकेत देने के साथ ही राज्य के सभी क्षेत्रों में समान विकास और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने का काम कर रही है। इस कदम से राज्य के नागरिकों में भी अपनी राजनीतिक जिम्मेदारी और अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने की उम्मीद है।

 

विधायक सुबह ही रवाना 

 

असम के कोकराझार में आज एक दिन का विशेष विधानसभा सत्र आयोजित किया जा रहा है। यह पहली बार है कि राज्य का विधानसभा सत्र की बैठक राजधानी गुवाहाटी से हटकर आदिवासी क्षेत्र कोकराझार में आयोजित किया जा रहा है। असम विधानसभा के बजट सत्र का पहला दिन कोकराझार में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) विधानसभा में होगा। असम के मंत्रियों और राज्य के विधायकों को लेकर बसें कोकराझार में बीटीसी विधानसभा के लिए सुबह ही रवाना हो गई थीं।


इस दौरान कोकराझार में ऐतिहासिक असम विधानसभा सत्र में राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य का अभिभाषण हुआ। उन्होंने कहा कि यह कदम विकास भी, विरासत के दर्शन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाया।

 

बड़ा बदलाव है

 

असम के मंत्री पीयूष हजारिका ने इस मौके पर कहा, 'मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में हम पहली बार कोकराझार में विधानसभा सत्र आयोजित कर रहे हैं। 15 साल पहले कोकराझार के लोग अलग राज्य चाहते थे, लेकिन अब वे ऐसा नहीं चाहते। वे हमारा स्वागत कर रहे हैं। यह एक बेहतरीन पहल है। इसे जारी रखा जाएगा। सोचिए, पहले अलग राज्य की मांग करने वाले लोग आज विधानसभा सत्र का स्वागत कर रहे हैं। यह कितना बड़ा बदलाव है!'

 

दरअसल, कोकराझार वह इलाका है जो कभी बोडोलैंड आंदोलन का केंद्र हुआ करता था। ऐसे में आइए जानते हैं कि बोडोलैंड आंदोलन का इतिहास क्या है और इस विशेष विधानसभा सत्र के मायने क्या हैं? 

 

क्या है बोडोलैंड आंदोलन?

 

बोडोलैंड एक भौगोलिक क्षेत्र है। आज से 59 साल पहले यानी 1966-67 में बोडोलैंड आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी साल 'प्लेन्स ट्राइबल्स काउंसिल ऑफ असम' ने आंदोलन की शुरुआत करते हुए असम से बोडोलैंड नाम के एक अलग राज्य की मांग उठाई गई थी।
 
इसके बाद साल 1986 में बोडोलैंड की मांग करते हुए एक प्रमुख ग्रुप बोडो सुरक्षा बल का गठन किया गया। समय बीतने और आंदोलन के तेज होने के बाद बोडो सुरक्षा बल ने अपना नाम बदलकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) रख लिया।

 

हालांकि, साल 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के उपेंद्रनाथ ब्रह्मा के नेतृत्व में बोडो समुदाय ने आधिकारिक बोडोलैंड आंदोलन शुरू किया जबकि तत्कालीन 'असम गण परिषद' की प्रफुल्ल कुमार महंत की सरकार ने आंदोलन को दबा दिया था। उसी समय ABSU ने बोडो पीपुल्स एक्शन कमेटी नाम से एक राजनीतिक संगठन बना लिया।

 

यह भी पढ़ें: यात्री कृपया ध्यान दें! रेलवे स्टेशन पर नहीं मिलेगा प्लेटफॉर्म टिक

 

ABSU ने उसी समय 'असम को 50-50 बांटो' का नारा देकर नया आंदोलन शुरू कर दिया, लेकिन सरकार के प्रयासों से इस आंदोलन का 1993 में अंत हो गया। सरकार ने ABSU  के साथ में बोडो समझौता कर लिया था। समझौता टूट गया और ABSU और अन्य राजनीतिक दलों में विभाजन हो गया। बोडो समझौते के बाद, बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (BAC) का गठन किया गया, जिसे बाद में BTQ द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।

 

हालांकि, कुछ समय बाद ही सरकार के साथ में किया गया समझौता टूट गया। फिर ABSU और अन्य दूसरे राजनीतिक दलों में भी बंटवारा हो गया। इसके बाद अलग-अलग सरकारें बोडो समझौतों को लेकर लगातार प्रयास करती रहीं। इसी के तहत बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (BAC) का गठन किया गया। 

 

1990 के दशक में भारतीय सुरक्षा बलों ने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई से इस संगठन की कमर टूट गई, जिसकी वजह से NDFB के नेताओं और लड़ाकों को भागकर भूटान में शरण ले ली।

 

इन घटनाक्रमों के बीच में साल कांग्रेस की तत्कालीन तरुण गोगोई सरकार ने साल 2003 में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) का गठन किया। राज्य सरकार ने बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद को वित्तीय सहायता दी और कार्रवाई के लिए इसे कई शक्तियां दीं।

 

बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद का गठन क्यों?

 

राज्य सरकार और और बोडो समुदाय के बीच शांति समझौते के बाद, 2003 में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य बोडो लोगों की आर्थिक, शिक्षा, भूमि अधिकार का संरक्षण, भाषाई आकांक्षा, सामाजिक-संस्कृति और जातीय पहचान के क्षेत्र में विकास करना और सबसे बढ़कर विकास को गति देना था।

 

अलग बोडोलैंड की मांग क्यों?

 

बोडो समुदाय बोडोलैंड आंदोलन के तहत अलग राज्य की मांग इसलिए कर रहा था क्योंकि वो चाहते थे कि सदियों से जो उनकी मूल जातीय पहचान है उसे वह उच्च जातियों के प्रभाव में नहीं छोड़ना चाहते थे। समुदाय चाहता था कि अलग राज्य बनने से उनकी संस्कृति और पहचान बची रह सकती है। 

 

20वीं सदी में बोडो आदिवासी समुदाय बोडोलैंड से अवैध अप्रवास हुआ, उनकी जमीनों बड़ी और रसूखदार लोगों ने कब्जा किया। सामाजिक इज्जत, भाषा और संस्कृति को होने वाले नुकसान को लेकर आंदोलन चलता रहा।

 

समुदाय को लगता था कि उन्हें लगातार राज्य और केंद्र सरकारें राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों से वंचित करती हैं। बोडो न केवल अपनी पैतृक जमीनों में एक जातीय अल्पसंख्यक बन गए, बल्कि एक जातीय समुदाय के रूप में अपने अस्तित्व और स्थिति के लिए भी संघर्ष करने लगे।

 

बोडोलैंड शांति समझौता

 

27 जनवरी 2020 को सरकार और बोडो समुदाय के बीच शांति समझौता हुआ था। इस समझौते ने एक झटके में बोडोलैंड में दशकों से चले आ रहे संघर्ष, हिंसा और जनहानि पर विराम लगा दिया था। इसके बाद से क्षेत्र में विकास, शांति और प्रगति की शुरुआत हो गई है। 

 

खुद तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह ने 27 जनवरी को अलगाववादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सभी चार गुटों, ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (आब्सू) और केंद्र सरकार के बीच बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साक्षी बने थे। उस समय अमित शाह ने कहा था, 'ये समझौता असम तथा बोडो क्षेत्र के सुनहरे भविष्य का दस्तावेज़ है. मैं मानता हूं ये एग्रीमेंट बोडो क्षेत्र के लिए और असम के लिए एक विकास का रास्ता प्रशस्त करने वाला एग्रीमेंट होने जा रहा है।'

 

बोडोलैंड जिसे आधिकारिक तौर पर अब तक बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) कहा जाता है, इस समझौते के लागू होने के बाद इसका नाम बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) हो गया। नए समझौते की शर्तों के अनुसार बीटीआर को अधिक अधिकार दिए गए हैं। 

 

समझौते के मुताबिक बीटीसी की मौजूदा 40 सीटों को बढ़ाकर 60 किया गया और इलाके में कई नए जिलों के बनाने का प्रस्ताव है। गृह विभाग को छोड़कर विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार सारे बीटीआर के पास रहेंगे.

 

नए समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 30 जनवरी को एनडीएफबी के 1550 से ज्यादा कैडरों ने अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके फौरन बाद केंद्र सरकार ने कैडरों को सहायता करने का ऐलान कर दिया था। शांति समझौते के समय ही केंद्र सरकार ने नए समझौते की शर्तों पर अमल करने के लिए अगले तीन वर्षों में बोडोलैंड के विकास के लिए 1,500 करोड़ रुपये के एक पैकेज को मंजूरी दी थी।

 

बोडो कौन हैं?

 

बोडो असम का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। एक समय में बोडो समुदाय का असम के बड़े हिस्से पर कब्जा था। केंद्र सरकार से समझौते के बाद जो बोडो प्रादेशिक क्षेत्र जिला यानी बीटीएडी बनाया गया है, उसके अंतर्गत चार जिले आते हैं। ये जिले कोकराझार, बक्सा, उदलगुरी और चिरांग हैं। आज असम विधानसभा का विषेश सत्र कोकराझार में ही हो रहा है।

पीएम मोदी ने ट्वीट किया

 

यह भी पढ़ें: डबल इंजन नहीं, 6 इंजन से होगा दिल्ली का विकास? समझिए प्रशासनिक पेचीदगी

 

असम के विशेष विधानसभा सत्र को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा, 'केंद्र और असम दोनों में NDA सरकारें बोडो समुदाय को सशक्त बनाने और बोडो आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं। ये काम और भी अधिक जोश के साथ जारी रहेंगे। मुझे कोकराझार की अपनी यात्रा याद आती है, जहां मैंने जीवंत बोडो संस्कृति देखी थी।'

 

क्या है विपक्ष की प्रतिक्रिया?

 

असम के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने बीजेपी सरकार की इस पहल का खुलकर स्वागत किया है। एआईयूडीएफ विधायक करीम उद्दीन बरभुइया ने एक दिवसीय विधानसभा सत्र के लिए कोराझार जाने का एक शानदार पहल बताया। उन्होंने कहा, 'यह एक अच्छी पहल है। यह भारत में पहली बार हो रहा है, जहां हम राजधानी से बाहर जाकर बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल क्षेत्र में जा रहे हैं। हर कोई इस कदम की तारीफ करेगा क्योंकि बीटीसी एक अविकसित क्षेत्र था। पहले इस क्षेत्र में असुरक्षा थी। आज यह मुख्यधारा में है। इससे एक अच्छा संदेश जाएगा कि सरकार बोडो लोगों के विकास के बारे में सोच रही है।'

 

वहीं, कांग्रेस विधायक अब्दुर रशीद मंडल ने कहा कि 'यह ऐतिहासिक बजट सत्र है, जो राजधानी के बाहर शुरू होगा। मुझे लगता है कि इससे छठी अनुसूची के क्षेत्र के लोगों को एक संदेश मिलेगा। आज की एक मुख्य चर्चा छठी अनुसूची के क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक और सर्वांगीण विकास पर होगी।' वहीं, एआईयूडीएफ विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा कि यह वहां चल रही शांतिपूर्ण बहाली का संकेत है।