इंसानी दुनिया में किसी की मौत के बाद उसके शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। अलग-अलग धर्मों में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अलग होती है। हिंदू धर्म में ज्यादातर लोग शव को जलाते हैं, इस्लाम में ज्यादातर लोग शव को दफनाते हैं। इसी तरह अलग धर्म में अलग तरीके अपनाए जाते हैं। आमतौर पर यही तरीका होता है कि किसी शख्स की मौत के बाद उसे सम्मानपूर्व विदाई दी जाए। दुनिया में कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां मौत के बाद शव का ट्रीटमेंट बेहद अजीब तरीके से होता है। कुछ ऐसा ही ब्राजील और वेनेजुएला में होता था। वहां लाश को खाने और उसका सूप बनाकर पी जाने की परंपरा अपनाई जाती थी।

 

दरअसल, ब्राजील और वेनेजुएला के कुछ आदिवासी समुदायों में शव खाने की परंपरा है जो धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ी रही है। हालांकि, यह सुनने में अजीब लगता है लेकिन इन समुदायों में यह सम्मान और शोक की एक पवित्र प्रक्रिया मानी जाती थी। 

 

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वारी समुदाय की अजीब परंपरा

वारी जनजाति के लोग पश्चिम ब्राजील के अमेजन के वर्षावनों में रहते हैं। वारी समुदाय में यह परंपरा थी कि जब कोई सदस्य मरता था, तो उसका शरीर आग में पकाकर खाया जाता था। वारी समुदाय का ऐसे करने का उद्देश्य मृतक की आत्मा को शांति देना, दुख को दूर करना और शरीर को प्रकृति में वापस मिलाना होता था। यह परंपरा 1960 के दशक तक जारी रही, जब ईसाई मिशनरियों और आधुनिक प्रभावों के चलते इसे बंद कर दिया गया। 

 

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यानोमामी जनजाति- वेनेजुएला और ब्राजील

यानोमामी जनजाति भी अमेजन के वर्षावनों में फैले इलाकों में रहते थे। इस जनजाति के लोग भी पहले मृतक का शरीर पहले जलाते थे फिर उसकी राख और हड्डियों को पीसकर केले के सूप में मिला लेते थे। इस तरह तैयार सूप को मृतक के परिवार के लोग उसके समुदाय के लोग पीते थे। ऐसा करने का मकसद था मृत व्यक्ति की आत्मा को समुदाय के भीतर जीवित रखना और आत्मा की शांति और पुनर्जन्म सुनिश्चित करना। 

यह परंपरा क्यों थी?

इन जनजातियों के अनुसार, मृत्यु जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक और यात्रा की शुरुआत है। इसे वह शरीर का सम्मान करने का तरीका मानते थे और उसे खुद में समाहित करते थे। इस रस्म से दुख को साझा करना और सामूहिक रूप से शोक मनाना आसान होता था।

 

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आज क्या स्थिति है?

ये परंपराएं अब लगभग खत्म हो चुकी हैं। सरकारों, मिशनरियों और मानवाधिकार संगठनों के दखल के बाद इन पर रोक लगा दी गई है। हालांकि, कुछ दूरस्थ क्षेत्रों में अब भी ऐसे रीति-रिवाज निभाए जाते हैं।