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दो-चार दिन के बच्चे को 50 फीट ऊपर से क्यों फेंक देते हैं? वजह जानिए

अंधविश्वास से भरी एक ऐसी प्रथा के बारें में आज आपको बताएंगे जो महाराष्ट्र में 500 वर्षों से होती आ रही है। इस प्रथा पर बैन लगाए जाने के बावजूद कर्नाटक में अभी भी यह जारी है। क्या है, यहां पढ़िए।

Infant-tossing ritual

सांकेतिक तस्वीर, Photo Credit: Pixabay

29 अप्रैल 2008, दिन मंगलवार, महाराष्ट्र में 500 वर्षों से चली आ रही एक प्रथा की तैयारी जोरों शोरों से की गई। अपने नवजात के साथ आए माता-पिता एक अनुष्ठान को करने के लिए बाबा शेख उमर साहब दरगाह में इकट्ठा हुए। इमारत के ऊपर कुछ लोग खड़े हुए हैं और नीचे सैकड़ों की भीड़ बिछी चादर को पकड़े हुए थे। अचानक से 50 फीट ऊपर इमारत से एक नवजात नीचे चादर पर धड़ाम से गिरता है। रोते-बिलखते मासूम को उसके माता-पिता खुशी-खुशी उठाते हैं क्योंकि अब उनके बच्चे को अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होगी। 

 

ऊपर जो हमने आपको बताया यह कोई कहानी नहीं बल्कि भारत और तुर्किये में एक रस्म या प्रथा है जिसे 'गुड लक बेबीज' के नाम से जाना जाता है। इसमें शिशुओं को अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए एक इमारत से 50 फीट नीचे गिराया जाता है। इस अनुष्ठान को पूरा करने वाले माता-पिता अपने बच्चे को जानबूझकर-खुशी-खुशी इमारत से नीचे चादर पर गिराते हैं, ताकि उनके बच्चों का भाग्य और स्वास्थ्य अच्छा रहा। इसके अलावा बच्चे को जीवनभर समद्धि प्राप्त हो सके। 

 

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विवादों में रही यह प्रथा

यह प्रथा महाराष्ट्र, कर्नाटक और तुर्कियें में होती है लेकिन यह प्रथा हमेशा से विवादों में रही। इसे बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक माना गया। सरकार और बाल सुरक्षा संगठन ने इसमें दखल दिया जिसके बाद जाकर इस प्रथा पर रोक लगाई गई। हालांकि, अभी भी उत्तरी कर्नाटक में इस प्रथा को उत्सव की तरह मनाते है। 

 

आखिर यह प्रथा है क्या?

भारत के महाराष्ट्र और कर्नाटक में बच्चों को 50 फीट की ऊंचाई से फेंकने की प्रथा समय-समय पर सामने आती हैं। यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथा है, जिसे कुछ समुदाय अभी भी बच्चों के भाग्य, अच्छे स्वास्थ्य और उनकी समद्धि के लिए मनाते है। 

 

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कर्नाटक में अभी भी होती है यह प्रथा

कर्नाटक में 'बच्चों को ऊंचाई से गिराने' की यह प्रथा कुछ मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर होती थी। इसमें माता-पिता अपने नवजात शिशुओं को 30-50 फीट ऊंचे मंदिर या धार्मिक स्थल से नीचे गिराते थे, जहां नीचे लोग चादर या कपड़ा पकड़कर उन्हें सुरक्षित लपकते थे। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चा भाग्यशाली, स्वस्थ और दीर्घायु होता है। यह प्रथा कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में देखी गई है। 

 

तुर्किये में भी होती है ऐसी ही प्रथा

तुर्किये में भी ऐसी ही एक प्रथा देखी गई है, जिसमें कुछ समुदायों में बच्चों को ऊंचाई से फेंकना शुभ माना जाता है। यह ज्यादाकर फेस्टिवल या धार्मिक समारोहों के दौरान किया जाता है। ऐसी प्रथा को रोकने के लिए सरकार भी कड़े कदम उठा रही है। 

 

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क्या यह कानूनी रूप से सही है?

भारत में बाल अधिकार संगठनों और सरकार ने इस प्रथा को गैरकानूनी और खतरनाक बताया है। भारत के बाल अधिकार आयोग (NCPCR) ने इस पर बैन लगाने की सिफारिश की थी।

वहीं, तुर्किये में सरकार ऐसी प्रथाओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी रखती है।

 

इस प्रथा से बच्चों को कितना खतरा?

  • 50 फीट ऊपर इमारत से नवजात को गिराने के दौरान चोट लगने या जान जाने का खतरा रहता है। 
  • यह एक तरह का बाल शोषण माना जाता है।
  • इससे मानसिक और शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं।

 

क्या यह प्रथा अभी भी जारी है?

उत्तर कर्नाटक के कुछ हिस्सों में यह प्रथा अभी भी जारी है जबकि सामाजिक कार्यकर्ता ऐसी प्रथाओं पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं। 25 फरवरी, 2025 को कोप्पल जिले के कनकगिरी तालुक के घडिवाडिकी गांव से ऐसी ही एक घटना सामने आई।

 

गांव में महालक्ष्मी देवी के वार्षिक मेले के दौरान, रथ के ऊपर बैठे पुजारी शिशुओं को नीचे फेंकते हैं और ग्रामीण कंबल से शिशुओं को पकड़ते हैं। देवी का आशीर्वाद पाने के लिए यह अनुष्ठान हर साल किया जाता है। पहले पुजारी बच्चों को 20 फीट की ऊंचाई से उछालते थे लेकिन अब वे इसे 6 फीट से करते हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि फिर भी, यह प्रथा दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अच्छी नहीं है लेकिन ग्रामीणों का मानना ​​है कि इससे नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य और सौभाग्य मिलता है।

 

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अंधविश्वास से भरी यह प्रथा...

बच्चों को ऊंचाई से गिराने की यह प्रथा अंधविश्वास और परंपरा का मिश्रण है, जिसे खतरनाक माना जाता है। सरकार और बाल सुरक्षा संगठनों ने इसे गैरकानूनी घोषित किया है और ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई की जाती है। 

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