भारतीय संस्कृति में होली एक प्रमुख त्योहार, जिसका अपना एक सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है। हालांकि, समय के साथ, इस त्योहार का व्यवसायीकरण भी हुआ है, जिससे यह आर्थिक रूप से भी बड़ा बाजार बन चूका है। होली त्योहार से पहले की जाने वाली खरीदारी सरकार को भी खासा मुनाफा होता है। आइए, होली के व्यवसायीकरण की शुरुआत कैसे हुई, और बीते कुछ सालों में इसके बाजार में कितना बड़ा बदलाव आया है।

होली का व्यवसायीकरण

होली का त्योहार प्राचीन समय से मनाया जाता रहा है, जिसका हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। हालांकि, कई आर्थिक मामलों के जानकार ये बताते हैं कि इसका व्यवसायीकरण 20वीं शताब्दी के बीच से शुरू हुआ था। भारत के स्वतंत्रता के बाद, देश में कई बदलाव आए और शहरीकरण शुरू हुआ, त्योहारों का व्यवसायिक पहलू बढ़ने लगा। होली के दौरान रंग, गुलाल, पिचकारी, मिठाइयां और अन्य चीजों की मांग में बढ़ोतरी हुई, जिससे व्यापारियों ने इस अवसर का फायदा उठाना शुरू किया।

बीते सालों में होली का बाजार: एक विश्लेषण

पिछले कुछ सालों में, खास तौर से 2021 से 2024 तक, होली के बाजार में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी गई है। 2021 में, COVID-19 महामारी की वजह से होली के त्योहार पर प्रतिबंध लगे, जिससे बाजार में मंदी आई। लोगों ने सामाजिक दूरी का पालन किया, जिससे रंग, गुलाल, पिचकारी, और मिठाइयों की बिक्री में कमी आई। पर्यटन उद्योग भी प्रभावित हुआ, क्योंकि यात्रा प्रतिबंधों की वजह से लोग पर्यटन स्थलों पर नहीं जा सके। बच्चों के खिलौनों और होली से संबंधित सामानों की मांग में भी गिरावट देखी गई।

 

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2022 से शुरू हुआ सुधार

2022 में, महामारी की स्थिति में सुधार और टीकाकरण अभियान की सफलता के साथ, लोगों ने फिर से होली मनाना शुरू किया। बाजारों में रंग, गुलाल, पिचकारी और मिठाइयों की बिक्री में वृद्धि देखी गई। पर्यटन स्थलों पर भी चहल-पहल बढ़ी, हालांकि लोग अभी भी सावधानी बरत रहे थे। बच्चों के खिलौनों और होली से संबंधित उत्पादों की मांग में भी सुधार हुआ।

इसके बाद 2023 में, होली के दौरान बाजार में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखी गई। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) रिपोर्ट में बताया कि, इस साल होली के दौरान भारत में लगभग 25,000 करोड़ रुपए की खरीदारी हुई, जो पिछले साल की तुलना में 25% ज्यादा था।

 

दिल्ली में अकेले लगभग 1,500 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। इस साल, चीनी सामानों का बहिष्कार करते हुए, स्वदेशी उत्पादों की बिक्री में बढ़ोतरी देखी गई। रंग, गुलाल, पिचकारी, चंदन, कपड़े, मिठाइयां, ड्राई फ्रूट्स, गिफ्ट आइटम्स, टेक्सटाइल्स, फूल, फल, फर्निशिंग फैब्रिक, किराना और एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई। पर्यटन उद्योग में भी तेजी आई, क्योंकि लोग अलग-अलग पर्यटन स्थलों पर होली मनाने के लिए गए। बच्चों के खिलौनों और होली से संबंधित सामानों की मांग में भी वृद्धि हुई।

2024 में बाजार में आया बहुत बड़ा उछाल

2024 में, होली के बाजार ने ऐतिहासिक उछाल देखा। CAIT के अनुसार, इस साल होली के दौरान भारत में लगभग 50,000 करोड़ रुपए की खरीदारी हुई, जो पिछले साल की तुलना में 50% ज्यादा था। दिल्ली में अकेले लगभग 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। स्वदेशी उत्पादों की बिक्री में और वृद्धि हुई। साथ ही इसमें भी रंग, गुलाल, पिचकारी, चंदन, कपड़े, मिठाइयां, ड्राई फ्रूट्स, गिफ्ट आइटम्स और एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री में खासा बढ़ोतरी देखि हुई।

 

पहले से कितनी बदल गई है होली

बदलते दौर के साथ होली मनाने की परंपराएं भी बदली हैं, खासकर गांव और शहरों में इसका अंतर साफ देखने को मिलता है। पहले होली सिर्फ प्राकृतिक रंगों और घरेलू तैयारियों के साथ मनाई जाती थी। टेसू के फूलों से रंग बनाए जाते थे, जो पूरी तरह से प्राकृतिक होते थे। बच्चे और बड़े मिलकर होली के दिन सुबह जल्दी उठते, ठंडाई तैयार होती, ढोल-नगाड़ों की धुन पर लोग नाचते-गाते और पूरे मोहल्ले में उत्सव का माहौल होता था। रंग लगाने की शुरुआत बड़ों के पैर छूकर होती थी, जिससे आपसी सम्मान झलकता था।

 

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आज की होली में यह पारंपरिक तरीका काफी बदल चुका है। अब पानी के बाजार में मिलने वाले गुब्बारे, पक्के रंग, स्प्रे और केमिकल युक्त रंगों का इस्तेमाल बढ़ गया है। पहले जहां होली पूरे मोहल्ले और समाज के साथ खेली जाती थी, अब यह छोटे-छोटे ग्रुप में सिमट गई है। संगीत की धुनें भी बदल गई हैं, लोकगीतों की जगह डीजे और फिल्मी गानों ने ले ली है। इसके साथ पहले के समय घर पर ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनकी जगह आज के समय में बाजार के स्नैक्स और फ्रोजन फूड्स ने ले ली है। हालांकि, देश के कुछ ऐसे भी हिस्से हैं जहां पारंपरिक रूप से ही होली खेली जाती है और पहले की तरह पकवान और रंग तैयार किए जाते हैं लेकिन खासतौर पर शहरों में यह चलन अब बहुत कम दिखाई देता है।

गांव और शहर की होली में अंतर

गांवों में होली आज भी सामूहिक रूप से मनाई जाती है। वहां की गलियों में बच्चे रंगों से सराबोर दौड़ते हैं, ढोलक की थाप पर बुजुर्ग और युवा मिलकर होली के पारंपरिक गीत गाते हैं। गांवों में होलिका दहन के बाद पूरा गांव इकट्ठा होता है और दूसरे दिन एक-दूसरे के घर जाकर रंग खेलता है। रिश्तों की मिठास और आपसी अपनापन आज भी गांव की होली में बरकरार है।

 

शहरों में होली का रूप काफी अलग हो गया है। पहले की तरह मोहल्लों में सामूहिक होली कम ही देखने को मिलती है। अब लोग अपने घरों तक सीमित रहते हैं या क्लब, होली पार्टियों और गेट-टुगेदर में त्योहार मनाते हैं। बड़े शहरों में कई जगह होली पार्टियां की जाती है, जहां कुछ जगहों धड़ल्ले शराब की बिक्री होती है। इसके अलावा पहले होली खेलने के बाद शाम को 'होली मिलन' का आयोजन किया जाता था, जिसमें लोग एक-दूसरे के घर जाकर गले मिलते, मिठाइयां खिलाते और रिश्तों को मजबूत करते। अब इसकी जगह सोशल मीडिया ने ले ली है। वीडियो कॉल, मैसेज और स्टेटस के जरिए ही होली की शुभकामनाएं दी जाती हैं।